अलविदा संसद भवन, 75 वर्षों से लोकतंत्र को दर्शाने वाला अब हुआ बेगाना

Last Updated 18 Sep 2023 03:26:21 PM IST

अलविदा पुरानी संसद , अंदाज तो कुछ ऐसा ही रहा होगा, पुरानी संसद में मौजूद सभी सांसदों का ,लेकिन अधिकांश सांसदों के चेहरों पर मायूसी छाई रही होगी।


Old and New Parliament house

सोमवार को देश के सभी सांसद जब पुरानी संसद भवन में गए तो सबके मन को कुछ चीजें कचोट रही थीं। ख़ास करके उन सांसदों को जो पिछले कई वर्षों से एमपी या राज्य सभा सदस्य बनते आ रहे हैं। सोमवार से संसद के विशेष सत्र की शुरुवात हुई। पीएम मोदी का भाषण हुआ ,लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कुछ बातें बताईं, लेकिन सोमवार को जो भी बातें वहां हुई, शायद वो सारी बातें संसद में वर्षों-वर्षों तक गूँजती रहेंगी। क्योंकि अब इस पुरानी संसद भवन में कोई सत्र नहीं चलेगा। मंगलवार से संसद का सत्र नए संसद भवन में चलेगा।

ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने पुराने संसद भवन को डिजाइन किया था। लगभग 96  वर्षों से यह भवन भारत के लोकतंत्र को संचालित करने में  अहम् भूमिका निभा रहा था। यह संसद भवन लोकतंत्र की यात्रा को अब तक दर्शता रहा है। नई संसद भवन बनकर तैयार है। पीएम नरेंद्र मोदी ने बीते 22 मई को उसका लोकार्पण कर दिया था। नई संसद भवन को गुजरात के वास्तुकार बिमल पटेल ने डिजाइन किया है। भले ही पुरानी संसद भवन को अंग्रेजों ने बनवाया था, लेकिन उसमें भारतीय मजदूरों का ही खून पसीना बहा था ।

पैसा भी भारत का ही लगा था। पुरानी संसद भवन निश्चित ही लोकतंत्र की प्रतीक थी, लेकिन नई संसद भवन ना सिर्फ लोकतंत्र की बल्कि भारतीय सभ्यता ,संस्कृति और भारतीय परम्पराओं की प्रतीक होगी। आज भले ही यह कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने इसे बनवाया है, लेकिन वर्षों बाद जब भी इसका जिक्र होगा तो लोग यहीं कहेंगे कि नई संसद भवन को बनाने में ना सिर्फ भारत के लोगों का दिमाग लगा, बल्कि मजदूरी से लेकर डिजाइन तक सब कुछ भारत के लोगों ने ही किया।

सोमवार को जब सभी सांसद पुरानी संसद भवन से निकले होंगे तो उनमें से बहुतों की आँखें डबडबाई होंगी। बहुत से सांसद अपनी- अपनी पुरानी यादों को सोचकर पीछे मुड़े होंगे। संसद को कई बार निहारा होगा। खैर प्रकृति का नियम है कि जो आता है, वह जाता भी है। ऐसे में एक न एक दिन पुरानी संसद भवन की जगह नयी संसद भवन बननी ही थी। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम, नई संसद बनवाने का सेहरा उनके सर पर तो बंध ही गया, और साथ ही साथ मोदी का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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