मैं ‘दौड़ कर’ नहीं, ‘चल कर’ निर्णय लेता हूं : त्रिवेन्द्र
उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं। जब रावत ने सत्ता संभाली थी, तब प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला था, विकास कार्य जनता की अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पा रहे थे, राजनीतिक स्थिरता का भी अभाव था।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत (दाएं) से बातचीत करते सहारा समय (उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड) के संपादक रमेश अवस्थी। |
अब जब उनके शासन के तीन वर्ष पूरे हो गए हैं, तो स्वाभाविक है कि लोगों की नजर उनके कार्य निष्पादन पर होगी। इसी पृष्ठभूमि में सहारा समय उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड के संपादक रमेश अवस्थी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
सरकार के तीन साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान सरकार की प्रमुख उपलब्धियां क्या रही हैं?
सबसे पहले तो हमने भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाया। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में रिकार्ड काम किया है। पानी पर बहुत अधिक फोकस किया है, क्योंकि पानी की मांग बढ़ रही है। वष्रा जल संचयन पर बहुत अधिक जोर दे रहे हैं, जिसका फायदा आने वाली पीढ़ी को होगा। प्रधानमंत्री जी की योजना हर घर नल काफी लाभदायी है। प्रदेश के लिए थर्टी डिस्ट्रिक्ट थर्टी डेस्टिनेशन की योजना शुरू की है। थीम बेस्ड डेस्टीनेशन डेवलप कर रहे हैं। हर डेस्टीनेशन के लिए 50 लाख रु पए दिया है। सबका मास्टर प्लान तैयार किया गया है। सरकार पर्यटन पर फोकस कर रही है। प्रदेश में फिल्म उद्योग को बढ़ावा दिया है। 800 करोड़ रु पए की सोलर प्लांट की परियोजना पहाड़ी क्षेत्रों के लिए शुरू की गई है। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां 500 स्कूलों में वर्जुअल क्लासेज शुरू किए गए हैं। इसके अलावा सरकार स्वास्थ्य एवं रोजगार पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। पिछले तीन सालों में साढ़े तीन लाख युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ा गया है। स्वास्थ्य को लेकर लगभग 1500 डाक्टरों की भर्ती की गई है।
जब आप सीएम बने, तब पार्टी में दो धारणा थी। एक कह रही थी कि अनुभवहीन होने के नाते आप सफल नहीं हो पाएंगे, तो दूसरी धारणा यह रही थी कि आप एक सफल मुख्यमंत्री साबित होंगे। अब तीन साल पूरे हो गए हैं, तो क्या कहेंगे?
सफलता, असफलता का यह निर्णय मैं जनता पर छोड़ता हूं। जिन मुद्दों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था, उनमें सबसे बड़ा मुद्दा पिछली सरकार का भ्रष्टाचार था। आज मैं तीन साल बाद यह कह सकता हूं कि सरकार ने जनता से जो वादा किया था, वह हम दे पाने में सफल रहे हैं। हमने कहा था कि भ्रष्टाचार को रोकना हमारी पहली प्राथमिकता है, उसके बाद विकास मुद्दा होगा। आप रिकार्ड देखेंगे, तो ग्रामीण कनेक्टिवटी में हमको 17 अवार्ड मिले हैं। हमने गांव में ग्रोथ सेक्टर में काम किया, ताकि लोगों को गांव में ही रोजगार मिले। जहां पर जो चीज हमारे पास रॉ मैटेरियल के रूप में है, उसमें वैल्यू एडीशन कर मार्केट में उतारने का काम किया है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है। गांव की महिलाओं को काम मिला है। किसानों को हम एक लाख रु पए तक जीरो इन्टरेस्ट पर लोन दे रहे हैं।
इन्वेस्टर समिट करके आपने प्रदेश में निवेश लाने का एक बड़ा प्रयास किया है। निवेश आया भी है, फिर भी विपक्ष कह रहा है कि जितना निवेश आना चाहिए उतना नहीं आया।
17 वर्षो में पहली बार हमने इन्वेस्टर समिट उत्तराखंड में किया है। एक लाख 24 हजार करोड़ रु पए के एमओयू साइन हुए, जबकि किसी तरह की कोई टैक्स सब्सिडी नहीं दी गई। आज 21 हजार करोड़ से ज्यादा एमओयू ग्राउन्ड हो चुके हैं, जबकि पिछले 17 सालों में लगभग 39 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट आया। उसमें भी स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का आशीर्वाद रहा। ऐसी स्थिति में विपक्ष क्या कहता है, मैं इसकी परवाह नहीं करता हूं। हमारे पास अभी दो साल बाकी है, जिसमें और निवेश आएगा।
आपने देवस्थान तीर्थ बोर्ड बनाया, तब भी तीर्थ पुजारी इसका विरोध कर रहे हैं। आपके नेता सुब्रमण्यम स्वामी इसके विरोध में हाई कोर्ट चले गए हैं। क्या आपने पहले इन लोगों को विश्वास में नहीं लिया था?
