PRB Act 1867 हो जाएगा विस्थापित, नए कानून के दायरे में होंगे सभी डिजिटल प्लेटफार्म ?
आज देश में करोड़ों ऐसे डिजिटल प्लेटफार्म मौजूद हैं, जिन पर हर तरह के समाचार परोसे जा रहे हैं। कथित तौर पर किसी भी चीज को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने की एक आदत सी बन गई है। जिसे देखो वही आज पत्रकार बनकर बैठ गया है।
![]() Anurag Thakur I&B Minister |
हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ पत्रकार ही खुलकर बोल सकते हैं। संविधान में मिली शक्ति के अनुसार देश का हरेक नागरिक मर्यादित भाषा में किसी के खिलाफ कुछ भी बोल सकता है, क्यों कि हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है, लेकिन अन्य लोगों की बातों पर यकीन न करके आज भी लोग मिडिया संस्थानों के लोगों की बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उन संस्थानों पर सरकार का नियंत्रण होना है। यानी कोई भी मीडिया संस्थान सरकार के एक कार्यालय से पंजीकृत होता है, चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या फिर प्रिंट मीडिया। अब यही नियंत्रण डिजिटल मिडिया पर होने वाला है।
केंद्र की सरकार प्रेस और पत्रिका पंजीकरण विधेयक मानसून सत्र में लेकर आ रही है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इस बिल को संसद में सोमवार को पेश कर सकते हैं। अगर यह बिल पारित हो जाता है तो देश का कोई भी डिजिटल प्लेटफार्म बिना अनुमति या बिना रजिस्ट्रेशन के नहीं चल सकता। यानि आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी खबर दिखा देता है, उस पर एक तरह से पाबन्दी लग जायेगी।
प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक का उद्देश्य ब्रिटिश युग के प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 को प्रतिस्थापित करना है। अब तक यही कानून देश में प्रेस और समाचार पत्रों को नियंत्रित करता है। प्रस्तावित विधेयक या यूँ कहिए, नया कानून डिजिटल समाचार मिडिया को सुचना और प्रसारण मंत्रालय के नियंत्रण में लाएगा। अगर इस कानून को संसद से मंजूरी मिल जाती है तो सभी डिजिटल मिडिया हाउसों को 90 दिन के भीतर प्रेस रजिस्ट्रार के दफ्तर में पंजीकरण कराना होगा। एक बार जिस भी डिजिटल समाचार संस्थान का पंजीकरण हो गया, उस पर पूरा नियंत्रण सरकार के उस इकाई का होगा जिसके अंतर्गत उन संस्थानों का पंजीकरण हुआ है।
उस इकाई के पास इतनी शक्ति होगी कि वह डिजिटल संस्थानों के पंजीकरण को रद्द कर सकता है , उनके खिलाफ कार्यवाई करने के साथ-साथ उन पर जुर्माना भी लगा सकता है। अगर कोई संस्थान नियमों का उलघन करता है तो उनके खिलाफ वैसी ही कार्यवाई होगी जैसा कि आज अन्य मीडिया हाउसों पर होती है। वर्तमान में डिजिटल मीडिया के लिए पंजीकरण की कोई प्रक्रिया नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक अपीलीय निकाय की स्थापना करेगा, जिसके सर्वेसर्वा भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष होंगे।
हालांकि 2019 में वर्तमान की सरकार ने एक मसौदा तैयार किया था, जिसके अंतर्गत डिजिटल मीडिया हाउसों को एक दायरे में लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उस समय विरोध के चलते वह विधेयक संसद में पेश नहीं हो सका था। लेकिन इस बार सरकार उस विधेयक को लेकर गंभीर है। पूरी संभावना जताई जा रही है कि यह विधेयक इस बार संसद के दोनों सदनों में पारित होकर कानून की शक्ल ले लेगा। अब सवाल यह पैदा होता है कि आज देश भर में डिजिटल मीडिया पर तमाम तरह के कांटेक्ट परोसे जा रहे हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी समाचार को डिजिटल प्लेटफार्म पर लोड करने से पहले यह भी नहीं सोचता कि उसके समाचार का देश की जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
ऐसे मीडिया हाउसों पर बहुत हद तक रोक लग जाएगी। लेकिन एक आशंका यह भी है कि क्या सरकार की गलत योजनाओं के खिलाफ या सरकार के द्वारा लापरवाही बरतने को लेकर अगर कोई समाचार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाता है तो, ऐसे पत्रकारों के खिलाफ या ऐसे कांटेक्ट के खिलाफ सरकार का रवैया क्या होगा। यहां यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं कानून बन जाने के बाद, सरकार का पूरा नियंत्रण तो इन पर नहीं हो जाएगा?
क्योंकि अभी तक इस विधेयक का जो ड्राफ़्ट बनाया गया है, उस ड्राफ्ट में वर्णित बातों का या वर्णित नियमों और कानूनों का जो जिक्र हुआ है, उससे देश के लोग अभी अंजान हैं, या बहुत कम लोग जानते हैं। इस विधेयक में सरकार ने कौन-कौन सी शर्तें लागू कर रखी हैं, इसकी भी जानकारी बहुत नहीं मिल पायी है। ऐसे में यह देखना भी बहुत जरूरी होगा कि डिजिटल मीडिया संस्थानों को अपने-अपने रजिस्ट्रेशन कराने के लिए किन- किन नियमों और शर्तों के साथ गुजरना पड़ता है।
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