‘सैलरी मुद्दे पर मुख्यमंत्री हस्तक्षेप करें’
दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों के प्राचार्यों की एसोसिएशन ने उपमुख्यमंत्री से कहा कि स्टूडेंट फंड से कॉलेज स्टाफ को सैलरी नहीं दी जा सकती।
दिल्ली यूनिवर्सिटी |
यहां तक कि एक फंड को दूसरे फंड में पैसा स्थानांतरित करना भी गैरकानूनी है। स्टूडेंट फंड से सैलरी देने की परंपरा शुरू हुई तो इससे निजीकरण होगा। डीयू कॉलेजों की प्रिंसिपल एसोसिएशन ने बृहस्पतिवार को यहां आयोजित ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहीं।
प्रिंसिपल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ जसविंदर सिंह और सेक्रेटरी डॉ मनोज सिन्हा ने कहा कि उपमुख्यमंत्री द्वारा डीयू कॉलेजों को लेकर को दिए गए बयान पर दुख और विरोध जताया। प्राचार्यों ने उपमुख्यमंत्री द्वारा प्राचार्यों पर फंड के दुरुपयोग के आरोप पर नाराजगी जताई साथ ही स्टूडेंट फंड से सैलरी दिए जाने को गैरकानूनी कहा। डॉ सिंह ने कहा कि स्टूडेंट फंड का इस्तेमाल स्टूडेंट से जुड़ी गतिविधियों के लिए होता है। हम फंड का दुरुपयोग नहीं कर रहे लेकिन उपमुख्यमंत्री स्टूडेंट फंड से सैलरी देने को कहकर फंड का दुरुपयोग करने को कह रहे हैं। पांच साल में फंड दोगुना किए जाने की उपमुख्यमंत्री की बात पर भी एसोसिएशन ने ऐतराज जताया। उन्होंने कहा कि लगता है, उन्हें जानकारी नहीं या गलत जानकारी दी गई है। कॉलेजों को फंड दोगुना इसलिए दिया गया, क्योंकि हर साल स्टाफ का वेतन बढ़ता है, इसके साथ पेंशन भी बढ़ती है। सरकार के वेतन आयोग की सिफारिश और अन्य नियम के चलते ऐसा होना अनिवार्य होता है। ऐसे में फंड ज्यादा दिया जाना स्वाभाविक है। इसका अर्थ ये नहीं है कि फंड को दोगुना कर दिया गया।
एसोसिएशन के अनुसार को सत्र 2019-20 में 12 कॉलेजों 245 करोड़ रुपए दिए गए। जबकि सत्र 2020-21 में 270 करोड़ रुपए की जरूरत है। 270 करोड़ रुपए में से सरकार 37.5 करोड़ रुपए दे चुकी है। लिहाजा अब कॉलेजों को 202.5 करोड़ रुपए फंड की जरूरत है। एसोसिएशन ने एक अन्य बयान पर भी आपत्ति जताई कि एक कॉलेज ने 25 लाख रुपए दान में दे दिए। एसोसिशन ने कहा कि यदि कोई कॉलेज सरकार की अटल इनक्यूबेशन योजना में आवेदन करता है, जिसमे दस करोड़ रुपए का ग्रांट मिलता है तो इस ग्रांट को हासिल करने के लिए कॉलेज को 25 लाख रुपए की गारंटी राशि के तौर पर देनी होती है। ये दुखद है कि उपमुख्यमंत्री इस धनराशि को दान में दिया धन बता रहे हैं।
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