तीन दिसंबर का न करें इंतजार : भूपेंद्र
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री खट्टर के उस बयान पर हैरानी जताई है जिसमें मुख्यमंत्री ने कहा था कि इस आंदोलन में हरियाणा के किसान शामिल नहीं है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा |
हुड्डा बोले कि तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ हरियाणा के किसान कई महीने से आंदोलनरत हैं। वह बार-बार सरकार से इन क़ानूनों को वापस लेने या एमएसपी क़ानून बनाने की गुहार लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री को बताना चाहिए कि क्या वे आंदोलनकारी किसानों को हरियाणावासी नहीं मानते। अगर ये किसान आंदोलन का हिस्सा नहीं तो पिपली में सरकार ने किन लोगों पर लाठीचार्ज कराया था। वो कौन लोग हैं जिन्हें हरियाणा पुलिस ने दिल्ली कूच से पहले हिरासत में लिया। हज़ारों किसान कहां के रहने वाले हैं, जिन पर हरियाणा सरकार ने मुक़दमे दर्ज किए हैं। सरकार को कायदे से तीन दिसंबर का इंतजार करने की बजाए जल्द किसानों से बात करनी चाहिए, नहीं तो आंदोलन और भी बड़ा हो सकता है।
हुड्डा ने कहा कि इतने बड़े आंदोलन के प्रति मुख्यमंत्री की ऐसी अनदेखी हैरान व अन्नदाता का अपमान करने वाली है। सरकार को पता होना चाहिए कि इस आंदोलन में हरियाणा व पंजाब के किसान कंधे से कंधा मिलाकर एकसाथ खड़े हुए हैं। यूपी, राजस्थान व अन्य राज्यों के किसानों का भी उन्हें समर्थन मिल रहा है। एक जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर हम किसानों की मांगों का पूर्ण समर्थन करते हैं। जब तक किसान ये लड़ाई जीत नहीं जाते, हम किसानों की मांगों के साथ मजबूती से खड़े हैं। हुड्डा ने कहा कि सरकार की तरफ से आंदोलन को कुचलने के लिए जो रवैया अपनाया गया, वह पूरी तरह अलोकतांत्रिक है। क्योंकि लोकतंत्र में हर नागरिक व हर वर्ग को अपनी जायज़ मांगों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है।
अब तक किसानों का पूरा आंदोलन शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन पूरे आंदोलन में हरियाणा सरकार की भूमिका नकारात्मक रही है। सरकार का काम जाम खुलवाना होता है, जाम लगाना नहीं। हुड्डा बोले कि सरकार का काम सड़कें बनवाना होता है, सड़कें खुदवाना नहीं। लेकिन सरकार ने किसानों को रोकने के लिए सड़कों को जाम भी किया और सड़कों को खुदवाया भी। शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हजारों किसानों पर एक साथ मुकदमे दर्ज करवा कर बीजेपी जेजेपी ने बता दिया है कि वह पूरी तरह किसान विरोधी सरकार है। इन लोगों को किसान से ज्यादा कुर्सी प्यारी है।
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