आगामी लोकसभा चुनाव के बाद ऐसे खत्म हो जाएंगे पशुपति पारस और उनकी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी !
कुछ साल पहले लोकजनशक्ति को तोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस के राजनैतिक करियर पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
![]() Pashupati Paras ( File Photo) |
रामविलास पासवान की विरासत वाली लोकसभा सीट हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस इस बार हाजीपुर सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। जबकि वो उसी सीट से चुनाव लड़ने पर आमादा हैं। मंगलवार को एनडीए की बैठक में जिस तरीके से देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चिराग पासवान पर अपना प्यार बरसाया उसे देखकर पशुपति पारस भौचक्के रह गए। हालांकि मोदी का चिराग के प्रति यह अंदाज बाकी नेताओं को बहुत भाया। ऐसे में यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब चिराग को हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने से कोई नहीं रोक सकता। दूसरा सवाल यह पैदा हो रहा है कि अगर चिराग हाजीपुर से चुनाव लड़ते हैं तो फिर पशुपति पारस कहां जाएंगे ?
हालांकि बिहार में लोकसभा की छः सुरक्षित सीटें हैं। जिनके नाम,जमुई, गोपालगंज, सासाराम, गया,समस्तीपुर और हाजीपुर हैं। मतलब अनसूचित जातियों के लिए बिहार की 40 सीटों में से छः सीटें रिजर्व हैं, लेकिन हाजीपुर छोड़कर किसी अन्य सीट से पशुपति पारस का चुनाव जीतना आसान नहीं होगा, तो क्या यह मान लिया जाए कि पशुपति पारस की राजनीति अब खतम हो गई?
बिहार ही नहीं पूरे देश को पता है कि लोकजन शक्ति पार्टी को रामविलास पासवान ने बनाया था। उन्होंने बड़ी शिद्दत से उस पार्टी को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी, वो अलग बात है कि जितना उस पार्टी को आगे बढ़ना चाहिए था उतना वो बढ़ नहीं पायी।
लेकिन रामविलास पासवान ने अपने भाइयों को राजनीति में सेट कर दिया। उनके दोनों भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान कई बार विधायक और सांसद बन गए। अपने जीवित रहते हुए रामिवलास पासवान ने अपने बेटे चिराग पासवान को भी जमुई से सांसद बनवा दिया। यानि कुलमिलाकर उन्होंने अपने पूरे परिवार की एक राजनैतिक पहचान बनवा दी। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद जब कुछ पाने का मौक़ा मिला तो पशुपति ने वगैर कुछ सोचे समझे लोकजन शक्ति पार्टी को तोड़ दिया। उन्होंने अपने बड़े भाई रामविलास पासवान के सारे एहसानों को भुला दिया। अपने भतीजे की भावनाओं की कोई चिंता नहीं की।
अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोकजन शक्ति बनाकर एनडीए में शामिल हो गए। केंद्र में पशुपति मंत्री भी बन गए। हालांकि पशुपति के उस कदम से चिराग निश्चित ही बिलबिलाए होंगे। उन्हें काफी दुःख भी हुआ होगा। उन्हें अपमानित भी होना पड़ा होगा। लेकिन चिराग, अपमान का घूंट पीकर अपना काम करते रहे। अपनी पार्टी लोकजन शक्ति (रामविलास) को आगे बढ़ाते रहे। वो एक सुनहरे मौके की तलाश करते रहे। यह जानते हुए भी कि जब उनके चाचा पशुपति पारस पार्टी तोड़कर एनडीए में गए थे तो भाजपा की तरफ से भी उन्हें कोई ख़ास तवज्जो नहीं मिली थी। बावजूद इसके वो मोदी के प्रति अपनी आस्था जताते रहे। भाजपा के प्रति अपना लगाव दर्शाते रहे। उस बीच वो कहीं भी जा सकते थे, लेकिन उन्होंने कहीं जाने से बेहतर इन्तजार करना ज्यादा मुनासिब समझा।
