दिल्ली में LG सुपर बॉस, फिर दिल्ली की जनता का नेता कौन ?
दिल्ली सर्विस बिल सदन के दोनों सदनों से पारित हो गया। अब यह कानून बन गया। मतलब यह हुआ कि अब दिल्ली में जो भी फैसले होंगे वो उपराज्यपाल की मर्जी के वगैर नहीं होंगे।
![]() Arvind Kejriwal and V K Saxena |
यह कानून गलत है या सही इस पर बहुत दिनों तक चर्चा होती रहेगी, लेकिन राजनैतिक दृष्टिकोण से भविष्य में इसके व्यापक असर देखने को मिलेंगे। सबसे बड़ा असर यह होगा कि अब दिल्ली की जनता को यह मान लेना होगा कि केंद्र में जिस पार्टी की सरकार होगी, उसी पार्टी की सरकार अब दिल्ली में भी बनवानी पड़ेगी। क्योंकि राजनैतिक प्रतिद्वंदता के चलते केंद्र और दिल्ली में अगर एक ही पार्टी की सरकार नहीं बनती है तो दोनों के बीच खींचतान हमेशा चलती रहेगी।
ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित दिल्ली की जनता होगी। दिल्ली सर्विस बिल को लेकर सबकी अपनी अपनी दलीलें हैं। सबकी दलीलें सुनने के बाद एक बात आसानी से नहीं कही जा सकती कि उसमे कौन गलत है और कौन सही है। आज दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है। जबकि केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है। राजनैतिक पार्टियों का मकसद ही सरकार बनाना होता है। लिहाजा सबकी कोशिश होगी कि उनकी ही पार्टी की सरकार बने। लेकिन दिल्ली सर्विस का कानून बन जाने के बाद शायद दिल्ली की राजनीति का क्रेज ख़तम हो जाएगा।
दिल्ली विधान सभा चुनाव में होने वाली मारामारी अब शायद बंद हो जाएगी। हमेशा धरना और प्रदर्शन की बात करने वाली आम आदमी पार्टी और उसके नेता अब शायद दिल्ली में धरना देने की बात भूल जाएंगे। क्योंकि अब आम आदमी कुछ भी कर ले, फिलहाल दिल्ली सर्विस बिल में ना तो कोई संसोधन होने वाला है और ना ही इसकी जगह कोई दूसरा कानून आने वाला है। यह भी तय है कि अगले कई दशकों तक केंद्र में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं आने वाली है। हालाँकि आम आदमी पार्टी भी इण्डिया गठबंधन के साथ है।
ऐसे में अगर 2024 लोकसभा के चुनाव में इण्डिया गठबंधन की सरकार बन जाती है तो शायद आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपने मुताबिक़ कुछ करने में कामयाब हो जाएगी। इस बीच दिल्ली की जनता यह जरूर सोच रही होगी कि जब मुख्यमंत्री की मर्जी चलनी ही नहीं है तो फिर चुनाव किस बात के लिए हो रहा है। दिल्ली की जनता शायद यह भी सोचेगी कि उसके वोट से जीता हुआ विधायक अपनी मर्जी से कुछ करवा ही नहीं पायेगा तो फिर वोट देने से फायदा क्या होगा। यानी दिल्ली की जनता संभव है कि चुनाव को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह ना दिखा पाए। दिल्ली की जनता के मन शायद इस बात की भी शंका उत्पन्न हो रही होगी कि कहीं उसे फ्री में मिल रही बिजली और महिलाओं को फ्री बस यात्रा की सुविधा भी न वापस ले लिया जाय।
कुलमिलाकर इस कानून के बन जाने के बाद दिल्ली में अगले कई महीनों तक इस तरह की दुविधा बनी रहेगी। लेकिन सही मायनों में इस कानून का परिक्षण दिल्ली के अगले विधान सभा चुनाव में होगा। आने वाले जो भी चुनाव हैं, उसी के दौरान दिल्ली की जनता शायद बता देगी कि यह कानून कितना सही है और कितना गलत।
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