राजस्थान: बाल विवाह पूरी तरह नहीं रूके लेकिन सोच में बदलाव आया

Last Updated 28 Apr 2017 02:37:04 PM IST

राजस्थान में बाल विवाह रोकने के लिए चलाये जा रहे जागरूकता अभियान के बावजूद अक्षय तृतीया के अबूझ सावे पर नाबालिग बच्चों की शादियां नहीं रूक पा रही है.


फाइल फोटो

बाल विवाह रोकने के लिए 88 वर्ष पहले बने शारदा एक्ट में कई बदलाव किए गये लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता आज भी इन्हें नाकाफी मानते है.

इन कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकारी स्तर पर बाल विवाह रोकने के लिए रैली प्रदर्शन, भाषण प्रतियोगिताएं आदि खूब आयोजित की जाती है तथा इनका असर भी पड़  रहा है लेकिन दूरदराज के क्षेत्रों में इस कुरूति की जड़े आज भी जमी हुई है.

पहले ज्यादातर दूध मुंहे बच्चों को विवाह बंधन की डोर में बांध दिया जाता था लेकिन अब इसमें तो कमी आ गयी लेकिन 15 वर्ष के आसपास के बच्चे तो इस कुरीति का शिकार हो ही जाते है.
         
प्रदेश में खेतिहर लोग शिक्षा दीक्षा से ज्यादा बच्चों की शादी को प्रतिष्ठा का सवाल मानते है तथा जल्दी से जल्दी उनके हाथ पीले कर अपने को गंगा नहाया मानते है. एक जमाना यह भी था कि बड़े पैमाने पर होने वाले बाल विवाहों में मंत्री, विधायक और अन्य जन प्रतिनिधि वोट बैंक के लालच में अपनी उपस्थिति जरूर देते थे लेकिन कानून की कड़ाई से अब वे भी इससे बचने लगे है.

तत्कालीन कांग्रेस सरकार के एक मंत्री नाना लाल को जनजाति क्षेत्र में बाल विवाह में शामिल होना काफी महंगा पड़ा और उनकी कुर्सी छीन गई. इसके बाद जन प्रतिनिधियों ने काफी डर समा गया.


         
कानून का साथ पाकर अब कई बच्चे अपने मां-बाप के सामने भी खड़े होने लगे है. डर के कारण ही लोग अब बाल विवाह से बचने लगे है. सवाई माधोपुर की विधायक दीया कुमारी का मानना है कि बाल विवाह में शामिल होने वाले रिश्तेदार एवं अन्य लोगों को भी सजा का प्रावधान कानून में किया जाना चाहिए.
          
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की सहायक निदेशक मेघा रतन का मानना है कि बाल विवाह पूरी तरह नहीं रूक पाये लेकिन जागरूकता के कारण लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है. आंकड़ों के अनुसार भी पिछले दस वर्षो में बाल विवाह के मामले 65 प्रतिशत से घटकर 35 प्रतिशत रह गयी है.

 

वार्ता


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