उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट: उम्मीदों से ज्यादा बड़ी चुनौतियां

Last Updated 27 Feb 2018 01:41:10 PM IST

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले दिनों हुई इन्वेस्टर्स समिट को लेकर अनेक उम्मीदों के साथ-साथ इस कार्यक्रम में हस्ताक्षरित शुरुआती निवेश समझौतों (एमओयू) को जमीन पर उतारने की बड़ी चुनौती भी मौजूद है.


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

आर्थिक जानकारों की नजर में इन्वेस्टर्स समिट में आये एमओयू जमीन पर सौ फीसद उतरे तो उत्तर प्रदेश की तकदीर बदल सकती है.

पिछली 21-22 फरवरी को राजधानी में आयोजित उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट में करीब चार लाख 28 हजार करोड़ रुपये के एक हजार से ज्यादा एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये.

हालांकि पिछला अनुभव बताता है कि पूर्व में प्रदेश में हुए एमओयू में से 70 प्रतिशत तक परियोजनाएं धरातल पर नहीं उतर सकी हैं.

एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी.एस. रावत ने इस बारे में कहा कि लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट आयोजित कराकर राज्य सरकार ने निश्चित रूप से बड़ा काम किया है लेकिन एमओयू में लिखी परियोजनाओं को जमीन पर उतारना सबसे अहम होगा.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को निवेश की इच्छुक कम्पनियों के साथ मुस्तैदी से सम्पर्क बनाये रखते हुए परियोजनाओं की समयबद्ध स्थापना कराने पर जोर देना होगा. अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश की तस्वीर और तकदीर बदल जाएगी. तब सूबे का सकल घरेलू उत्पाद बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा.

रावत ने यह भी कहा कि देश के अन्य कई राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी निवेश परियोजनाओं के लटके होने की गम्भीर समस्या है.

उन्होंने एसोचैम द्वारा किये गये एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि वित्त वर्ष 2012 से 2017 के बीच करीब नौ लाख करोड़ रुपये के 1050 एमओयू पर दस्तखत हुए थे, मगर उनमें से 606 परियोजनाएं अभी तक धरातल पर नहीं उतर सकी हैं.

रावत ने बताया कि वित्त वर्ष 2012 में जहां निवेश परियोजनाओं के धरातल पर नहीं उतरने का प्रतिशत 52 था, वही वर्ष 2017 में यह बढ़कर 70 फीसद हो गया. इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के परियोजनाओं के लटकने की समस्या कितनी गंभीर है.

उन्होंने राज्य सरकार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक विशेष निगरानी समिति गठित करने का सुझाव देते हुए कहा कि इससे परियोजनाओं का तेजी से क्रियान्वयन हो सकेगा.
इस बीच, प्रदेश के औद्योगिक विकास आयुक्त अनूप चंद्र पाण्डेय ने प्रदेश में लम्बित निवेश परियोजनाओं के बारे में पूछे जाने पर बताया कि राज्य सरकार ‘इम्प्लीमेंटेशन मैकेनिज्म‘ बना रही है. इससे परियोजनाओं के धरातल पर उतरने की प्रक्रिया में निश्चित रूप से तेजी आएगी.

उन्होंने कहा कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर एमओयू की प्रगति का जायजा लेने का संकल्प व्यक्त किया है और उनकी निगरानी में एक ऐसा तंत्र विकसित किया जा रहा है, जिसमें परियोजनाओं की अनदेखी की कोई सम्भावना ही ना बचे.

आर्थिक विषयों के जानकार आलोक पुराणिक ने कहा कि इन्वेस्टर्स समिट के दौरान हुए एमओयू का चार लाख 28 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा काफी अच्छा लग रहा है लेकिन मूल बात यह है कि उद्योगपति किसी भी राज्य में निवेश से पहले स्थितियों को कम से कम तीन कसौटियों पर कसता है. पहला मूलभूत ढांचा, दूसरा कर रियायत और तीसरा कानून व्यवस्था. उत्तर प्रदेश को अभी इन पर बहुत काम करना बाकी है.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति पहले के मुकाबले बेहतर है लेकिन अभी यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसी नहीं है. निवेशकों को इन राज्यों के बजाय उत्तर प्रदेश की तरफ आकर्षित करने के लिये सरकार को उन्हें कर में वांछित छूट भी देनी चाहिये.

पुराणिक ने कहा कि कानून-व्यवस्था भी एक अहम कसौटी है.

उन्होंने कहा कि समिट तो बहुत अच्छा है, उम्मीदें भी बड़ी हैं लेकिन मुझे एकदम से कोई नतीजा नहीं दिखता. इसके लिये कम से कम डेढ़ से दो साल का इंतजार करना होगा.

भाषा


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