मेहनत के इस पूरे पैकेज की वजह से कर्नाटक में जीती कांग्रेस !
कर्नाटक विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का सेहरा किसी एक नेता के सिर पर नहीं बांधा जा सकता है। यहां पर कांग्रेस की मेहनत का एक पूरा पैकेज देखने को मिला है।
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जिसमें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी शामिल थी ,पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया का अहिंदा और प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार की रणनीति भी शामिल थी। इस चुनाव परिणाम से एक बात तो तय हो गई कि अब धार्मिक मामले काम नहीं आने वाले हैं। शायद इस बात को भाजपा को ज्यादा समझने की जरुरत पड़ेगी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर्नाटक की जनता का मिजाज भांपने में चूक कर गए। वहां चल रहे अंडर करंट को भाजपा समझ नहीं पायी। धरातल पर कांग्रेस ने जो काम किया, आज उसका परिणाम सबके सामने है।
कर्नाटक में कांग्रेस ने तीन मोर्चों पर काम किया। पहला काम किया, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने। उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लाखों लोगों से मुलाक़ात की थी। उन्होंने मुलाक़ात या किसी सभा को सम्बोधित करते समय सिर्फ मुद्दों की बात की थी। कभी भी इधर-उधर की बातें नहीं कीं। वो हमेशा बताते रहे कि वो महंगाई ,बेरोजगारी धार्मिक सौहार्द को लेकर यात्रा कर रहे हैं। वो लोगों को बताते रहे कि वर्तमान सरकार धर्म के नाम पर देश के लोगों को एक दूसरे से लड़ा रही है। बेरोजगारी पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। महंगाई चरम पर है। उन्होंने कर्नाटक में एक अच्छा ख़ासा वक्त बिताया था। उन्होंने जनता से सीधे मुलाकत की थी। चुनाव परिणाम यह बताने के लिए प्रयाप्त हैं कि उनकी बातों का असर वहां की जनता पर कितना पड़ा है।
दूसरा काम किया है पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने। अनुसूचित जन जाति से ताल्लुक रखने वाले सिद्दारमैया ने चुपके-चुपके अहिंदा पर काम किया। अहिंदा एक कन्नड़ शब्द है। जिसे वहां के एक पिछड़े वर्ग के नेता देवराज उर्स ने दिया था। इसमें अल्संख्यक को अल्पसंख्यतारु ,पिछड़ों के लिए हिंदुलीदावारू जबकि दलितों के लिए दलितारु शब्द है। इन तीनों को मिलाकर अहिन्द शब्द का निर्माण हुआ। सिद्दारमैया ने इस समीकरण के जरिए पहले से ही तैयारी करनी शुरू कर दे थी। उन्होंने 2015 में वहां जातिगत जनगणना भी करवाई थी। जिसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई थी। हालांकि उसकी रिपोर्ट लिक हो गई थी। उसी जनगणना के बाद सिद्दारमैया को पता चला कि जिस लिंगायत को वहां लगभग 17 प्रतिशत होने की बात के जाती रही है, वास्तव में वह घटकर लगभग 9 प्रतिशत हो गई है। उसी तरह वोक्कालिंगा की आबादी जो पहले लगभग 15 प्रतिशत हुआ करती थी। वह घटकर 8 प्रतिशत रह गई है। सिद्दारमैया ने उसी सोसल इंजीनियरिंग के तहत काम किया। जिसका असर इस चुनाव में देखने को मिला है।
तीसरा काम किया है कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने। उन्होंने चुनाव से दो-तीन साल पहले से ही कार्यकर्ताओं को उत्साहित करना शुरू कर दिया था। वो लगातार दौड़ते रहे। कार्यकर्ताओं को भी दौड़ते रहे। उन्होंने भी वहां की जनता से सीधे मुद्दों की बात के थी। नतीजा सबके सामने है।
अब बात करते हैं भाजपा की। भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार की बागडोर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं संभाल रखी थी। गृह मंत्री अमित शाह ने भी वहां खूब रैलियां की थीं। हर रैली में मोदी और अमित शाह ने कांग्रेस को नहीं बल्कि राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की थी। दोनों नेता मुद्दों की बात कम करते थे, उनके भाषणों में गांधी परिवार का जिक्र ज्यादा होता था। चुनाव के आखिरी दौर में चुनाव प्रचार पूर्ण रूप से धार्मिक मामलों पर आकर अटक गया था। कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में सिर्फ इतना जिक्र किया था कि जो भी उग्रवादी संगठन हैं, उन पर बैन लगाया जाएगा। ऐसे संगठनों में चाहे बजरंग दल हो या पीएफआई। भाजपा ने सिर्फ बजरंग दल वाले मुद्दे को पकड़ लिया। उन्होंने बजरंग दल के सदस्यों की तुलना हनुमान जी से कर दी।
प्रधनमंत्री मोदी ने स्वयं नारा लगवा दिया था कि वोटिंग करते समय बजरंगबली का नारा लगाइए, लेकिन वहां की जनता ने अच्छी तरह समझ लिया कि उनके लिए क्या जरूरी है। इस चुनाव परिणाम ने एक सन्देश दे दिया कि अब जनता को भरमाया नहीं जा सकता है। अब देश की जनता उन मुद्दों पर बात सुनना चाहती है जो उनसे जुड़े हुए हैं। धार्मिक मामलों से उनका कोई लेना देना नहीं है। यह चुनाव परिणाम शायद सभी पार्टियों के लिए एक सन्देश है, खासकर उन पार्टियों के लिए जो धर्म और जाति के नाम पर चुनाव लड़ना चाहती हैं।
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