मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं अदालतें : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 01 May 2025 08:50:47 AM IST

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अदालतें 1996 के मध्यस्थता और सुलह कानून के तहत मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं।


प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने एक के मुकाबले चार के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि कुछ परिस्थितियों में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का इस्तेमाल करके मध्यस्थता निर्णय को संशोधित किया जा सकता है। 

यह फैसला वाणिज्यिक विवादों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता फैसलों को प्रभावित करेगा।

हालांकि, फैसला सुनाते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने अदालतों को मध्यस्थता फैसलों को संशोधित करने में ‘‘सावधानी’’ बरतने का आदेश दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय की विशेष शक्तियों का इस्तेमाल फैसलों में बदलाव के लिए किया जा सकता है। लेकिन इस शक्ति का इस्तेमाल संविधान के दायरे में बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए।

हालांकि, न्यायमूर्ति के वी विनाथन ने असहमति जताते हुए कहा कि अदालतें मध्यस्थता के फैसलों में बदलाव नहीं कर सकतीं। बहुमत के फैसले में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें न्यायालयों द्वारा मध्यस्थता संबंधी निर्णयों को संशोधित करने के ‘‘सीमित अधिकार’’ का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस अधिकार का प्रयोग किसी भी लिपिकीय, गणना या मुदण्रसंबंधी त्रुटि को सुधारने के लिए किया जा सकता है, जो रिकॉर्ड में गलत प्रतीत होती है। बहुमत के फैसले में कहा गया कि इस अधिकार का प्रयोग ‘‘कुछ परिस्थितियों में निर्णय के बाद के हित को संशोधित करने’’ के लिए किया जा सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में ‘‘पूर्ण न्याय करने’’ के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है।

यह विवेकाधीन शक्ति न्यायालय को सख्त कानूनी आवश्यकताओं से आगे जाकर उन स्थितियों में न्याय सुनिश्चित करने की अनुमति देती है जहां मौजूदा कानून अपर्याप्त या अपूर्ण हो सकते हैं।     

अदालत ने तीन दिन तक पक्षों की सुनवाई के बाद 19 फरवरी को कानूनी मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में अंतिम सुनवाई 13 फरवरी को शुरू हुई थी, जब 23 जनवरी को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह मामला उसके समक्ष भेजा था।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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