इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में खनन पर रोक हटाई
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार को एक बड़ी राहत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की नयी खनन नीति मंजूर कर दी है, जिसमें ई निविदाओं के जरिये केवल पांच वर्ष की अवधि के लिए गैर नवीकरणीय पट्टे देने की व्यवस्था है.
![]() (फाईल फोटो) |
मुख्य न्यायधीश डी. बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने सोमवार को यह आदेश पारित करते हुए राज्य में खनन गतिविधियों पर रोक हटा दी और राज्य में अवैध खनन की ओर ध्यान आकषिर्त करने वाली जनहित याचिकाओं का निपटान कर दिया.
पिछले साल जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्तारूढ़ थी, तब अदालत ने 28 जुलाई को राज्य में अवैध खनन की जांच करने का सीबीआई को निर्देश दिया था.
इससे करीब एक महीने पहले अदालत ने पूरे प्रदेश में खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी थी. अदालत ने यह आदेश उन याचिकाओं पर पारित किया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2012 में खनन के पट्टे खत्म होने पर भी इसे अधिकारियों द्वारा \'अवैध रूप से बढ़ा दिया गया.\'
कल इस अदालत को महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह द्वारा नयी नीति से अवगत कराया गया. सिंह राज्य सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए थे.
उन्होंने कहा कि नयी नीति के मुताबिक, राज्य के प्रत्येक जिले में खनन विभाग के अधिकारियों की एक टीम गठित की जाएगी. यह टीम उन क्षेत्रों का निर्धारण करेगी जो खनन के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे. साथ ही टीम यह निर्धारण भी करेगी कि किस क्षेत्र से कितनी मात्रा में खनिजों का खनन किया जाएगा.
महाधिवक्ता ने कहा कि शुरआत में ई निविदाओं के जरिये छह महीने की अवधि के लिए \'अस्थायी खनन परमिट\' दिए जाएंगे. सरकार को आगामी 15 जून तक पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलने की उम्मीद है और इसके बाद वह ई-निविदाओं के जरिये पांच साल की अवधि के लिए खनन के पट्टे देगी.
सिंह ने स्पष्ट किया कि पांच साल के पट्टे की मियाद खत्म होने पर खनन के पट्टे नए सिरे से दिए जाएंगे और समाप्त हो चुके पट्टों का नवीकरण नहीं किया जाएगा.
उन्होंने यह खुलासा भी किया कि मानसून को देखते हुए एक जुलाई से 30 सितंबर तक राज्य में किसी तरह की खनन गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी.
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