प्रधानमंत्री की नसीहत

Last Updated 19 Jan 2017 03:39:24 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रायसीना वार्ता में पाकिस्तान के साथ संबंधों की सीधी रेखा खींच दी है.


प्रधानमंत्री की नसीहत

वास्तव में उनके यह साफ करने के बाद कि पाकिस्तान से द्विपक्षीय बातचीत तभी हो सकती है, जब वह आतंकवाद का रास्ता छोड़ेगा इस मामले में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए.

दूसरे शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को यही संदेश दिया है कि आतंकवाद और बातचीत दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते. यह अच्छा हुआ कि एक ऐसे मंच पर, जहां दुनिया भर के प्रतिनिधि उपस्थित हों, प्रधानमंत्री ने साफगोई से अपनी बात रख दी. हालांकि, उनके कथन में पाकिस्तान के साथ संबंध न सुधरने का मलाल भी साफ झलक रहा था.

मसलन, उन्होंने कहा कि पड़ोस के बारे में मेरी दृष्टि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के साथ शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों पर जोर देती है और इसी दृष्टि से अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान सहित दक्षेस के सभी देशों को आमंत्रित किया था. यानी हम संबंधों में एक नई सुबह की शुरुआत करना चाहते थे, जिसे पाकिस्तान की दुर्नीति ने आगे नहीं बढ़ने दिया.

अगर मोदी कह रहे हैं कि इसी सोच से मैं लाहौर गया तो फिर इसमें किसी को किंतु-परंतु देखने का कोई पहलू नहीं है. 25 दिसम्बर 2015 को बगैर पूर्व कार्यक्रम के नरेन्द्र मोदी लाहौर उतरे एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ उनके घर तक गए.

इससे ज्यादा बड़ी पहल के अलावा एक देश का प्रधानमंत्री किसी दूसरे देश से संबंध बेहतर करने के लिए और क्या कर सकता था. किंतु शांति उसी तरह कभी एकपक्षीय नहीं हो सकती जिस तरह ताली एक हाथ से नहीं बज सकती. पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की आवश्यकता केवल भारत को नहीं है. पाकिस्तान को भी इस आवश्यकता को समझना होगा.

अगर वह समझेगा तो उसका रवैया वह नहीं हो सकता जो आज है. जिस दिन उसे समझ आ जाएगा कि भारत के साथ दोस्ताना संबंध उसके व्यापक हित में है उसी दिन से वह शांति के रास्ते चलने की हर संभव कोशिश करेगा. आप शांति के रास्ते चलने की ईमानदार कोशिश करते हैं और उसमें असफल हो जाते हैं तो इसमें कोई समस्या नहीं उसमें भारत मदद भी कर सकता है.

मगर यहां तो कोशिश ही उल्टी है. आतंकवाद सीमा पार से आता है और पाकिस्तान कार्रवाई तो छोड़िए अब स्वीकार करने को तैयार नहीं. इसमें संबंधों को बेहतर करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता की गुंजाइश बचती ही कहां है.



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