Karnataka में BJP ने क्यों पकड़ी आम आदमी पार्टी की राह?
कर्नाटक (Karnataka) में भाजपा (BJP) ने आम आदमी पार्टी के फार्मूले की नकल करने की कोशिश की है। या यूं कहें कि बीजेपी ने आम आदमी पार्टी (Aam Adami Party) से बहुत कुछ सीख लिया है।
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वैसे भी बड़ी पार्टियां हमेशा कुछ न कुछ सीखने की कोशिश में लगी ही रहती हैं। बिना बताए ही वह बहुत कुछ सीख लेती हैं। कर्नाटक में भाजपा ने क्यों पकड़ी आम आदमी पार्टी की राह?
कर्नाटक में भाजपा ने आम आदमी पार्टी के फार्मूले की नकल करने की कोशिश की है। या यूं कहें कि बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से बहुत कुछ सीख लिया है। वैसे भी बड़ी पार्टियां हमेशा कुछ न कुछ सीखने की कोशिश में लगी ही रहती हैं। बिना बताए ही वह बहुत कुछ सीख लेती हैं। शायद बीजेपी ने भी आम आदमी पार्टी से कुछ ऐसा ही सीख लिया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कर्नाटक में टिकट बंटवारा है।
भाजपा ने इस बार टिकट देते समय उम्मीदवारों की शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है, जिसका नतीजा यह है कि लगभग 50 से ज्यादा उम्मीदवार ऐसे हैं, जो बहुत ही पढ़े लिखे हैं। आमतौर पर पूरे देश में आम आदमी पार्टी ही एक ऐसी इकलौती पार्टी है, जिसमें उच्च शिक्षित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। आमतौर पर कर्नाटक में जातियों के आधार पर होने वाले वोटिंग पैटर्न पर ध्यान ना देते हुए बीजेपी ने शिक्षित लोगों पर दांव लगाया है। कर्नाटक में अगले महीने की 10 मई को वोटिंग होनी है। बीजेपी ने अभी तक 189 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। कुछ माह पहले बीजेपी ने गुजरात में एक ट्रेंड अपनाया था। जिसके मुताबिक उसने अपने 25 प्रतिशत सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया था। उनकी जगह नए चेहरों पर दांव लगाया था, जिसमे उसे अपेक्षा से कहीं ज्यादा सफलता मिली थीं।
कमोबेश कर्नाटक में भी बीजेपी वैसा ही करने जा रही है। बीजेपी ने अपनी पहली सूची में 52 सिंटिंग विधायकों के नाम काट दिए हैं। जबकि इतने ही नए लोगों को टिकट दिया गया है। मजे की बात यह है कि जो टिकट दिया गया है, उसमें 9 डॉक्टर हैं। वकील 5 हैं। पोस्ट ग्रेजुएट की संख्या 31 है। एकेडमिक लोगों की संख्या 3 है। सामाजिक सेवा से जुड़े लोगों की संख्या 8 है। तीन रिटायर सरकारी लोग हैं। जबकि एक रिटायर आईएएस और एक रिटायर्ड आईपीएस हैं। शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी ने इतने ज्यादा पढ़े लिखे लोगों को टिकट दिया है। साथ ही साथ ऐसे लोगों की शिक्षा के बारे में भी बताया है, जिन्हें टिकट दिया गया है। हालांकि कर्नाटक में ओबीसी, एससी,एसटी और अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों का प्रतिशत 60 के आसपास है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने 40 प्रतिशत दलितों का वोट हासिल किया था। कांग्रेसी ने 37 प्रतिशत दलितों का वोट हासिल किया था, जबकि जेडीएस को दलितों के 18 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं अगर ओबीसी की बात करें तो भाजपा को 52 प्रतिशत ओबीसी की वोटें मिली थीं। कांग्रेस को 24 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि जेडीएस को 14 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी अपने पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए बीजेपी ने एक नया पैटर्न अपना लिया है। जिस तरीके से 2018 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी, एससी और एसटी के अधिकांश वोट भाजपा को मिले थे। अगर भाजपा अपने पुराने रिकार्ड को दोहरा देती है तो बाकी काम वह उम्मीदवार कर देंगे जो शिक्षित हैं।
हालांकि इस बार कांग्रेस दावा कर रही है कि कर्नाटक में उसकी सरकार बनेगी। कांग्रेस दलित वोटरों को अपने पक्ष में लाने का दावा कर रही है। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना। खड़गे चूंकि दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि खड़गे की पहल के बाद कर्नाटक के दलित वोटरों का झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ बढ़ेगा। दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता सिद्दारमैया ओबीसी समुदाय से आते हैं, उनकी भी कोशिश होगी कि ओबीसी समाज का अधिक से अधिक वोट कांग्रेस के पक्ष में कर लिया जाए।
भाजपा के पास सामान्य जाति या यूं कहिए स्वर्ण बिरादरी के दो बड़े नेता हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और बी एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय उच्च जातियों में आता है। ऐसा माना जा रहा है कि इन दोनों नेताओं की बदौलत सामान्य जाति की अधिकांश वोटें भाजपा को मिल सकती हैं। कर्नाटक की लड़ाई आसान नहीं है। भाजपा को पहले से यह आभास हो चुका है कि इस बार उसके लिए कर्नाटक की राह आसान नहीं है, इसलिए भाजपा ने नए प्रयोग के तौर पर आम आदमी पार्टी की राह पकड़ ली है। अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी की राह पकड़ कर भाजपा मंजिल पा पाती है या फिर राह से भटक जाती है।
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