सपा-कांग्रेस गठबंधन: दंगल में सब दांव पर

Last Updated 10 Feb 2017 12:23:04 PM IST

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनावी अखाड़े में उतरे भाजपा, सपा-कांग्रेस गठबंधन, बसपा के सियासी पहलवान मतदाताओं का दुलार पाने को ताल ठोंक रहे हैं.


सपा-कांग्रेस गठबंधन: दंगल में सब दांव पर

पिछले दो दशक में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कई सियासी गठबंधन इस क्षेत्र के मतदाताओं की कसौटी पर रहे. इस बार चुनाव दंगल में भाजपा, बसपा और रालोद एकला चलो की राह पर है तो सपा और कांग्रेस अपने विरोधियों को साझा चुनौती दे रही है.

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने यहां साझा चुनाव रैली में अपने अपने कार्यकर्ताओं से गठबंधन धर्म निभाने को बार-बार कहा. दोनों दलों के स्थानीय चेहरे विरोधियों को गठबंधन धर्म मजबूत होने का अहसास कराने का कोई मौका नहीं चूक रहे है.

तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि सपा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का ज्यादा फोकस अपनों के लिए मेहनत करने पर नजर आ रहा है. वहीं दोनों दलों के लिए एक दूसरे को अपना परंपरागत वोट ट्रांसफर कराने की बडी चुनौती है.

लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, हर बार चुनाव दंगल में मतदाताओं का सियासी मिजाज बदला. चुनाव नतीजों ने इसका सभी को अहसास कराया. किसी समय मंडल (आरक्षण) और कमंडल (हिन्दुत्ववाद) की बही बयार में मतदाताओं ने भाजपा का ‘कमल’ खिलाने को तरजीह दी. सत्ता के सफर में ‘कमल’ थोड़ा मुरझाया तब बसपा और बाद में सपा ने इस क्षेत्र में जनाधार पर पकड़ मजबूत की.

सत्ता पाने की ललक रही हो या फिर विरोधियों को चुनाव दंगल में अपेक्षित ‘धोबी पछाड़’ लगाने की चाहत, मगर चुनाव दंगल में दूसरे दल के जनाधार की ‘बैशाखी’ का जुगाड़ करने के लिहाज से भाजपा, बसपा, सपा, कांग्रेस और रालोद अछूता नहीं रहा है. 1993 में सपा और बसपा सियासी गठबंधन कर यूपी की सत्ता तक पहुंची. बाद में दोनों दलों की राहे जुदा हो गयी.

इसके बाद बसपा ने सत्ता के लिए सियासी दोस्ती की मगर चुनाव दंगल में उसने किसी दल से गठबंधन नहीं किया. भाजपा ने 2002 में हुए विधानसभा चुनाव व 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में रालोद के जनाधार की वैशाखी का सहारा लिया, तो 2012 में कांग्रेस ने रालोद का साथ लिया. रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह ने अपने राजनीतिक सफर में कोई स्थानीय दुश्मन या फिर दोस्त नहीं होता. इसका बखूबी अहसास कराया.

इस बार सपा और कांग्रेस सियासी दोस्ती कर चुनाव दंगल में अपने विरोधियों को साझा चुनौती दे रहे है. इन दोनों दलों ने चुनाव दंगल में विरोधियों को साझा चुनौती देने की हुंकार भरी तब विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था. सपा और कांग्रेस पिछले ढाई दशक के सफर में एक दूसरे की नीतियों को कोसते रहे. कांग्रेस ने तो ‘27 साल यूपी बेहाल’ यात्रा निकाली. कांग्रेस उपाध्यक्ष ने खाट सभाएं की तब कांग्रेस के निशाने पर सपा सरकार भी रहीं. गठबंधन पर विधिवत मोहर लगने के बाद दोनों दलों के दिग्गज गले मिले. दोनों दलों के पदाधिकारियों के बीच सियासी दूरियों पर ब्रेक लगा.

चुनाव के प्रथम चरण में पश्चिमी प्रदेश प्रदेश में मेरठ और सहारनपुर मंडलों के सात जनपदों की 34 सीटों पर 11 फरवरी को मतदान होना है. सभी दलों के प्रत्याशी मतदाताओं के दर पर दस्तक देने को गली-कूंचों का रूख कर रहे है. यूपी में सपा ने लगभग 25 फीसदी सीटे गठबंधन धर्म के तहत कांग्रेस के खाते में दी मगर मेरठ और सहारनपुर मंडलों में जिन सीटों पर पहले चरण में मतदान होना है, के बंटवारे में सपा ने कांग्रेस के प्रति ज्यादा दरियादिली दिखाई.

इन 34 सीटों में से सपा ने कांग्रेस को 12 सीट बागपत, शामली, खुर्जा (सुरक्षित), शिकारपुर, स्याना, दादरी, पुरकाजी (सुरक्षित), मेरठ दक्षिण, मेरठ कैंट, गाजियाबाद, मुरादनगर, साहिबाबाद दी है. सभी 34 विधानसभा क्षेत्रों में इस गठबंधन धर्म के तहत सपा की ‘साइकिल’ को कांग्रेस के सूरमा अपने ‘हाथ’ से रफ्तार देने का दम भर रहे है.

वहीं सपा के अलंबरदार भी कांग्रेस के ‘हाथ’ को राजनीतिक गर्दिश के चक्रव्यूह से निकालने का भरोसा दिला रहे है. दोनों दलों के प्रत्याशियों के चुनाव कार्यालयों, प्रचार अभियान, चुनाव सभाओं में सपा व कांग्रेस के स्थानीय चेहरे गठबंधन धर्म निभाने का एक दूसरे को अहसास करा रहे है. सभी 34 सीटों में से कांग्रेस का प्रत्याशी हो या फिर सपा का प्रत्याशी इस सियासी दोस्ती को खुद के लिए संजीवनी के तौर पर आंक रहे है.

गठबंधन धर्म में खुद का जनाधार बढ़ने की उन्हें आस लगी है. दोनों दलों के लिहाज से इस क्षेत्र में कांग्रेस से कही ज्यादा सपा का जनाधार है इसमें किसी को संदेह नहीं है. इस क्षेत्र में सीट दर सीट अलग समीकरण होने का सभी को अहसास हो रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि सपा और कांग्रेस का अपना परंपरागत वोट वैंक गठबंधन धर्म निभाने को कितना ईमानदार रहता है.
 

बृजेश जैन


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