सपा टूटी तो फिर हम मुलायम के साथ भी नहीं होंगे: अमर सिंह

Last Updated 16 Jan 2017 06:39:26 AM IST

सपा का भविष्य क्या होगा? इसका फैसला सोमवार को चुनाव आयोग करेगा.


सपा महासचिव अमर सिंह (फाइल फोटो)

पार्टी टूटती है या बचती है. बचती है तो उसका स्वरूप क्या होगा? इस पर सभी की निगाहें हैं. जितनी चिंता मुलायम सिंह यादव को है. उससे कम चिंता अखिलेश यादव को भी नहीं है. रही बात दोनों खेमों में खड़े लोगों का तो उनका चिंतित होना स्वाभाविक है. इन सबके बीच दोनों ही खेमे विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों के नाम तय करने और उन्हें जिताने की तरकीब पर काम रहे हैं.

सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक यह है कि पार्टी और परिवार के बीच पूरे विवाद के सूत्रधार माने जाने वाले अमर सिंह तीन महीने के लिए देश से बाहर जा रहे हैं. जब वह देश लौटेंगे तब परिणाम आ चुके होंगे. इलाज के लिए अमर सिंह के लंदन और सिंगापुर जाने से सपा परिवार के स्वास्थ्य पर क्या फर्क पड़ेगा? यह सब कुछ चुनाव आयोग के फैसले के बाद पता चलेगा. हालांकि अमर सिंह ने यह स्पष्ट किया है कि अगर पार्टी टूटती है वह मुलायम के साथ भी नहीं खड़े होंगे. अखिलेश से तो वे पहले से ही दूर हैं.

मुलायम सिंह यादव की पार्टी और उनके परिवार के सदस्यों के बीच आपसी रिश्तों की डोर ऐसी-ऐसी जगह से टूटी है कि जुड़ने का सवाल ही नहीं उठता है. हालांकि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच पिता-पुत्र के नाते मिलना-जुलना जारी है.

चाचा शिवपाल सिंह यादव भी बीच-बीच में कभी मुलायम सिंह के घर तो कभी भतीजे मुख्यमंत्री के घर पर उनसे मिल ही लेते हैं. इन मुलाकातों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि विवाद परिवार का नहीं, बल्कि पार्टी और पावर से जुड़ा है. अखिलेश यादव ने कुछ महीने पहले इस पूरे विवाद पर अपनी बात रखते हुए एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि 'सारे विवाद की जड़ यह कुर्सी है जिस पर मैं बैठा हूं.'

दरअसल, अखिलेश सिर्फ इतना चाहते थे कि सरकार हमने चलाई है तो चुनाव में परीक्षा भी हमारी होगी. ऐसे में टिकट बांटने का अधिकार मेरा हो और मुझे मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाए. इस पर नेताजी पूरी तरह तैयार नहीं थे. शिवपाल यादव भी नेता जी की बात से सहमत थे. इसके विपरीत रामगोपाल यादव अखिलेश के पक्ष में खड़े थे. अब सब कुछ बिगड़ जाने के बाद नेताजी काफी मुलायम हो गए हैं.



चुनाव आयोग में पार्टी पर किसका हक सही है, इस पर 13 जनवरी को होने वाली सुनवाई से पहले नेताजी ने अखिलेश को सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया था. टिकट बांटने की बात तक कह डाली थी और तो और अमर सिंह  या शिवपाल को लेकर भी वह सब मान लेंगे, जो अखिलेश चाहते हैं. नेताजी को सिर्फ अब अपनी कुर्सी (अध्यक्ष) चाहिए. हालांकि अखिलेश अब किसी भी चीज पर फिलहाल तीन महीने के लिए समझौता करने को तैयार नहीं हैं. पिता-पुत्र के रिश्ते तो ठीक हैं पर राजनीति के इस खेल में नेताजी को पुत्र से कड़ी टक्कर ही नहीं, बल्कि हार मिली है.

सोमवार को आयोग का फैसला आएगा. अगर रामगोपाल द्वारा बुलाया गया विशेष अधिवेशन असंवैधानिक माना जाता है तो सपा नेताजी की रहेगी. वहीं, अखिलेश खेमे द्वारा दी गई दलील, जिसके समर्थन में लगभग पूरी पार्टी खड़ी है, सही मानी गई, तब क्या होगा? आयोग के फैसले का इंतजार सपा से जुड़े लोगों के अलावा विपक्षी दलों को भी है. इस फैसले के बाद ही उत्तर प्रदेश चुनाव के समीकरण समझ में आएंगे.

विनोद श्रीवास्तव


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