फैसले का तर्क

Last Updated 14 Oct 2023 02:03:01 PM IST

वर्ष दो हजार आठ में दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए आरिज खान को अब फांसी नहीं होगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी सजा को उम्र कैद में बदल दिया।


फैसले का तर्क

यह अदालत का विवेक है कि उसने दिल्ली पुलिस के तत्कालीन इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या और उससे जुड़े अन्य अपराधों के लिए आरिज खान को मुजरिम तो माना पर उसे यह मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ नहीं लगा। दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले में समाज के एक वर्ग में यह चिंता पैदा की है कि आतंकवादी घटना को अंजाम देने वाले के साथ नरमी दिखाई जाए। शहीद पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की पत्नी माया शर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर कहा कि हम हैरान और स्तब्ध हैं।

वर्षो की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद निचली अदालत ने आरिज को मौत की सजा सुनाई थी। तो फिर मौत की सजा कैसे कम की जा सकती है। इससे उन अधिकारियों का मनोबल गिरेगा जो ऐसी मुठभेड़ों में आगे रहते हैं। माया शर्मा हाई कोर्ट के ताजा फैसले से आहत हैं और इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कह रही हैं। 19 सितम्बर, 2008 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल एक सप्ताह पहले दिल्ली में हुए बम धमाकों की जांच करते हुए बाटला हाउस में एल-18 नंबर की एक इमारत की तीसरी मंजिल पर पहुंच गई थी।

वहां इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। अब जरूरत इस बात की है कि न्यायपालिका गंभीरता से इस विषय पर विचार-विमर्श करे कि आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने वाले और निदरेष तथा अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने वाले पुलिस अधिकारियों की हत्या करने वालों के विरुद्ध क्या रुख अपनाया जाए। ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ मामलों को भी स्पष्टत: व्याख्यायित किया जाना चाहिए ताकि न्यायपालिका में किसी भी स्तर पर असहमति जैसी स्थिति न आए।

जब निचली अदालत के फैसले को ऊंची अदालत बदलती है तो इससे भी न्याय के प्रति अच्छी धारणा नहीं बनती। विशेष तौर पर जब मामला आतंकवाद से जुड़ा हुआ हो। उम्मीद है कि न्यायपालिका दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले को अपने विचार के केंद्र में लाएगी और ऐसे मामलों में दंड तथा न्याय प्रक्रिया को और अधिक स्पष्ट बनाएगी।



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