कानून से बंधे हम भी, उपदेश देने वाली संस्था नहीं : उच्चतम न्यायालय

Last Updated 06 May 2023 07:05:56 AM IST

उच्चतम न्यायालय (Suprme Court) ने कहा है कि वह नैतिकता पर समाज को उपदेश देने वाली संस्था नहीं है और वह कानून के शासन से बंधा है।


उच्चतम न्यायालय

शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ ही अपने दो बेटों की जहर देकर हत्या करने की दोषी एक महिला की अपील को स्वीकार कर लिया।

शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) के अगस्त 2019 के फैसले के खिलाफ महिला द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

उच्च न्यायालय के फैसले में दो बेटों की हत्या के मामले में महिला की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा गया था। न्यायालय ने कहा कि महिला का एक पुरुष के साथ प्रेम संबंध था, जो उसे अकसर धमकी देता था, और इस वजह से उसने अपने बच्चों के साथ आत्महत्या करने का निर्णय लिया। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि महिला ने कीटनाशक खरीदा और इसको अपने दो बच्चों को खिला दिया तथा जब उसने खुद जहर खाने की कोशिश की तो उसकी भतीजी ने उसे रोक दिया।

पीठ ने बृहस्पतिवार को दिए अपने फैसले में कहा, यह अदालत नैतिकता और नैतिक मूल्यों पर समाज को उपदेश देने वाली संस्था नहीं है तथा हम कानून के शासन से बंधे हैं। इसने उल्लेख किया कि पहले ही लगभग 20 साल जेल में बिता चुकी महिला ने समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन किया था, लेकिन राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) की सिफारिश को सितम्बर 2019 में तमिलनाडु सरकार ने उसके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति को देखते हुए खारिज कर दिया था।

हत्या के अपराध के लिए उसकी सजा में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि समय से पहले उसकी रिहाई के लिए एसएलसी की सिफारिश को स्वीकार नहीं करने का राज्य सरकार के पास कोई वैध कारण या न्यायोचित आधार नहीं था।

न्यायालय ने समय-पूर्व रिहाई की सिफारिश को खारिज करने के राज्य के फैसले को दरकिनार करते हुए कहा, ‘हम अपराध से अनजान नहीं हैं, लेकिन हम इस तथ्य से भी अनजान नहीं हैं कि अपीलकर्ता (मां) पहले ही किस्मत के क्रूर थपेड़ों का सामना कर चुकी है।’

भाषा
नई दिल्ली


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