आपातकाल में मीडिया पर नियंत्रण के लिए पत्रकारों की हुई थी गिरफ्तारी

Last Updated 24 Jun 2025 11:37:54 AM IST

पत्रों पर सेंसरशिप, पत्रकारों की गिरफ्तारी और समाचार एजेंसियों का विलय, ऐसे ही कुछ तरीकों से इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ठीक 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल के 21 महीनों के दौरान सार्वजनिक विमर्श को नियंत्रित करने की कोशिश की थी।


सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा घोषित आपातकाल के दौरान, सरकार के हिसाब से काम करने से इनकार करने वाले 200 से अधिक पत्रकारों को विपक्षी नेताओं के साथ जेल में डाल दिया गया था।

पीटीआई के पूर्व प्रधान संपादक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एम के राजदान ने कहा, ‘‘सरकार ने चार समाचार एजेंसियों, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती का विलय करके एक समाचार एजेंसी ‘समाचार’ बना दी।’’

उन्होंने याद किया कि कैसे समाचार रिपोर्टिंग पर कड़ी निगरानी रहती थी और पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) में तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने यह सुनिश्चित किया कि अखबारों में सरकार के पक्ष में ही खबरें पहुंचें।

राजदान ने कहा, ‘‘पत्रकारों को संजय गांधी और पुरुषों की जबरन नसबंदी से जुड़े उनके परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रशंसा करने तथा विपक्ष से संबंधित खबरों को कुछ पैराग्राफ में समेटने के लिए मजबूर किया गया।’’

वरिष्ठ पत्रकार एस वेंकट नारायण आपातकाल के दौरान 'ऑनलुकर' पत्रिका के संपादक थे। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें जो कुछ भी प्रकाशित करना होता था, उसकी पांडुलिपि पीआईबी में मुख्य सेंसर अधिकारी हैरी डी'पेन्हा के पास मंजूरी के लिए भेजनी पड़ती थी। 

इंडियन एक्सप्रेस के कुलदीप नैयर और ‘द मदरलैंड’ के केआर मलकानी सहित संपादकों को समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के प्रति सहानुभूति रखने वाली खबरें तथा इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय पर सनसनीखेज खबरें प्रकाशित करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। 

महात्मा गांधी द्वारा स्थापित नवजीवन प्रेस की मुद्रण सुविधाएं रोक ली गईं, जबकि महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी द्वारा संपादित साप्ताहिक ‘हिम्मत’ को कुछ आपत्तिजनक खबरों के कारण काफी राशि जमा करने के लिए कहा गया। 

लंदन में ‘द संडे टाइम्स’ के साथ काम कर रहे नारायण ने कुलदीप नैयर द्वारा लिखी गई एक किताब की समीक्षा करने के लिए इंदिरा गांधी के सूचना सलाहकार एच वाई शारदा प्रसाद की नाराजगी मोल ले ली थी। 

नैयर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री के अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ व्यवहार की तुलना स्कूली बच्चों के साथ एक प्रधानाध्यापिका के बर्ताव से की थी।

नारायण ने याद करते हुए कहा, ‘‘जब मैं द संडे टाइम्स के साथ तीन महीने की स्कॉलरशिप के बाद भारत लौटा, तो मैंने पाया कि दिल्ली पुलिस के कुछ पुलिसकर्मी हवाई अड्डे पर मेरा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मेरे सामान की तलाशी ली ताकि सुनिश्चित हो जाए कि मैं देश में कोई भी आपत्तिजनक सामान लेकर नहीं आया हूं।’’

सरकार ने नयी दिल्ली में 26 और 27 जून को अखबारों के संस्करणों को विलंबित करने या रद्द करने के लिए बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित समाचार पत्रों के कार्यालयों की बिजली आपूर्ति काट दी। 

सरकार ने उन समाचार पत्रों के विज्ञापनों को भी रोक दिया जो उसकी नीतियों की आलोचना करते थे।

आपातकाल की घोषणा के समय गोवा में आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में काम करने वाले धर्मानंद कामत ने कहा, ‘आपातकाल के दौरान गोवा में चार समाचार पत्र थे। इनके मालिक या तो उद्योगपति थे या फिर प्रिंटिंग प्रेस के व्यवसाय से जुड़े लोग। सभी ने सरकारी लाइन का पालन किया।’’

नागपुर से संचालित दैनिक ‘हितवाद’ के दिल्ली संवाददाता के रूप में काम करने वाले ए के चक्रवर्ती बताते हैं, ‘‘पीआईबी अधिकारियों के साथ झड़पें रोजमर्रा की बात थी, क्योंकि समाचार पत्रों को अगले दिन के संस्करण प्रकाशित करने के लिए मंजूरी मांगनी होती थी।’’

सरकार ने समाचार पत्रों को संपादकीय वाले कॉलम खाली छोड़ने पर भी चेतावनी जारी की। इंडियन एक्सप्रेस ने 28 जून, 1975 के अपने संस्करण में संपादकीय खाली छोड़ा था।

राजदान ने बताया कि कैसे चार समाचार एजेंसियों के जबरन विलय से बनी एजेंसी ‘समाचार’ ने आपातकाल के दौरान की घटनाओं की रिपोर्टिंग की।

राजदान ने कहा, ‘‘रिपोर्टरों को ध्यान रखना होता था कि सरकार नाराज न हो जाए। उदाहरण के लिए, दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की एक बड़ी रैली हुई थी। ‘समाचार’ को इसे कुछ पैराग्राफ में ही खत्म करना पड़ा, जबकि कई अखबारों ने इसे प्रमुखता से दिखाया।’’

उन्होंने शाह आयोग का उल्लेख किया जिसने आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों की जांच की थी।

मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने चार समाचार एजेंसियों को फिर से मूल स्वरूप में लौटाया।

राजदान ने कहा, ‘‘हमें फिर से स्वतंत्रता मिली।’’

कामत के अनुसार इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था, ‘‘मैंने भारत के संविधान का पालन किया है। आंतरिक और बाह्य आपातकाल लागू करने का प्रावधान है। जब कोई व्यक्ति सरकार के आदेशों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए पुलिस और सेना को बुलाता है, तो सरकार के प्रमुख के रूप में संविधान के तहत मेरे पास उपलब्ध शक्तियों का प्रयोग करना मेरा कर्तव्य है।’’

कामत के अनुसार गांधी ने कहा, ‘‘कोई भी शासक सेना और पुलिस को सत्ता के खिलाफ विद्रोह करने के लिए बुलाए जाने को बर्दाश्त नहीं कर सकता।’’

भाषा
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment