कोरोनाकाल में किसान की बगिया के अन्दर उग रहा इम्यूनिटी बूस्टर

Last Updated 13 Aug 2020 03:24:11 PM IST

उत्तर प्रदेश गोंडा जिले के रायपुर गांव निवासी वंशराज मौर्य अपनी बगिया में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इम्यूनिटी बूस्टर वाले औषधीय पौधे उगा रहे हैं।


बगिया के अन्दर उग रहा इम्यूनिटी बूस्टर (प्रतीकात्मक फोटो)

वह इन पौधों के मिश्रण से तैयार काढ़ा आसपास के गरीबों को नि:शुल्क देते हैं। उनकी इस मुहिम को काफी सराहना मिल रही है।

वंशराज ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में बताया कि कोरोना संकट के दौरान औषधीय पौधों से काढ़ा और अर्क बनाकर गरीबों को नि:शुल्क दे रहे हैं। इसके अलावा गिलोय या अन्य औषधियों के डंठल और पत्तियां दे रहे हैं। कोरोना के समय से यहां पर करीब 100 से अधिक लोग हमारे काढ़ा और औषधियों को नि:षुल्क ले गये हैं। गिलोय तुलसी से बना काढ़ा कोरोना से लड़ने में बेहद कारगर हो रहा है। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है। इसलिए गरीबों को नि:शुल्क दिया जा रहा है।

वंशराज के पुत्र शिवकुमार मौर्य ने बताया कि कोरोना संकट को देखते हुए लोगों को गिलोय, नीम-तुलसी का काढ़ा जरूरतमंदों को नि:शुल्क दे रहे हैं। अब तक तकरीबन 100 से अधिक लोग इसे ले जा चुके हैं। इसके अलावा एलोविरा जूस, पपीता का अर्क, नींबू द्वारा तैयार अम्लबेल की बहुत ज्यादा मांग रहती है। इसे हम लोग बनाकर एक बोतल में तैयार करते है। कुछ निर्धन लोग हमारे यहां से पत्तियां और डंठल भी ले जाते हैं। इसके अलावा जो पौधा ले जाते है उन्हें भी दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि पिता वंशराज मौर्य ने आपातकाल के समय नसबंदी के लिए जबरिया दबाव बनाने पर नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वर्ष 1980 में एक एकड़ खेत अपने खाते की बागवानी के लिए आरक्षित कर देश के कई प्रांतों से फल-फूल व वनस्पतियों का संग्रह करना शुरू कर दिया। इसके लिए शहरों में लगने वाली पौधशालाओं -- नागपुर, पंतनगर व कुमार गंज स्थिति कृषि विश्वविद्यालयों का भ्रमण कर जानकारी हासिल की। चार दशक में देश-प्रदेश के पौधे यहां फल-फूल रहे हैं।

बकौल वंशराज, बागवानी के लिए आरक्षित एक एकड़ भूमि के अतिरिक्त दो एकड़ भूमि और है। उन्में सब्जी, गन्ना, धान, गेहूं की खेती के साथ बागवानी से लगभग दो से 3 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। उनके इस अभियान में उनका परिवार भी सहयोग करता है।

इन्होंने अपने बगीचे में दो सौ से भी ज्यादा पेंड़-पौधों की प्रजातियां संजो रखी है। इनके अलावा पांच तरह की तुलसी, वेलपत्र, लैमन ग्रास, काला वांसा, जलजमनी, स्तावर, वोगनबेलिया, हरड़, बहेड़ा, अंजीर और आंवला के अलावा हर तरह की परंपरागत और उपयोगी वनस्पति की प्रजाति यहां मौजूद है। इन्होंने यहां नर्सरी भी विकसित की है, जिसमें हर साल हजारों पौधे तैयार होते हैं।

इसके अलावा तेजपत्ता, इलायची, इरानी खजूर, बिना बीज का अमरुद, नींबू की दस प्रजातियां, चकोतरा की दो प्रजातियां, छोटा- बड़ा तीन प्रकार के नारियल, लीची, सेब, नाशपाती, वालम खीरा, चीकू, आंवला की दो प्रजातियां हाथी झूल, रुद्राक्ष, चंदन सफेद व लाल, अमरुद 15 प्रजातियों के, पान का पौधा दो तरह के , हींग, बेर, लौंग, धूप का पेड़, अनानास व मुसम्मी इनकी वाटिका की शोभा बढ़ा रहे हैं।



 

आईएएनएस
गोंडा


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