चीन को दो टूक

Last Updated 20 Jan 2017 04:51:06 AM IST

रायसीना सम्मेलन में भारत का चीन को संप्रभुता की समझ विकसित करने और दूसरे देशों की उन्नति से न जलने का संदेश कई मायनों में बेहद महत्त्वपूर्ण है.


चीन को दो टूक

इस बात से हर कोई रजामंद होगा कि चीन की नीयत और तेवरों में हमेशा से खोट रही है. वह कत्तई नहीं चाहता कि भारत आगे बढ़े, तरक्की करे और वैश्विक तौर पर खासकर दक्षिण एशिया में ताकतवर और विकसित दिखे.

यही वजह है कि वह भारत को कभी तिब्बत के मसले पर तो कभी दलाई लामा का राजनीतिक दौरा तो कभी दक्षिण चीन सागर पर भारत-अमेरिका की लामबंदी तो कभी जापान और अन्य पड़ोसी मुल्कों से नजदीकी बढ़ाने को लेकर भारत को धौंस-पट्टी देता रहता है.

शायद, चीन की इस विस्तारवादी, नकचढ़ापन और हेकड़ी दिखाना किसी भी राष्ट्र को बदार्शत नहीं होगा. सो, भारत ने भी कई बार चीन के ऐसे मसलों पर सीमा लांघने और बयानबाजी का जवाब देना उचित समझा.

विदेश सचिव एस. जयशंकर का संप्रभुता को लेकर दिया गया बयान चीन को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है कि अगर आप दूसरे देशों की संप्रभुता पर चोट करोगे तो सामने वाला चुप नहीं रहेगा.

ऐसे भी आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की जो भूमिका रही है उसमें चीन की भी साझेदारी कम नहीं है. चूंकि, भारत के लिए आतंकवाद हमेशा से दुखती रग रहा है. इसलिए अगर अजहर मसूद पर प्रतिबंध लगाने में चीन अड़ंगेबाजी करेगा तो भारत को भी अपने हितों की रक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम करना पड़ेगा.

इशारों-इशारों में भारत ने चीन को यह बतलाने और जतलाने का काम किया कि आप अपने काम से मतलब रखो.

दरअसल, जब से मोदी सरकार अमेरिका से संबंधों को नया आयाम दे रही तब से चीन आगबबूला है. उसे यह फूटी आंखों नहीं सुहाता है कि भारत अमेरिका के बीच  रिश्ते बेहतर हों.

पूर्व में यह देखा गया कि दक्षिण-चीन सागर या हिंद महासागर के मसले पर भारत ने अमेरिका की हां-में-हां मिलाई है. चीन को कहीं-न-कहीं लगता है कि इस इलाके में भारत की मजबूती का सीधा अर्थ उसकी कमजोरी को परिलक्षित करेगा. चुनांचे, वक्त आ गया है भारत चीन की आंखों में आंखें डालकर बात करे. द्विपक्षीय संबंधों को दृढ़ करने का यही माकूल तरीका है.



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