आजम खान के बयान के संदर्भ में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मंत्री का हर बयान सरकार का नहीं

Last Updated 04 Jan 2023 07:28:37 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद, किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।


उच्चतम न्यायालय

न्यायालय ने यह भी कहा कि सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।

न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लिखित पाबंदियों के अलावा किसी सार्वजनिक पदाधिकारी के भाषण एवं अभिव्यक्ति के अधिकार पर कोई अतिरिक्त पाबंदी लागू नहीं की जा सकती।

पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, फिर भले ही वह बयान राज्य के किसी मामले को लेकर हो या सरकार की रक्षा करने वाला हो।

न्यायालय ने कहा, अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार का प्रयोग राज्य के अलावा अन्य व्यवस्था के खिलाफ भी किया जा सकता है। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने इस बात पर सहमति जतायी कि अनुच्छेद 19 के अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर वृहद पाबंदी नहीं लगायी जा सकती। हालांकि, उन्होंने कहा कि यदि कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है तो ऐसे बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार से जोड़ा जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने 15 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों को आत्म-संयम पर जोर देना चाहिए और ऐसी बेतुकी बातों से बचना चाहिए जो अन्य देशवासियों के लिए अपमानजनक हैं। अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 19 (2) जो भी कहता है उसके अलावा भी देश में एक संवैधानिक संस्कृति है जहां जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के कहने पर एक अंतर्निहित सीमा या प्रतिबंध है।



आधिकारिक क्षमता में मंत्री के दिए बयान के लिए सरकार जिम्मेदार : जस्टिस नागरत्ना

नफरती भाषण के संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करने का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अलग से दिए फैसले में कहा कि अगर कोई मंत्री अपनी ‘आधिकारिक क्षमता’ में अपमानजनक बयान देता है तो इस तरह के बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इस मुद्दे पर पीठ के साथी न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुए एक निर्णय में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, हाल के दिनों में अविवेकपूर्ण भाषण चिंता का कारण है क्योंकि यह हानिकारक और अपमानजनक है। उन्होंने कहा, नफरती बयान समाज को असमान रूप में चिह्नित करके संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करते हैं। यह विविध पृष्ठभूमि के नागरिकों के भाईचारे के भी खिलाफ है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, सार्वजनिक पदाधिकारियों और मशहूर हस्तियों सहित अन्य प्रभावशाली लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने भाषण में अधिक जिम्मेदार और संयमित रहें। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, यह पार्टी पर है कि वह अपने मंत्रियों के बयानों को नियंत्रित करे जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है।

क्या था मामला

उच्चतम न्यायालय उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसकी पत्नी तथा बेटी से जुलाई 2016 में बुलंदशहर के समीप एक राजमार्ग पर कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया गया।  वह इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान पर उनके विवादित बयान के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध कर रहा है। आजम खान ने कहा था कि सामूहिक दुष्कर्म का यह मामला राजनीतिक षडयंत्र है। यह फैसला इस सवाल पर आया है कि क्या किसी जन प्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबंदियां लगायी जा सकती हैं?

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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