भाजपा और विपक्ष के बीच ऐसे चल रहा है शह और मात का खेल !
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और विपक्षी पार्टियों के बीच शह और मात का खेल शुरू हो चूका है। पटना में बीते 23 जून को जब विपक्षी पार्टी के नेताओं की बैठक हुई थी तो अगले कुछ दिनों तक विपक्ष के सभी नेताओं के चेहरे खिले हुए थे।
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पटना से वापस जाते समय सबके चेहरे पर एक विश्वास झलक रहा था। कुछ दिनों तक ऐसा लगा की विपक्ष ने बाजी मार ली है। पटना में बैठक के बाद अगली बैठक की घोषणा भी कर दी गई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही नरेंद्र मोदी ने एक भाषण के दौरान यह कह दिया की वो भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाई की गारंटी देते हैं, जिसे सुनकर विपक्ष के कुछ नेता बैकफुट पर आ गए बल्कि कुछ ने सोचना भी शुरू कर दिया। अब एक बार फिर विपक्षी पार्टी के नेताओं का जोश हाई है। इनकी अब अगली बैठक बेंगलुरु में होने जा रही है।
बीते 27 जून को मोदी ने मध्यप्रदेश के भोपाल की एक रैली में जब भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाई करने की बात की तो उसका असर महाराष्ट्र में तुरंत देखने को मिला । विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार खुद ही अलग थलग हो गए। यानि वो अपनी जिस शक्ति के बल पर भाजपा को मात देने की बात कर रहे थे, उनकी खुद की शक्ति अब कम हो गई है। उनके आधे से ज्यादा विधायक उनका साथ छोड़कर जा चुके हैं, जबकि उनके भतीजे अजीत पवार उनके सामने सबसे बड़े खलनायक बनकर उभरे हैं।
दूसरी तरफ तेलांगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और कांग्रेस के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कांग्रेस ने के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस को भाजपा की बी टीम बता दिया है। यानी के चंद्रशेखर राव और कांग्रेस के बीच इस समय छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में पटना की बैठक में शामिल सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोमवार को तेलांगना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मुलाक़ात कर माहौल को और गरमा दिया है। अखिलेश यादव और के चंद्रशेखर राव की इस मुलाक़ात के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
कुछ जानकार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अखिलेश यादव के चंद्रशेखर राव को यह समझाने गए थे कि वो विपक्षी पार्टियों के साथ आएं। हालांकि अखिलेश यादव ने अपनी मुलाकात का अभी तक खुलासा नहीं किया है। ऐसे में एक सवाल और उठ रहा है कि क्या अखिलेश कोई और राह पकड़ने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं। फिलहाल यह तय हो गया है कि विपक्षी पार्टियों की अगली बैठक अब हैदराबाद में 17 और 18 जुलाई को होनी है। कांग्रेस के महासचिव के सी वेणुगोपाल ने खुद इस बात की जानकारी दी है। लिहाजा विपक्षी पार्टियों की बैठक को लेकर अब कोई संशय नहीं है। लेकिन क्या भरोसा प्रधानमंत्री मोदी का। कहीं फिर से कोई ऐसा बम ना फोड़ दें कि विपक्षी पार्टी के नेता देखते ही रह जाएँ।
खैर अगले छह-सात महीने तक देश की राजनीति में कुछ ऐसा ही होता रहेगा। कभी विपक्ष भाजपा पर हावी होने की कोशिश करेगा तो कभी भजापा के नेता विपक्षी पार्टी के नेताओं को घेरते हुए नजर आएंगे। फिलहाल इस समय भाजपा नरेंद्र मोदी की वजह से विपक्ष पर भारी पड़ती हुई जरूर दिख रही है। अब देखना होगा कि विपक्ष की अगली बैठक में कितनी पार्टियों के नेता शामिल होते हैं और उस बैठक से कौन नदारद रहता है।
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