MP में बसपा,सपा और आप को नकार दे जनता, तो ही बनेगी बहुमत की सरकार !

Last Updated 26 Jun 2023 02:56:33 PM IST

2023 के आखिर में इस बार देश कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इनमें से एक राज्य है मध्य प्रदेश। वहां भाजपा की सरकार अपने किले को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, जबकि कांग्रस, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को हटाकर अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है, लेकिन इन दोनों पार्टियों की कोशिशों को पलीता लगाने की जिम्मेदारी एक बार फिर उन पार्टियों ने संभाल ली है, जो बाकी राज्यों में तो बड़ी पार्टी हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के हिसाब से वह छोटी पार्टी हैं।


MP political parties

 कर्नाटक चुनाव में जिस तरीके से वहां की जनता ने दो पार्टियों को ही सत्ता में आने लायक समझा और कांग्रेस पर अपनी मुहर लगा दी। अगर मध्य प्रदेश की जनता ने भी यही ट्रेंड अपना लिया तो यह तय है कि इस बार मध्य प्रदेश में या तो कांग्रेस की सरकार बनेगी या फिर भाजपा की। यानी उन दोनों पार्टियों में से किसकी सरकार बनेगी यह बहुत हद तक तय करेंगे, बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी जैसे दल।

 2018 के विधानसभा चुनाव में हालांकि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली थी। वह अलग बात है कि सबसे बड़े दल के रूप में वहां कांग्रेस उभरकर सामने आई थी, लेकिन उसे सरकार बनाने के लिए बसपा, सपा और कुछ निर्दलीय विधायकों का सहयोग लेना पड़ा था। सहारे की बैसाखी पर चल रही कांग्रेस की सरकार लगभग 15 महीनों के बाद तब गिर गई थी, जब 22 विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में भाजपा का दामन थाम लिया था,और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में मध्य प्रदेश सरकार की बागडोर आ गई थी। इस बार परिस्थितियां कुछ बदली हुई हैं। चुनाव शुरू होने में अभी आठ,नौ महीने का वक्त बाकी है, उसके पहले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी ने कांग्रेश का दामन थाम लिया है। उनके अलावा पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह और मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता शंकर महतो भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

 हालांकि भाजपा इन नेताओं के कांग्रेस में जाने को लेकर इतनी बेचैन नहीं है। भाजपा का मानना है कि नेताओं के काग्रेस में जाने से उनकी पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन कांग्रेस इसे बड़ी उपलब्धि बता रही है। भाजपा अपने नेताओं का कांग्रेस में शामिल होने को लेकर भले ही बेचैन होने की बात ना कर रही हो लेकिन कर्नाटक में ऐसे ही कुछ भाजपा के नेता चुनाव से पहले कांग्रेस में चले गए थे, जिसका परिणाम वहां क्या हुआ पूरे देश ने देख लिया।

 उधर शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव से पहले लाडली बहना योजना चलाकर महिलाओं के बीच पैठ बनाने की कोशिश की है। इस योजना के तहत मध्य प्रदेश की सरकार महिलाओं को 1000 प्रति माह दे रही है, हालांकि वो अलग बात है कि जिस रेवड़ी कल्चर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गलत परंपरा करार दिया था, बावजूद इसके शिवराज सिंह चौहान ने वहां लाडली बहना योजना की  शुरुआत कर दी है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की तैयारियां जोरों पर है, और दोनों ही पार्टियां सरकार बनाने के दावे कर रही हैं, लेकिन इन दोनों पार्टियों के दावों को सही साबित करने की जिम्मेदारी सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी के कंधों पर होगी।

 मध्य प्रदेश की जनता ने अगर कर्नाटक की जनता जैसा विचार बना लिया और उन पार्टियों को नजरअंदाज कर दिया जो खुद की सरकार बना ही नहीं सकती, जैसे कि बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी तो निश्चित तौर पर वहां की जनता या तो भाजपा के पक्ष में वोट करेगी या फिर कांग्रेस के पक्ष में। लेकिन अगर जनता ने सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को भी  जिताने की कोशिश की तो संभव है कि एक बार फिर मध्यप्रदेश में त्रिशंकु वाली स्थिति देखने को मिल जाएगी।

 2018 में पिछले 15 वर्षों से चल रही बीजेपी की सरकार को कांग्रेस ने हटाकर अपनी सरकार भले ही बना ली थी, लेकिन उन्हें छोटी पार्टियों के सहारे ही सत्ता हासिल हो पायी थी। तो कुल मिलाकर मध्यप्रदेश की स्थिति यह है कि वहां जनता क्या सोचती है और वहां के हिसाब से छोटी पार्टियों को कितना तवज्जो देती है। यानी कुल मिलाकर यही यही कहा जा सकता है कि सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी के वोटर ही तय करेंगे कि मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनती है।

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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