ऐसे तो अखिलेश यादव अकेले पड़ जाएंगे!

Last Updated 22 May 2023 02:48:03 PM IST

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप सफलता न मिलने से निराश सपा मुखिया अखिलेश यादव की बेचैनी बढ़ गई है, वहीं खबर यह भी है कि रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत आगामी चुनावों में उस गठबंधन से अलग हो जाएं जिसमे सपा शामिल है।


ऐसे तो अखिलेश यादव अकेले पड़ जाएंगे!

 हालांकि इन दोनों नेताओं के बीच खटपट की ख़बरें नगर निकाय चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान ही देखने और सुनने को मिलने लगीं थीं, फिर भी दोनों नेताओं ने अपने-अपने मतभेदों को छुपाकर चुनाव लड़ लिया था, लेकिन आपसी मनमुटाव की जो शुरूवात चुनाव पूर्व हुई थी, उसकी पटकथा लगभग लिखी जा चुकी है। इसकी पहली झलक कर्नाटक में देखने को मिली। जब मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में जयंत चौधरी तो पहुँच गए पर अखिलेश यादव नहीं जा पाए। जबकि सबको पता था कि वहां शपथ ग्रहण के बहाने विपक्षी एकता की झलक पूरे देश को दिखाना था। ऐसे में अनुमान यही लगाया जा रहा है कि  जयंत चौधरी अपनी पार्टी का भविष्य कांग्रेस में तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।

आज उत्तर प्रदेश में विपक्ष की दो सबसे पड़ी पार्टियां सपा और बसपा के कार्यकर्त्ता दुविधा में हैं। कुछ जातिगत समीकरणों के आधार पर पिछले कई वर्षों से सत्ता का स्वाद चख चुकी यह दोनों पार्टियां अभी भी उसी ढर्रे पर  राजनीति करना चाह रही हैं। हालांकि सत्ताधारी पार्टी भाजपा भी कमोबेश उसी ढर्रे पर काम करते हुए आज सत्ता पर काबिज है, लेकिन उसने अपनी एक मजबूत पकड़ बना ली है। खासकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अपनी कार्यशैली से एक तबके में अपनी पकड़ ज्यादा मजबूत कर ली है। उनकी अपराधियों के खिलाफ की जा रही कार्यवाई से प्रदेश के अधिकाँश लोग खुश हैं। फिलहाल उनकी छवि अभी जो बनी हुई है उसे देखते हुए उन्हें सत्ता से हटाने में अन्य पार्टियों को वर्षों इन्तजार करना पडेगा। ऐसे सबसे बड़े राजनैतिक संकट में सपा दिखाई दे रही है। चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज और जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल भले ही छोटी पार्टियां हों लेकिन इनके साथ आ जाने से सपा को कुछ न कुछ फायदा जरूर मिल रहा था। अब जानकारी यह मिल रही है कि रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी सपा प्रमुख अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं।

इन दोनों नेताओं के बीच की नाराजगी का सिलसिला नगर निकाय चुनाव के दौरान ही शुरू हो गया था। मेयर की कई सीटों पर रालोद अपने प्रत्यासी खड़ा करना चाहती थी, जिसमें से मेरठ की सीट विशेष थी। यहाँ से चौधरी जयंत अपनी पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के सरधना विधायक की पत्नी को मेरठ का प्रत्यासी बना दिया था, जिनकी वहां से बुरी तरह से हार भी हो गई। जयंत चौधरी, अखिलेश यादव से कहते रहे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी के साथ जाट बिरादरी की वोटें हैं लिहाजा मेरठ से उनके प्रत्यासी को ज्यादा फायदा मिलेगा, लेकिन उन दोनों नेताओं की बात नहीं बन पायी। चुनाव पूर्व उनके बीच की तल्खियां जो परदे के भीतर थी अब वह खुलकर सामने आने लगी हैं।

देश के अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनैतिक पार्टियों के लिए अब सबसे बड़ी परीक्षा लोकसभा चुनाव में होने वाली है। 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष की सभी पार्टियां एकजुट होने की कोशिश में लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश की सभी पार्टियां भी किसी न किसी के साथ गठबंधन जरूर करेंगीं। सभी पार्टियां इसी गुना भाग में लगी हैं कि किसके साथ जाने से कितना फायदा या नुकसान होने वाला है। मायावती हालांकि पहले ही कह चुकी हैं की वह 2024 का लोकसभा चुनाव किसी भी पार्टी के साथ मिलकर नहीं लड़ेगीं। ऐसे में बचती हैं सपा और रालोद।

 जयंत चौधरी को कांग्रेस में संभावना कुछ ज्यादा दिखाई दे रही है। सपा मुखिया अखिलेश ने अभी तक कुछ भी खुलकर नहीं कहा  है जबकि उन्हें पता है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी अकेले दम पर अब शायद कुछ कर नहीं पायेगी। दूसरी तरफ जिस तरह से कर्नाटक में कांग्रेस को जीत मिली है उसे देखते हुए संभव है कि मुस्लिम वोटर भी इस बार कांग्रेस के पक्ष में खड़ा होता हुआ दिखाई दे। अगर लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने कांग्रेस को वोट दे दिया और जयंत चौधरी भी कांग्रेस के साथ हो लिए तो अखिलेश यादव को अपनी सीट भी बचानी भरी पड़  जाएगी।
Akhilesh Yadav will be left alone like this!

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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