स्याही से उकेरी गई शांत क्रांति है संविधान: CJI ने ऑक्सफोर्ड यूनियन में कहा

Last Updated 11 Jun 2025 01:43:50 PM IST

भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने संविधान को ‘स्याही से उकेरी गई एक शांत क्रांति’ और एक परिवर्तनकारी शक्ति बताया, जो न केवल अधिकारों की गारंटी देती है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित लोगों का सक्रिय रूप से उत्थान करती है।


भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई

भारत के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले दूसरे दलित और पहले बौद्ध न्यायमूर्ति गवई ने मंगलवार को ऑक्सफोर्ड यूनियन में ‘प्रतिनिधित्व से लेकर कार्यान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना’ विषय पर अपने संबोधन में हाशिए पर पड़े समुदायों पर संविधान के सकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डाला और इस बात को स्पष्ट करने के लिए अपना स्वयं का उदाहरण दिया। 

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कई दशक पहले, भारत के लाखों नागरिकों को ‘अछूत’ कहा जाता था। उन्हें बताया जाता था कि वे अशुद्ध हैं। उन्हें बताया जाता था कि वे अपने लिए नहीं बोल सकते। लेकिन आज हम यहां हैं, जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पद धारक के रूप में खुलकर बोल रहा है।’’

उन्होंने कहा कि संविधान नागरिकों को बताता है कि ‘‘वे अपने लिए बोल सकते हैं, समाज और सत्ता के हर क्षेत्र में उनका समान स्थान है’’।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘आज ऑक्सफोर्ड यूनियन में, मैं आपके सामने यह कहने के लिए खड़ा हूं: भारत के सबसे कमजोर नागरिकों के लिए, संविधान केवल एक कानूनी चार्टर या राजनीतिक ढांचा नहीं है। यह एक भावना है, एक जीवन रेखा है, स्याही से उकेरी गई एक शांत क्रांति है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘नगरपालिका के स्कूल से लेकर भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद तक मेरी अपनी यात्रा में, यह एक मार्गदर्शक शक्ति रही है।’’

डॉ. बी.आर. आंबेडकर की विरासत का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के अपने अनुभव को न्याय की वैश्विक समझ में बदल दिया। 

भाषा
नई दिल्ली


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