विपक्षी पार्टियों की मीटिंग में नहीं जाएंगे जयंत चौधरी !
विपक्षी पार्टियों की बैठक 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में होने जा रही है, लेकिन इस बैठक की चर्चा उतनी गर्मजोशी से नहीं हो पा रही है जितनी बिहार की राजधानी पटना में संपन्न हुई बैठक को लेकर हुई थी।
![]() Jayant Chaudhry |
पटना की बैठक में शामिल होने वाले कई नेताओं के ब्यान भी बहुत पहले से आने लगे थे, जो नेता उस बैठक में शामिल होने वाले थे। उन सबके नाम भी पहले से लोग जान गए थे। जबकि बेंगलुरु वाली बैठक में विपक्ष की कितनी पार्टियां शामिल होंगी कौन-कौन से नेता इसमें शामिल होंगे, अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है। इसी बीच ऐसी भी ख़बरें आने लगी हैं कि शायद रालोद मुखिया जयंत चौधरी उस बैठक में शामिल ना हों। हालांकि जयंत पटना वाली बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को लेकर भी संशय की स्थिति बानी हुई है।
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में आगामी 17 और 18 जुलाई को एक बार विपक्ष के कई नेता मिलने जा रहे हैं। माना जा रहा है कि बेंगलुरु की मीटिंग में बहुत हद तक विपक्षी एकता की डोर को और मजबूती मिल जायेगी। उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि शायद सभी नेता मिलकर इस मीटिंग में संयोजक के नाम का खुलासा कर देंगे। अभी तक यही माना रहा है कि संयोजक के लिए सबसे उपयुक्त चेहरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं। नीतीश कुमार वैसे भी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में बहुत पहले से लगे हुए हैं। विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में जितनी गंभीरता नीतीश कुमार ने दिखाई है उतनी शायद और किसी नेता नहीं दिखाई है। लिहाजा ऐसी उम्मीद की जा रही है कि बेंगलुरु की मीटिंग में नीतीश कुमार को अधिकृत रूप से संयोजक बना दिया जाएगा।
विपक्षी पार्टियों की मीटिंग को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। चर्चा यहाँ तक होने लगी थीं कि वह मीटिंग अब नहीं होगी, लेकिन कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने बयान देकर यह बता दिया कि वो मीटिंग होगी। अब बात सिर्फ उस मीटिंग के होने भर की नहीं है। अब बात यह है कि क्या उस मीटिंग में भी उतने नेता आएंगे जितने पहली मीटिंग में आए थे। सबने देखा कि पटना वाली मीटिंग के बाद जब प्रेस कांफ्रेंस की बारी आयी तो दिल्ली के मुखयमंत्री अरविन्द केजरीवाल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम् के स्टालिन नदारद दिखे। प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद नेताओं ने यह कहकर उनका बचाव किया था कि उनकी फ्लाईट थी, इसलिए वो लो जल्दी निकल गए। हालांकि वो बात अलग है कि फ्लाइट तो अन्य नेताओं की भी रही होगी।
बहरहाल अब बात हो रही है राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी की। जयंत चौधरी की पार्टी रालोद , सपा और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज का गठबंधन है। ऐसा माना जा रहा था कि जयंत चौधरी पटना वाली मीटिंग में जाएंगे, लेकिन उन्होंने कुछ जरुरी काम का हवाला देकर उस मीटिंग से कन्नी काट ली थी। उस समय भी जयंत चौधरी की अनुपस्थिति को लेकर संदेह व्यक्त किया गया था। जबकि उनको अच्छी तरह से पता था कि जो भी नेता पटना की मीटिंग में शामिल हुए थे, उनमें से कई नेता किसी न किसी राज्य के मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में कोई उनसे यह सवाल पूछता कि जब वो मुख्यमंत्री होकर मीटिंग में शामिल होने के लिए समय निकाल सकते है तो फिर जयंत क्यों नहीं समय निकाल सकते थे।
अब एक बार फिर यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या जयंत चौधरी ने विपक्षी एकता से किनारा कर लिया है। क्या अंदरखाने वो भाजपा से मिलने की जुगत लगा रहे हैं। इस बीच ऐसी भी चर्चा सुनने को मिली थी कि वो भाजपा के एक बड़े मंत्री से मिल भी चुके हैं। हालांकि अब यह कोई बड़ी बात नहीं है। जयंत चौधरी ही नहीं, कोई भी नेता अब कहीं भी टिके रहने की गारंटी नहीं दे सकता। इसका ताजा उदहारण महाराष्ट्र में देखने को मिल गया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने एक झटके में अपने चाचा को बाय-बाय कर दिया। ऐसे में जयंत चौधरी भी अगर विपक्षी पार्टियों की बैठक से किनारा कर लेते हैं और भाजपा से मिल लेते हैं तो कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होगी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है यह है कि बेंगलुरु की मीटिंग में अब कितनी पार्टियां शामिल होंगी। कितने नेता आएंगे। विपक्षी पार्टियों की बेंगलुरु में होने वाली मीटिंग में शायद एक संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि विपक्षी पार्टियां भाजपा से मुकाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
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