नागरिकों को अपने सार्वजनिक दस्तावेजों पर सही जानकारी पाने का अधिकार : दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आधिकारिक जन्म प्रमाणपत्रों की ‘‘सत्यता की अवधारणा’’ को रेखांकित करते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को एक छात्र के विवरण में सुधार करने का निर्देश दिया है।
![]() दिल्ली उच्च न्यायालय |
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वी. शंकर की पीठ ने यह कहते हुए सभी आधिकारिक दस्तावेजों के एक-दूसरे के अनुरूप किये जाने की ‘‘तत्काल आवश्यकता’’ को रेखांकित किया कि इससे न केवल सार्वजनिक दस्तावेजों में विशिष्ट विवरणों पर निश्चितता होती है, बल्कि जन्म तिथि के साथ एक नागरिक की पहचान को संरक्षित करने में भी मदद मिलती है।
अदालत ने कहा, ‘‘इस देश का नागरिक खुद से संबंधित सार्वजनिक दस्तावेजों पर सभी आवश्यक और प्रासंगिक विवरणों का सही और सटीक विवरण पाने का हकदार है। सीबीएसई काफी महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रखने वाला संस्थान है।’’
पीठ ने यह टिप्पणी 1999 में जारी प्रमाणपत्रों में एक छात्र की जन्मतिथि को सही करने के एकल न्यायाधीश के निर्देश के खिलाफ केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की अपील खारिज करते हुए की।
इस मामले में, पीठ ने सीबीएसई द्वारा दस्तावेज की अनदेखी करने का कोई ठोस कारण नहीं पाया।
पीठ ने कहा कि एक नागरिक को अपने सार्वजनिक दस्तावेजों पर सभी आवश्यक और प्रासंगिक विवरणों का सही एवं सटीक विवरण प्राप्त करने का अधिकार है और दसवीं कक्षा के प्रमाणपत्र को ‘‘जन्म तिथि का अकाट्य प्रमाण’’ माना जाता है।
प्रतिवादी ने ग्रेटर चेन्नई निगम द्वारा जारी जन्म प्रमाण-पत्र के आधार पर सीबीएसई प्रमाणपत्रों में सुधार की मांग की थी।
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