लालकृष्ण आडवाणी के बाद ये दिग्गज नेता भी हो सकते हैं चुनावी रेस से बाहर
भारतीय जनता पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी अब पार्टी के खेवनहार नहीं होंगे। भाजपा आडवाणी के बिना पहली बार चुनाव में उतरेगी।
ये दिग्गज नेता भी हो सकते हैं चुनावी रेस से बाहर (फाइल फोटो) |
पार्टी अब आडवाणी के बिना ही चुनाव मैदान में होगी। 75 की आयु पार चुके भुवन चंद्र खंडूरी, भगत सिंह कोश्यारी, कलराज मिश्र और संभवत: डॉ. मुरली मनोहर जोशी के चुनावी राजनीति का अवसान हो गया है। अब पार्टी पूरी तरह से मोदी-शाह की पकड़ में आ गई है।
भाजपा ने होली के दिन अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की। इस सूची में लालकृष्ण आडवाणी का नाम न देख सबको हैरानी हुई। आडवाणी की विरासत को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को सौंपा गया है।
1951 में भारतीय जनसंघ और 1980 में भारतीय जनता पार्टी गठन में सह-संस्थापक रहे। 1980 में भाजपा के गठन के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष और लालकृष्ण आडवाणी को महासचिव बनाया गया था। 1986 में आडवाणी भाजपा अध्यक्ष बने। इस पार्टी में जान तब फूंकी जब पार्टी ने 1989 में पालमपुर सम्मेलन में अयोध्या में रामंदिर बनाने का प्रस्ताव पारित किया। उसके बाद भाजपा को लोकसभा में 85 सीटें मिली। 1990 में उन्होंने रथ यात्रा निकाली और उसके बाद तो पार्टी का ग्राफ बढ़ता गया।
पार्टी को 1991 में 120, 1996 में 161, 1998 में 182 सीटें मिलीं। 1996 से लेकर 1998 के बीच भाजपा ने तीन बार केन्द्र में सरकार बनाई। वह केन्द्र सरकार में गृह मंत्री बने। 2002 में उन्हें उप-प्रधानमंत्री बनाया गया। 2004 में भाजपा को कांग्रेस से मात्र नौ सीटें कम मिली थी, जिसके कारण उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा।
2004 के चुनाव में उन्हें प्रधानंमत्री पद का दावेदार बनाया गया था, लेकिन देश की जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। वैसे तो 2004 के बाद ही उनके राजनीतिक जीवन का ढलान शुरू हो गया था। 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताकर उन्होंने आरएसएस की नाराजगी मोल ले ली। पहले उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से और फिर लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देना पड़ा।
2014 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद आडवाणी को कोई जिम्मेदारी नहीं गई। उन्हें राष्ट्रपति बनाए जाने की चर्चा थी लेकिन वह भी उन्हें नहीं मिला।
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