UP Nikay Chunav: निकाय चुनाव के एग्जिट पोल कहीं दलितों और मुस्लिमों के घर वापसी के संकेत तो नहीं?

Last Updated 12 May 2023 01:13:17 PM IST

उत्तर प्रदेश नगर निकाय का चुनाव संपन्न हो गया। सबकी नजरें अब चुनाव परिणामों पर टिकी हैं। चुनाव बाद एग्जिट पोल के नतीजों के जरिए जो संभावित परिणाम बताए जा रहे हैं वो चौंकाने वाले हैं।


मसलन उत्तर प्रदेश की कुल 17 मेयर की सीटों में से भाजपा को दस सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। दो सीटों पर सपा को आगे दिखाया जा रहा है। पांच सीटों पर कड़े मुकाबले की बात की जा रही है।

अगर एग्जिट पोल के संभावित नतीजे परिणाम में बदलते हैं तो यह मान लेना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी और भाजपा की छवि में गिरावट आ रही है या कुछ वर्ग के वोटरों ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी हैं। साथ ही साथ यह भी मान लेना चाहिए कि इस चुनाव परिणाम का असर आगामी लोकसभा के चुनाव में भी देखने को जरूर मिलेगा।

उत्तर प्रदेश नगर निकाय के चुनाव दो चरणों में संपन्न हुए हैं। इस चुनाव में भाजपा ,कांग्रेस और बसपा अकेले ही चुनाव लड़ रही थीं, जबकि सपा का रालोद और चंद्रशेखर की पार्टी आजाद समाज से गठबंधन हुआ था। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी की चर्चा पूरे दुनिया में हुई। उनकी सरकार ने अपराधियों के खिलाफ जो मुहीम चलाया है, उसकी सबने तारीफ़ भी की है। ऐसा माना जा रहा है कि योगी की इस पहल से ना सिर्फ उनकी, बल्कि भाजपा की छवि में भी सुधार हुआ है, लेकिन एग्जिट पोल के संभावित नतीजें, उनकी छवि के विपरीत जा रहे हैं।

इस बार के नगर निगम चुनाव में दो बातें देखने को मिली हैं। पहली बात यह रही कि इस बार भाजपा पर टिकट बेचने का आरोप लगा है। आमतौर पर टिकट बेचने या पैसे लेकर टिकट देने की यह कथित परम्परा बसपा में देखने या सुनने को मिलती थी, लेकिन कमोबेश पूरे उत्तर प्रदेश से ऐसी खबरें मिली थीं कि भाजपा के उन कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं दिया गया जो वर्षों से पार्टी के साथ जुड़े थे, वर्षों से पार्टी की निस्वार्थ सेवा कर रहे थे। जानकारी यहां तक मिली कि पार्षद के टिकट भी लाखों रुपयों में दिए गए। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेयर का टिकट पाने के लिए संभव है कि प्रत्यासियों ने करोड़ों रूपए दिए हों।

अगर इस खबर में जरा भी सचाई होगी तो यह मान लेना चाहिए कि भाजपा के निराश कार्यकर्ता ही एक दूसरे को हराने काम किए होंगे। अगर ऐसा होता है तो एग्जिट पोल सही साबित हो सकते हैं। दूसरी अहम् बात हुई है बसपा को लेकर। बसपा सुप्रीमों मायावती ने इस बार, मेयर सीट पर 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए थे ! जबकि उन्हें पता है कि मुस्लिम वोटर वर्षों से सपा को वोट करता आ रहा है। यानि मायावती की इस रणनीति से सीधे-सीधे सपा को नुकसान होने की संभावना जताई जा रही थी। हालांकि सपा के साथ रालोद और आजाद समाज पार्टी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि मायावती के कोर वोटर यानि दलित वोटरों में चंद्रशेखर ने सेंध लगानी शुरू कर दी है। पिछले चुनाव में उसकी कुछ झलक भी देखने को मिली थी, जब उत्तर प्रदेश के खतौली विधानसभा का उपचुनाव हुआ था। उस चुनाव में गठबंधन प्रत्यासी को दलितों ने भी वोट किया था।

चंद्रशेखर भले ही दलित वोटरों में सेंध लगा रहे हों लेकिन अभी ऐसा सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होता दिख रहा है। दूसरी तरफ रालोद मुखिया चौधरी जयंत हैं , इनकी या इनकी पार्टी की पकड़ भी उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिलों तक ही सिमित है। कुल मिलकर सपा ,रालोद और आजाद समाज पार्टी का गठबंधन अगर कुछ बढ़िया करता है तो सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही कर सकता है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मुस्लिम प्रत्यासी उतार कर उनके समीकरण की हवा निकल दी है।

अगर विपक्षी पार्टियों की इस रणनीति को देखा जाय तो भाजपा सब पर भारी पड़ती दिख रही है। पिछले नगर निकाय के चुनाव में मेयर की 16 सीटों पर चुनाव हुए थे, जिनमे भाजपा को 14 सीटों पर जीत मिली थी। अलीगढ़ और मेरठ की सीटों पर बसपा के प्रत्यासी विजयी हुए थे।  जिस तरीके से मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारें है, उसे देखकर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार मेयर की सभी सीटों पर भाजपा के प्रत्यासी विजयी होंगे। क्यों कि वोटों में बंटवारा होने की संभावना सिर्फ वहीं दिख रही थी। जबकि ऐसा माना जा रहा था कि भाजपा के वोट नहीं बांटेंगे, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों के मुताबिक भाजपा को उतनी सफलता मिलती नहीं दिख रही है जैसा कि विपक्षी पार्टियों के गलत रणनीति के कारण उसे फायदा मिलने की उम्मीद थी।

अब अगर भाजपा अपने पुराने नतीजों को भी नहीं दोहरा पाती तो यह मान लेना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए कुछ ठीक नहीं है। यह मान लेना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के कुछ वोटर योगी के कार्यों से खुश नहीं हैं। साथ ही साथ यह भी मान लेना चाहिए कि भाजपा के ऊपर जो टिकट बेचने के आरोप लगे हैं, उसमे कुछ न कुछ सचाई जरूर है। हालांकि नगर निकाय के चुनाव में नगर पालिका परिषदों और नगर पंचयतों में मिला जुला परिणा देखने को मिलता रहा है। वहां निर्दलीय प्रत्यासी भी भारी संख्या में जीत दर्ज कराते रहे हैं। जो शायद इस बार भी देखने को मिल सकते हैं।
 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment