दिल्ली उच्च न्यायालय पशुओं के खिलाफ यौन अपराधों पर जुलाई में सुनवाई करेगा
दिल्ली उच्च न्यायालय पशुओं के खिलाफ यौन अपराध में शामिल लोगों पर मुकदमा चलाने की याचिका पर जुलाई में सुनवाई करेगा।
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मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने 28 मई को मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई के लिए स्थगित की, ताकि याचिकाकर्ता और अधिक तथ्य रिकॉर्ड पर ला सके।
भारतीय पशु संरक्षण संगठन महासंघ (एफआईएपीओ) ने अपनी जनहित याचिका में नयी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) को ‘‘पूर्ण रूप से निरस्त’’ करने पर प्रकाश डाला।
याचिका में कहा गया कि 2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले के फैसले में उच्चतम न्यायालय ने सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए आईपीसी की धारा 377 की सही तरीके से व्याख्या की थी, लेकिन बीएनएस में इसे पूरी तरह हटा देने से पशुओं के खिलाफ यौन हिंसा अनजाने में अपराध की श्रेणी से बाहर हो गई।
अधिवक्ता वर्णिका सिंह के माध्यम से दायर याचिका में उस प्रावधान को बहाल करने का अनुरोध किया गया है, जो विशेष रूप से आईपीसी की धारा 377 के तहत पशुओं के खिलाफ यौन अपराधों को अपराध मानता है।
जनहित याचिका में अकेले अप्रैल में राष्ट्रीय राजधानी में दर्ज किए गए इस तरह के कुछ अपराधों का उल्लेख किया गया है।
शाहदरा इलाके में एक व्यक्ति को कई कुत्तों के साथ कथित रूप से बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जबकि एक पालतू कुत्ता, जिसकी बाद में मौत हो गई थी, साकेत में एक सड़क पर बेहोश पाया गया था और उसके अंदरुनी अंगों से एक कंडोम बरामद किया गया था।
जनहित याचिका में कोयंबटूर की एक घटना का भी उल्लेख किया गया है, जहां एक निर्माण श्रमिक को एक कुत्ते का यौन शोषण करते हुए पाया गया था।
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