इस पर हमारी काफी चर्चा मंत्रीगणों के साथ हुई। उत्तराखंड में जिस तरह से यात्रियों/श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ रही है, हमको भविष्य को ध्यान मे रखकर तैयारी करनी थी। आज उत्तराखंड में आल वेदर रोड बन रहा है, रेल लाइन बन रही है, एयर कनेक्टिविटी बढ़ी है। केदारनाथ मंदिर समिति पर सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता था। सरकार को इसमें शामिल होना ही पड़ा। अधिसंख्य पुजारी हमारे साथ हैं। इससे श्रद्धालुओं को भी ज्यादा से ज्यादा सुविधा मिल सकेगी। प्रधानमंत्री जी का इसमें विशेष आशीर्वाद रहा। यमुनोत्री जी और गंगोत्री जी के लिए भी मास्टर प्लान है। इन सब वजहों से ही देवस्थान बोर्ड बनाया गया है। हरिद्वार में 2021 में होने वाला महाकुंभ बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी ने 2019 में प्रयाग में सम्पन्न हुए सफलतम महाकुंभ से एक बड़ी लकीर खींच दी है।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर आपने चौका लगा दिया। इसके लिए आपने कैबिनेट और अपने राजनीतिक मित्रों से चर्चा की या फिर अपनी इच्छा शक्ति से यह फैसला लिया?
इसके लिए मैं थोड़ा पृष्ठभूमि में जाना चाहूंगा। जब 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड राज्य बना, तो उस समय लोगों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं थीं। जो ब्यूरोक्रेसी थी, उसको लगता था कि तनख्वाह मिलेगी कि नहीं। एक आशंका थी कि मैदान और पहाड़ की यहां पर लड़ाई होगी, लेकिन यहां के नागरिकों ने इसको निर्मूल कर दिया। इसी तरह की आशंका गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने को लेकर लोग पाले हुए थे। 4 मार्च को गैरसैंण को जब ग्रीष्मकालीन राजधानी डिक्लीयर किया गया, तब सदन चल रहा था। हमने जो भी किया, अपने घोषणा पत्र के अनुरूप किया। सरकार का यह फैसला जनभावनाओं का प्रकटीकरण है। लेकिन मैं इससे ही खुश नहीं हूं, हम उसका सुनियोजित विकास चाहते हैं। हम चाहते हैं कि एक ऐसी ग्रीष्मकालीन राजधानी बने, जो देश के अंदर एक मॉडल राजधानी हो। हम गैरसैंण को इस तरह से विकसित करेंगे कि हमको फाइल न ले जानी पड़े। इसके अभाव में उसकी हालत जम्मू-कश्मीर की तरह हो जाएगी।
पलायन की समस्या पर पहली बार आपकी सरकार ने ध्यान दिया। लेकिन पलायन रोकने को लेकर जो परिणाम आने चाहिए, वह परिणाम सामने नहीं आए।
देखिए, जो पलायन हुआ है वह आजादी के पहले से ही शुरू हुआ है। पलायन कोई चार दिन में हुआ है या राज्य बनने के बाद हुआ है, ऐसा नहीं है। राज्य बनने के बाद जो पलायन हुआ है, वह राज्य के अंदर हुआ है। आप देखेंगे 55 प्रतिशत जो पलायन हुआ है, उन्होंने गांव तो छोड़ा है लेकिन आसपास के कस्बों में चला गया है। इसलिए हमारी सोच यह बिल्कुल नहीं है कि उन्हें हम चार दिन में वापस ले आएंगे। हम चाहते हैं कि जो लोग यहां हैं, वो यहीं पर रु के जो लोग आ सकते हैं, वे वापस आएं। इसके लिए हमने सबसे पहले ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग बनाया। हमारा मानना है कि जब हम सुविधाए देंगे, तो लोग फिर क्यों पलायन करेंगे?
मुख्यमंत्री जी, नारायण दत्त तिवारी के बाद अगर तीन साल का कार्यकाल किसी मुख्यमंत्री ने पूरा किया है, तो वह आप हैं। आपने ऐसा क्या किया, जिससे समाज में यह संदेश गया कि सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है?
देखिए, तिवारी जी का कद बहुत ऊंचा था, उनके पास बहुत अनुभव था। मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है। लेकिन राजनीति में कई बार हम लोग बहुत तेज दौड़ने की कोशिश करते हैं। राजनीति कोई दौड़ का खेल नहीं है, राजनीति सोच-समझ का खेल है। सही समय पर सही निर्णय का खेल है। निर्णय दौड़कर मत लीजिए, चलकर लीजिए।
कोरोना वायरस की समस्या पूरे देश में है। कमोवेश उत्तराखंड में भी काफी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। इससे निपटने के लिए सरकार ने क्या प्रयास किए हैं?
मैं यह कह सकता हूं कि राज्य सरकार ने कोरोना वायरस पर बहुत समय पर निर्णय लिया है। इसे महामारी घोषित किया है। जैसे ही मुझे नेपाल में कोरोना वायरस की खबर मिली, मैंने तुरंत भारत सरकार से इस विषय पर बात की। कोरोना को लेकर तमाम तरह के एहितायत हैं, वह बरते जा रहे हैं। तत्काल हमने सभी विश्वविद्यालय और विद्यालयों में अवकाश घोषित कर दिया है।
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