जिसने जीती दिल्ली, उसने किया देश पर राज
देश की राजधानी दिल्ली में वैसे तो लोकसभा की केवल सात सीटें हैं, लेकिन पिछले 22 वर्ष के दौरान हुए पांच आम चुनाव के आंकड़ों पर नजर डाली जाये तो जिसने दिल्ली की इन संसदीय सीटों पर फतह हासिल की, उसी की केंद्र में सरकार बनी।
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वैसे भी ऐसी आम धारणा है कि दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें पर जीत-हार देश के मूड का भी संकेत दे जाता है। इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जहां 2014 के चुनाव में सातों सीटों पर मिली जीत को एक बार फिर दोहराने में जुटी हुई है तो वहीं कांग्रेस 2009 का बदला लेने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही। आम आदमी पार्टी (आप), जिसने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर सभी राजनीतिक पंडितों के गणित को पूरी तरह झुठला दिया था, वह भी पूरे दम खम के साथ ताल ठोंक रही है। देखना यह है कि त्रिकोणीय मुकाबले में दिल्ली की सात संसदीय सीटों पर ऊंट किस करवट बैठता है।
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के इतिहास को देखा जाये तो 1998 से ऐसा संयोग बना है कि जिसने इन सीटों को फतह किया, उसी ने केंद्र में सत्ता का स्वाद चखा। 1998 के आम चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सात सीटों में से छह पर विजय हासिल की। उस समय करोलबाग सीट सुरक्षित हुआ करती थी और इस पर कांग्रेस की मीरा कुमार विजयी हुई थीं।
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार सत्तारूढ़ हुई। कई दलों के सहयोग से बने एनडीए गठबंधन की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाई और मात्र 13 माह के भीतर इस सरकार का पतन हो गया। इसके बाद 1999 में फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा की झोली में दिल्ली की सातों सीटें आईं और उसके फिर एक बार वाजपेयी की अगुआई में केंद्र में गठबंधन वाली सरकार बनाई और इसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 में दिल्ली में सीटों के हिसाब से 1998 का इतिहास दोहराया गया लेकिन इस बार भाजपा की जगह कांग्रेस ने सात में से छह सीटें फतह कीं और भाजपा केवल दक्षिण दिल्ली की सीट ही हासिल कर पाई। चुनाव में भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा ने कांग्रेस के आर के आनंद को शिकस्त दी। कांग्रेस के डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई में केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार बनी।
पंद्रहवी लोकसभा के लिए संसदीय सीटों के परिसीमन के बाद 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सातों सीटों पर विजय पाई और डॉ सिंह एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बने।
सोलहवीं लोकसभा में नजारा एकदम विपरीत था। कांग्रेस दिल्ली की एक भी सीट नहीं बचा पाई और केंद्र में भी उसकी सरकार को जाना पड़ा। भाजपा ने नरेंद्र मोदी की अगुआई में सोलहवां लोकसभा चुनाव लड़ा और केंद्र में सरकार बनाई। 30 वर्षों के बाद यह पहला मौका था जब केंद्र में पहली बार किसी पार्टी ने बहुमत के आंकड़े को पार किया था। चुनाव एनडीए गठबंधन के तहत लड़ा गया था। मोदी ने केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया।
सत्रहवीं लोकसभा के लिए सात चरणों में मतदान होना है। पांच चरणों का मतदान हो चुका है और छठे चरण के मतदान के दौरान 12 मई को दिल्ली की सभी सातों सीटों पर वोट डाले जायेंगे। भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों ही अपनी जीत के लिए पूरे दम खम के साथ मैदान में हैं। देखना यह है कि क्या पिछले 22 साल का इतिहास फिर दोहराया जायेगा कि जो पार्टी दिल्ली में विजय हासिल करती है वही केंद्र में सरकार बनायेगी या यह रिकॉर्ड टूटेगा।
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