भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक नयी दवा विकसित की है जो दवा प्रतिरोधी जीवाणु के खिलाफ शक्तिशाली एंटीबायोटिक की प्रभावशीलता को बहाल कर सकती है।

|
अधिकारियों ने बताया कि शोधकर्ताओं की टीम ने एक नया अणु तैयार किया है, जो एंटीबायोटिक-‘मेरोपेनम’ के साथ मिलकर केपीसी-2 उत्पादक क्लेबसिएला न्यूमोनिया के कारण होने वाले संक्रमण का इलाज करता है। क्लेबसिएला निमोनिया एक सुपरबग है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के शीर्ष प्राथमिकता वाले खतरों में सूचीबद्ध किया गया है।
यह शोध प्रतिष्ठित ‘जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री’ में प्रकाशित हुआ है और उम्मीद है कि यह ‘सुपरबग’ को लक्षित करने वाले भविष्य के दवा-विकास प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
आईआईटी-रुड़की के जीवविज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग की प्रधान अन्वेषक रंजना पठानिया ने कहा, ‘‘यह सफलता दुनिया की सबसे गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक रोगाणुरोधी प्रतिरोध का एक आशाजनक समाधान प्रस्तुत करती है। हमारा यौगिक प्रतिरोध तंत्र को निष्क्रिय करता है और पूर्व चिकित्सीय मॉडल में मजबूत चिकित्सीय परिणाम प्रदर्शित करता है।’’
नया खोजा गया अणु बीटा-लैक्टामेज अवरोधक दवाओं के एक वर्ग से संबंधित है, जो जीवाणु एंजाइम को जीवनरक्षक एंटीबायोटिक दवाओं को विघटित करने से रोकता है। यौगिक 3बी अत्यधिक विशिष्ट है, मानव कोशिकाओं के लिए सुरक्षित है और प्रतिरोधी जीवाणुओं को मारने के लिए मेरोपेनम के साथ सह-क्रियात्मक रूप से कार्य करता है।
आईआईटी-रुड़की के निदेशक के.के. पंत ने कहा, ‘‘यह नवाचार वैश्विक चुनौतियों के लिए प्रभावशाली वैज्ञानिक समाधान विकसित करने की आईआईटी-रुड़की की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। बढ़ते एंटीबायोटिक प्रतिरोध के मद्देनजर, इस तरह के शोध प्रभावी और सुलभ उपचारों के लिए महत्वपूर्ण आशा प्रदान करते हैं।’’
पंत ने कहा कि चूंकि एंटीबायोटिक प्रतिरोध वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के लिए खतरा है, ऐसे में इस तरह के नवाचार प्रभावी उपचारों के लिए नयी उम्मीद जगाते हैं और अग्रणी जैव चिकित्सा अनुसंधान में भारत के योगदान को मजबूत करते हैं।
| | |
 |