NCERT की पुस्तकों में हुए बदलाव पर महान आलोचक की प्रतिक्रिया
डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी हिंदी साहित्य के बड़े आलोचक हैं। आज के समय में वो एकमात्र जीवित हस्ताक्षर हैं, जिनकी पहली पुस्तक "हिंदी आलोचना"आज भी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई जाती है। बरसों बाद एक बार फिर डॉक्टर त्रिपाठी की चर्चा हो रही है। चर्चा का कारण है, एनसीईआरटी की पुस्तकों में किए गए बदलाव को लेकर दिया गया उनका बयान।
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राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी ने यूपी और सीबीएसई बोर्ड की हाईस्कूल और इंटर की किताबों से कुछ अंशों को हटा दिया है। कुछ बदलाव कर दिया है। एनसीईआरटी की इस पहल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। अधिकांश लोग किताबों में किए गए इस बदलाव को गलत बता रहे हैं। बाकी लोग क्या कह रहे हैं वह बाद की बात है, लेकिन डॉक्टर त्रिपाठी की बातें और उनके विचार ज्यादा प्रासंगिक हैं।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले( सिद्धार्थनगर) में 1931 में जन्मे डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी ने बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और कुलभूषण खरबंदा को दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ाया था। एनसीईआरटी की पुस्तकों में हुए बदलाव को लेकर जब उनसे पूछा गया कि फिराक गोरखपुरी, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'और मुक्तिबोध की कुछ रचनाएं हटा दी गई हैं, इसके बारे में आपका क्या कहना है, तो उन्होंने चिरपरिचित शैली में सीधे-सीधे जवाब दे दिया कि इन महान रचनाकारों और कवियों के अंश को पाठ्यक्रम से निकालना ठीक वैसा ही है जैसे साहित्य के विराट भवन से उसके स्तंभ को उखाड़ दिया जाए।
डॉ त्रिपाठी की हिंदी आलोचना में मौलिकता, पांजलता और ईमानदार अभिव्यक्ति की झलक साफ दिखती है। ऐसे महान आलोचक अगर इस तरह की बात कह रहे हैं तो निश्चित ही उस पर विचार होना चाहिए। हालांकि आरोप यह लग रहा है कि किताबों से उस अंश को हटाया गया है जो मुगल शासकों पर आधारित है,लेकिन ऐसा नहीं है। इन किताबों से सुमित्रानंदन पंत की "वे आंखें' मीराबाई की "पग घुंघरू बांध मीरा नाची' विष्णु खरे की "एक काम और सत्य' गजानन मुक्तिबोध का "सहर्ष स्वीकारा' भी बच्चे अब नहीं पढ़ पाएंगे। हालांकि इन किताबों में अकबरनामा,बादशाहनामा, मुगल शासकों का साम्राज्य और रंगीन चित्र जैसे तमाम चीजें पढ़ाई जाती थीं जो अब पढ़ने को नहीं मिलेंगे।
एनसीईआरटी की किताबों में हुए बदलाव के बाद जब हंगामा मचा तो परिषद की तरफ से सफाई दी गई कि विद्यार्थियों पर अनावश्यक बोझ था। जिसे कम करने के लिए किताबों से कुछ अंश हटाए गए हैं। जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि मुगल शासकों से जुड़े अंशों को हटाया गया है, वह गलत है। हिंदी के आधे दर्जन से ज्यादा ऐसे लेखक और कवि हैं जिनकी लिखी हुई चीजों को उन किताबों से हटाया गया है। बहरहाल डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी ने किताबों में हुए कुछ बदलाव पर आपत्ति दर्ज कराई है तो उसका कोई न मतलब जरूर है।
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