सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने कहा- अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया जा सकता

Last Updated 03 Aug 2023 07:48:52 AM IST

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) को संविधान के अनुच्छेद 370 (Article 370) के तहत हासिल विशेष दर्जे को हटाने के लगभग चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस पर सुनवाई शुरू की।


वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल

पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बहस की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कहा कि अनुच्छेद 370 (Article 370) को निरस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने विघटित होने से पहले कभी इसकी सिफारिश नहीं की।

चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की संविधान पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 अब अस्थायी प्रावधान नहीं है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद इसने स्थायित्व ग्रहण कर लिया है। संविधान पीठ ने पूछा कि फिर अनुच्छेद 370 को संविधान के भाग 21  के तहत एक अस्थायी प्रावधान के रूप में क्यों रखा गया, जिस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि संविधान निर्माताओं ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के गठन की भविष्यवाणी की थी और यह समझा गया था कि इस सभा के पास अनुच्छेद 370 का भविष्य निर्धारित करने अधिकार होगा। इस प्रकार, संविधान सभा के विघटन की स्थिति में जिसकी सिफारिश अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आवश्यक थी, प्रावधान को रद्द नहीं किया जा सकता था।

सिब्बल ने मामले के महत्व पर जोर देते हुए अपनी दलीलें शुरू कीं और इसे कई मायनों में ऐतिहासिक बताया। भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के संबंधों की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए सिब्बल ने सवाल किया कि क्या ऐसे रिश्ते को अचानक खारिज किया जा सकता है। यह स्पष्ट करते हुए कि जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण निर्विवाद था, सिब्बल ने हालांकि कहा कि संविधान ने जम्मू-कश्मीर के साथ एक विशेष संबंध की परिकल्पना की है। उन्होंने कहा कि इसमें चार मामले शामिल होंगे-1- भारत का संविधान; 2-जम्मू-कश्मीर में लागू भारत का संविधान; 3-जम्मू-कश्मीर का संविधान और; 4- अनुच्छेद 370

बकौल सिब्बल, मैं यह क्यों कहता हूं कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू था, इसका कारण यह है कि समय के साथ, कई आदेश जारी किए गए जिन्हें संविधान में शामिल किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश शक्तियां भारत के संविधान के अनुरूप थीं। सभी कानून लागू थे, इसलिए, इसे हटाने का कोई कारण नहीं था।

उन्होंने कहा कि भारतीय संसद स्वयं को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती। सिब्बल ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के साथ सहमति की आवश्यकता पर तर्क दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि क्षेत्र के संवैधानिक भविष्य को निर्धारित करने में संविधान सभा के सार को समझना महत्वपूर्ण था। संविधान सभा को परिभाषित करते हुए सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि यह एक राजनीतिक निकाय है, जिसे संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए बनाया गया था, जो कानूनी होने के बजाए एक राजनीतिक दस्तावेज भी था। एक बार अस्तित्व में आने के बाद संविधान के ढांचे के भीतर सभी संस्थान इसके प्रावधानों से बंधे थे। इसके बाद उन्होंने जोर देकर कहा कि मौजूदा संवैधानिक ढांचे के तहत भारतीय संसद खुद को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं कर सकती है।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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