प्रदूषण पर सख्ती
वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने से खिन्न देश की शीर्ष अदालत का केंद्र सरकार को तत्काल कदम उठाने का आदेश दिल्ली-एनसीआर में हालात की भयावहता को ही दर्शाती है.
प्रदूषण पर सख्ती |
लगातार खराब होती स्थिति से परेशान सर्वोच्च अदालत सख्ती के मूड में दिख रही है. खासकर प्रदूषण नियंत्रण केंद्र की मौजूदा कार्यशैली और स्थिति को लेकर अदालत ज्यादा गंभीर है.
यही वजह है कि केंद्र सरकार से यह बताने को कहा गया है कि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट (पीयूसी) जारी करने वाले केंद्र कितने हैं और वो किस तरह प्रदूषण की जांच में योगदान दे रहे हैं. हालांकि, केंद्र ने इन पीयूसी केंद्रों की जो तस्वीर कोर्ट के सामने रखी, उससे साफ तौर पर प्रदूषण दूर करने की गंभीरता को झटका लगा है.
मसलन, दिल्ली में मौजूद 962 केंद्रों में से 174 केंद्रों को अनियमितता बरतने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, 14 केंद्रों का लाइसेंस रद्द किया गया है जबकि 75 को निलंबित किया जा चुका है.
यहां तक कि 78 केंद्रों को चेतावनी तक जारी की जा चुकी है. साफ है कि जिन पर प्रदूषण को जांचने की जिम्मेदारी है वही विभाग औंधे मुंह पड़ा है. लाजिमी है, ऐसे में प्रदूषण को कम या खत्म करने की बात सोचना भी बेमानी है. शीर्ष अदालत पीयूसी केंद्रों की अहमियत को जानती है, यही वजह है कि जिन केंद्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं, उनकी स्थिति रिपोर्ट पेश करने को भी कहा गया है.
स्वाभाविक है, अदालत अब समय गंवाना नहीं चाहती है. प्रदूषण के चरम स्थिति तक पहुंचने से पहले वह सभी कमजोर कड़ी को दुरुस्त कर लेना चाहती है. पिछली सुनवाई के बाद लागू ग्रेडिंग रिस्पांस सिस्टम को लेकर भी तालमेल बनाने की जरूरत है. कुल मिलाकर प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण राष्ट्रीय स्वास्थ्य त्रासदी के समान है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े इस बात की गवाही चिल्ला-चिल्लाकर देते रहे हैं. वहीं, भारत में मौतों का पांचवां सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है. 2012 में जहरीले जहर के चलते 6,27000 लोग मर चुके हैं. इसके बावजूद दमघोंटू हवा से निजात पाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार और सरकारी मशीनरी की नहीं, जनता की भी है. जनता को अपना जीवन प्राकृतिक और अनुशासित बनाना होगा. पर्यावरण के साथ हमारे रिश्ते निस्वार्थ होने चाहिए तभी जहर से बचना संभव है.
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