उन्हें यकीन था कि एक न एक दिन उनका भी दौर आएगा। बीते मंगलवार को वो मौक़ा आ ही गया। मगलवार को दिल्ली के अशोका होटल में आयोजित एनडीए की बैठक में हालांकि 32 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे, लेकिन मोदी ने उन सभी पार्टियों के नेताओं में से किसी को अगर ज्यादा भाव दिया था तो वो थे चिराग पासवान। जिस तरीके से मोदी ने उनका गाल थपथपाया, उसे देखकर यही अनुमान लगाया गया कि शायद मोदी उनसे यही कह रहे थे कि बेटे चिंता मत करो हम तुम्हारे साथ हैं। मोदी का चिराग के प्रति यह प्यार और दुलार सभी नेताओं को अच्छा लगा होगा, लेकिन जिस समय मोदी, चिराग पासवान को दुलार रहे थे उस समय पास में खड़े चिराग के चाचा पशुपति पारस की भौंहें तनी हुई थीं। उन्हें अपनी राजनैतिक जमीन खिसकती हुई नजर आ रही थी।
उस मीटिंग में आए हुए सभी नेताओं की अपनी अपनी अपेक्षाएं होंगी। सभी पार्टी नेता इस उम्मीद में होंगे कि एनडीए की तरफ से उन सबको सम्मान जनक सीटें दी जायेंगीं। पशुपति पारस भी इस उम्मीद में बैठे होंगे कि एनडीए की तरफ से उन्हें जो भी सीटें मिलेंगी उसमें हाजीपुर की सीट जरूर होगी, क्योंकि वो वर्तमान में वहीं से सांसद हैं। जबकि चिराग पासवान हाजीपुर सीट को अपने पिता की विरासत बताते हुए वहां से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं। बल्कि उन्होंने वहां की जनता से बोल भी दिया है कि वो इस बार हाजीपुर से ही चुनाव लड़ेंगे। उधर पशुपति पारस भी हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
हाजीपुर से कौन चुनाव लड़ेगा इसका फैसला अब भाजपा को ही करना है। ऐसे में पूरी संभावना यही है कि हाजीपुर की सीट चिराग के खाते में ही जायेगी। राजनीति संभावनाओं का खेल है। भाजपा को इस समय चिराग पासवान में संभावना ज्यादा दिखाई दे रही होगी, क्योंकि चिराग इस समय अपनी जाति के लोगों के बीच एक आइकन बन चुके हैं। उनके पास एक ग्लैमर है। जबकि पशुपति पारस की अपनी राजनैतिक बुनियाद कुछ भी नहीं है। ऐसे में अब यह मान लिया गया है कि पशुपति पारस को भाजपा ने सिर्फ इस्तेमाल करने के लिए अपने साथ रख लिया है।
भाजपा को अच्छी तरह से पता है कि पशुपति की वजह से अब ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला है। ऐसे में संभव है कि अब पशुपति किसी अन्य सुरक्षित लोकसभा सीट से चुनाव लड़ें, क्योंकि अब उनके पास कोई दुसरा विकल्प नहीं है। पशुपति भी जानते हैं कि हाजीपुर छोड़कर वो कहीं और से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। बल्कि उन्हें अपनी जीत दर्ज करने के लिए नाको चने चबानी पड़ेगी। वो बग़ावत करने की सोच भी नहीं सकते। ऐसे में एनडीए की तरफ से जो भी सीटें मिलेंगी, उन्ही में से किसी सीट से चुनाव लड़ना होगा। यह तय है कि अगर पशुपति पारस अपना चुनाव हार गए तो शायद वो और उनकी पार्टी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी। यह भी संभव है कि आज जो नेता उनकी पार्टी में शामिल हैं वो सब के सब उन्हें छोड़कर चिराग पासवान वाली पार्टी में शामिल हो जाएं। लिहाजा यह मान लेना चाहिए कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद बिहार की एक पार्टी राष्ट्रीय लोकजन शक्ति पार्टी का अस्तित्व, शायद स्वतः ही खतम हो जाएगा।
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