नया राजद्रोह कानून मानसून सत्र में !
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून (sedition law0 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार को केंद्र के यह कहने के बाद अगस्त तक के लिए टाल दी कि औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान की समीक्षा पर सरकार परामर्श के अग्रिम चरण में है।
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प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला की पीठ (Chief Justice Justice D.Y. Chandrachud and Justice J. B. porter's bencha) ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी (Attorney General R Venkataramani) की इस दलील पर गौर किया कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है। न्यायालय मामले पर अब अगस्त के दूसरे सप्ताह में सुनवाई करेगा। याचिकाओं में दंडात्मक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
शुरुआत में, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन (Gopal Sankaranarayanan) ने पीठ से मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ गठित करने का आग्रह किया। पीठ ने कहा कि अगर मामला सात न्यायाधीशों के पास भी जाना है तो पहले इसे पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने रखना होगा।
‘सरकार के प्रति असंतोष’ पैदा करने से संबंधित राजद्रोह कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इसे स्वतंत्रता से 57 साल पहले और भादंसं के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में लाया गया था। स्वतंत्रता से पहले इस कानून का इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक सहित विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी रोक
पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष अदालत ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि ‘उचित’ सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता। इसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी।
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