भाजपा को मात देने के लिए नीतीश कुमार का,एक सीट,एक उम्मीदवार फार्मूला
भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों को एकजूट करने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश अहम् भूमिका निभा रहे हैं। पिछले कई महीनों से देश भर में घूम-घूम कर विपक्षी नेताओं से मिल रहे हैं। नीतीश कुमार अभी तक अपने मकसद में कामयाब होते हुए भी दिख रहे हैं। उन्होंने विपक्ष के सभी नेताओं को एक फार्मूला दिया है। नीतीश कुमार के मुताबिक़ सभी पार्टियां अगर एक सीट एक उम्मीदवार के फार्मूले पर काम करें तो संभव है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी मिल जाए।
![]() narendra modi and nitish kumar |
सैद्धांतिक रूप से नीतीश कुमार का फार्मूला भले ही अच्छा लग रहा हो लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें कई प्रकार की दिक्क़तें भी आयेंगी। नीतीश कुमार यह चाहते हैं कि विपक्ष की अधिक से अधिक पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें। उन्होंने विपक्ष की लगभग सभी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को सलाह दी है कि किसी भी सीट पर, अगर किसी पार्टी का उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है तो, वहां अन्य पार्टी अपना उम्मीदवार खड़ा न करे। नीतीश कुमार की बात को राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने अपनी भाषा में समझाने की कोशिश की है।
उन्होंने कहा है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को उदारता का परिचय देना होगा। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों का उदहारण देते हुए कहा है कि कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत मात्र दो सीटों पर मिली थी। वेस्ट बंगाल में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। कमोबेश यही स्थिति तेलंगना में भी हुई थी। उनके कहने का मतलब यह है कि अगर कांग्रेस ने किसी पार्टी से समझौता किया होता तो उनकी वोटें बेकार नहीं जाती। संभव है कि अन्य पार्टियों के समर्थन के चलते विपक्ष की कुछ सीटें और बढ़ जाती। शिवानंद तिवारी के मुताबिक़ अब अगर विपक्ष की पार्टियों का गठबंधन हो जाता है तो किसी भी राज्य में ,जहाँ गठबंधन हुआ है ,वहां अगर कोई उम्मीदवार कांग्रेस का है तो अन्य पार्टियां उसके समर्थन में होंगी, न कि उसके खिलाफ अपना कोई प्रत्यासी खड़ा करेंगी।
हालांकि बिहार में यह फार्मूला लगभग कामयाब है। कांग्रेस ,जदयू आजेडी और भाकपा के अलावा कई अन्य छोटी पार्टियां आज एक साथ हैं। नीतीश कुमार का यह फार्मूला सुनने में अच्छा लग रहा है। संभव है कि विपक्ष की पार्टियां नीतीश कुमार के इस फार्मूले को स्वीकार कर, उस पर काम करना भी शुरू कर दें, लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत आएंगीं, टिकट बंटवारे में। किसी भी पार्टी का नेता वर्षों मेहनत करता है, इस उम्मीद में कि एक न एक दिन वह भी चुनाव लड़ेगा ,विधायक या एमपी बनेगा। चुनाव अगर नहीं लड़ेगा तो कम से कम किसी सम्मान जनक पद पर बैठेगा। अगर सभी पार्टियां आपस में इस फार्मूले पर गठबंधन कर लेती हैं तो बहुत से राज्यों के सैकड़ों पार्टी कार्यकर्त्ता चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएंगे। चुनाव लड़ने से वंचित रहने वाले कार्यकर्ता अपनी पार्टी में रहें ,दूसरी पार्टी में चले जाएँ या पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर जाएँ इसका अंदेशा हमेशा बना रहेगा।
हर पार्टी अपने हिसाब से अपने प्रत्यासी का चयन करेगी। कौन सी पार्टी अपने किस कार्यकर्ता को चुनाव मैदान में उतारती है, यह सब निर्भर करेगा गठबंधन के फार्मूले पर। ऐसा करते समय भी असंतोष की स्थिति पैदा होने का संशय बना रहेगा। कुल मिलाकर नीतीश कुमार ने भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार को सत्तामुक्त करने का जो फार्मूला दिया है, वह अच्छा हो सकता है। सुनने में जरूर अच्छा लग सकता है, लेकिन जब इस फार्मूले को लागू किया जाएगा,दिक्क़तें उस समय आएंगी। यह फार्मूला तभी सफल हो सकता है, जब पार्टी नेतृत्व के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्त्ता भी अपने स्वार्थ का त्याग कर दें। अब राजनीति में इतने बड़े त्याग की कल्पना की तो जा सकती है, लेकिन उसका धरातल पर उतरना आसान नहीं होता।
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