अखिलेश, जयंत चौधरी और चंद्रशेखर ने महू से क्या संदेश दिया?
मध्यप्रदेश के महू में सपा मुखिया अखिलेश यादव, रालोद प्रमुख चौधरी जयंत और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने शुक्रवार को हुंकार भरी। मौका था बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती का। इन नेताओं की सक्रियता देखकर मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार सोचने पर जरूर मजबूर हुई होगी।
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आखिर मध्यप्रदेश में इन नेताओं की सक्रियता के मायने क्या हैं। मध्यप्रदेश की राजनीति में इनकी क्या भूमिका होने वाली है। इनकी सक्रियता को देखकर सवाल यह भी पैदा होता है कि मध्यप्रदेश में ये किसका ज्यादा नुकसान करेंगे? भाजपा या कांग्रेस का? आखिर इन नेताओं की मंशा क्या है?
मध्यप्रदेश में वैसे भी अब तक दो ही पार्टियां, कांग्रेस या भाजपा की सरकारें बनती आ रही हैं। पिछले दो दशक से वहां भाजपा की सरकार है। बीच में एक डेढ़ साल के लिए कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन कांग्रेस के नेताओं की आपसी कलह के कारण उनके हाथ से सत्ता चली गई थी,और भाजपा के शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए थे। अखिलेश यादव, चंद्रशेखर उर्फ रावण और चौधरी जयंत तीनों एक साथ हैं। इनके गठबंधन ने अभी कुछ महीना पहले उत्तर प्रदेश की खतौली विधानसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की थी। अखिलेश यादव आजकल वैसे भी दलित नेताओं को अपने पाले में करने की कोशिश करने में लगे हुए हैं। कुछ दिन पहले रायबरेली में उन्होंने कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था। उन्होंने वहां से प्रदेश के दलितों को एक संदेश देने की कोशिश की थी कि उनकी पार्टी दलितों की सच्ची हितैषी है।
14 अप्रैल को अखिलेश मध्यप्रदेश के महू में थे। महू वही जगह है, जहां पर संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था। इन तीनों नेताओं ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 132 वीं जयंती के अवसर पर उनकी उनकी प्रतिमा फूल मालाएं चढ़ाईं। श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस समय उत्तर प्रदेश के दलित वोटरों पर सबकी निगाहें लगी हैं। मायावती, कभी दलित वोटरों पर 100 प्रतिशत करती थीं। लेकिन आज उत्तर प्रदेश का दलित उनसे दूर होता दिख रहा है। अखिलेश ही नहीं भाजपा को भी अच्छी तरह पता है कि उत्तर प्रदेश का दलित वोटर इस समय दुविधा में है। भाजपा भी इस कोशिश में है कि दलितों को अपने पाले में कैसे किया जाए।
हालांकि पिछले कई चुनाव में भाजपा को दलितों का अच्छा खासा वोट प्राप्त हुआ था। उत्तर प्रदेश में मायावती के बाद दलित का दूसरा सबसे बड़ा नेता बनने की राह पर है चंद्रशेखर। अखिलेश को उम्मीद है कि चंद्रशेखर के भरोसे दलितों को अपने पाले में कर पाने में सफल हो जाएंगे। जबकि जयंत चौधरी को पूरा भरोसा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट उनके साथ मजबूती से खड़ा होता हुआ दिखाई देगा। इस समय सभी पार्टियों की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनाव में लगी हैं।
अखिलेश यादव ने अभी तक देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के साथ जाने को लेकर कोई इशारा नहीं किया है, जबकि कांग्रेस के साथ मिलकर ही विपक्षी एकता की पहल की जा रही है। अखिलेश भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की बात करते हैं लेकिन अभी तक उन्होंने ऐसी कोई पहल नहीं की है, जिससे पता चल सके कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले वह उस गठबंधन में शामिल होंगे? जिसमें कांग्रेस भी होगी। ऐसे में अखिलेश यादव क्या करेंगे, किसके साथ खड़े होंगे,यह सवाल, विपक्ष को एकजूट करने की कोशिश में लगे नेताओं को परेशान करता रहेगा।
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