बिहार में मचा सियासी तूफान, एक बार फिर पलटी मार सकते हैं नीतीश कुमार

Last Updated 08 Aug 2022 01:31:42 PM IST

बिहार में एक बार फिर सरकार बदल सकती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत की है। हालांकि रविवार रात को हुई फोन पर बातचीत का पूरा विवरण अभी ज्ञात नहीं है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि दोनों नेताओं ने बिहार में नई सरकार के गठन पर चर्चा की।


टेलीफोन पर हुई बातचीत का असर पटना में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा और पार्टी विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने रणनीति बनाने के लिए सदाकत आश्रम में अपने विधायकों की एक बैठक बुलाई है।

जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने पहले ही अपने विधायकों को पटना पहुंचने के लिए कहा है। राजद के विधायकों की मंगलवार को सुबह नौ बजे बैठक होगी और उसी दिन सुबह 11 बजे जदयू के विधायकों की बैठक होगी।

बिहार में कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल होने की संभावना है।

शनिवार और रविवार की रात नीतीश कुमार की पहले ही राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ दो बैठकें हो चुकी हैं। इसके बाद उन्होंने सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत की।

उधर डैमेज कंट्रोल में लगी बीजेपी के पास विकल्प नहीं हैं। सूत्रों ने बताया कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व 2024 तक सत्ता में बने रहना चाहता है लेकिन साथ ही जदयू पर कटाक्ष भी कर रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने अन्य नेताओं के अलावा नीतीश कुमार सरकार पर अक्सर हमला बोला है।

31 जुलाई को पटना में अमित शाह और जेपी नड्डा का रोड शो बीजेपी और जद (यू) के बीच खटास भरे राजनीतिक संबंधों में आखिरी कील साबित हो सकती है।

भाजपा ने बिहार के 200 विधानसभा क्षेत्रों में 'प्रवास' कार्यक्रम किया, जिसे जद (यू) काफी नाराज है। पार्टी के थिंक टैंक ने महसूस किया कि भाजपा गठबंधन के मानदंडों का उल्लंघन कर रही है। इसलिए, जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि भाजपा सभी 243 सीटों पर प्रवास कार्यक्रम करने के लिए स्वतंत्र है और जद (यू) भी ऐसा करने का हकदार है।

बिहार में अगर नई सरकार का गठन होता है तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे, जैसा कि उन्होंने 2017 में महागठबंधन का साथ छोड़ने और बाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद किया था। उस समय नीतीश कुमार जानते थे कि राज्यपाल की नियुक्ति भाजपा करती है और वह राज्य में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाएगी।

फिलहाल वही राज्यपाल राजभवन में हैं। नीतीश कुमार के पास अपने मंत्रिमंडल से भाजपा के हर मंत्री को बर्खास्त करने और राजद, कांग्रेस और वाम दलों के विधायकों को मंत्री नियुक्त करने की शक्ति है। उन्होंने 2013 में भी ऐसा ही किया था और वह 2022 में भी इसे दोहरा सकते हैं।

यदि भाजपा राज्यपाल पर नीतीश कुमार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहने का दबाव डालती है, तो वह राजद, कांग्रेस और वाम दलों की मदद से इसे साबित कर देंगे।

बीजेपी के ट्रैक रिकॉर्ड से नीतीश कुमार भी असहज महसूस कर रहे हैं। भगवा पार्टी वर्षों से अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल की तरह अपने गठबंधन सहयोगियों को कमजोर कर रही है। नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर वह ज्यादा समय तक बीजेपी के साथ रहे तो इससे उनकी पार्टी को नुकसान हो सकता है। ललन सिंह पहले ही कह चुके हैं कि बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग (चिराग पासवान) मॉडल का इस्तेमाल कर जद (यू) के खिलाफ साजिश रची थी। नतीजतन, पार्टी बिहार विधानसभा में 43 सीटों पर सिमट गई। 2015 में जद (यू) के पास 69 सीटें थीं।

नीतीश कुमार एनडीए से बाहर निकलने के लिए बीजेपी के मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों का इस्तेमाल कर सकते हैं। राम सूरत राय, भूमि सुधार और राजस्व मंत्री, स्थानांतरण-पोस्टिंग मामले के आरोपों का सामना कर रहे हैं और डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों को 'हर घर नल का जल' के ठेके आवंटित करने के भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं।

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद बड़े भाई की भूमिका में चल रही भाजपा को राज्य में नियम तय करने के लिए गृह मंत्रालय जैसे अहम पद से वंचित कर दिया गया। इसलिए उसने सत्ता में रहते हुए नीतीश कुमार सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी। हालांकि, अभी यह पता नहीं चल पाया है कि बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशन में ऐसी नीति चुनी या संजय जायसवाल जैसे नेता अपने दम पर नीतीश कुमार पर कड़ा प्रहार कर रहे थे।

सूत्रों का कहना है कि बिहार में भाजपा के दो उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व निर्देश दे रहा है।

ये नेता सुशील कुमार मोदी की तरह नीतीश कुमार और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच सेतु की भूमिका निभाने में सक्षम नहीं हैं। नतीजा यह रहा कि बीजेपी धर्मेंद्र प्रधान को दो बार पटना भेज चुकी है, लेकिन अमित शाह और जेपी नड्डा के रोड शो और 200 विधानसभा सीटों पर प्रवास कार्यक्रम ने नीतीश कुमार के मन में काफी नाराजगी पैदा कर दी।

आईएएनएस
पटना


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