अफगानिस्तान से लौटे सिख शरणार्थियों ने बयां की अपनी पीड़ा, तालिबानियों को चकमा देकर निकले
अफगानिस्तान में सिखों और हिंदुओं पर हो रहे हमलों के बाद सिखों का भारत आना लगातार जारी है।
![]() अफगानिस्तान से लौटे सिख शरणार्थियों ने आईएएनएस से बयां की अपनी पीड़ा |
3 अगस्त को भी 30 सिखों का एक ग्रुप भारत वापस लौटा था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की तरफ से इन्हें सहायता प्रदान की जा रही है। अफगानिस्तान से लौटे कई अफगानी सिख परिवारों को दिल्ली के तिलक नगर स्तिथ न्यू महावीर नगर के गुरु अर्जुन देव गुरुद्वारा में ठहराया गया है।
अफगानिस्तान में पिछले साल जबसे तालिबान की हुकूमत आई है, तब से ही अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख समुदाय पर हमले बढ़ गए हैं। इन्ही हमलों से डरकर अपना सबकुछ छोड़कर सिख परिवार भारत लौट रहे हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ सिख समुदाय के कई लोग काम एयरलाइन्स के एक निजी विमान से काबुल से दिल्ली लाए गए। फिलहाल सभी को गुरुद्वारा कमिटी द्वारा रहने का इंतजाम किया गया है। इनमें ज्यादातर सिख ऐसे हैं, जो कई पीढ़ियों से अफगानिस्तान में रह रहे थे और पहली बार सबकुछ छोड़कर भारत लौटे हैं।
आईएएनएस ने दिल्ली के तिलक नगर स्तिथ श्री अर्जुन देव जी गुरुद्वारा में जाकर सिख शरणार्थियों से मुलाकात की और जानने की कोशिश की, कि आखिर किस तरह से उन्होंने जान बचाने के लिए अपना घर, कारोबार सब छोड़ दिया और भारत वापस आ गए।
बच्चे के इलाज का बहाना बनाकर तालिबानियों को दिया चकमा
तरण सिंह, जिनकी उम्र 32 साल है, वो बचपन से ही अफगानिस्तान के जलालाबाद इलाके में अपने परिवार के साथ रहते थे। तरण दवाई की दुकान चलाते थे। जब काबुल में गुरुद्वारा पर हमला हुआ और कई सिख मारे गए तो उन्हें भी अपने परिवार की चिंता सताने लगी। तरण सिंह ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि तालिबानी उन्हें भारत नहीं जाने दे रहे थे। जैसे तैसे उन्होंने किराए की एक गाड़ी की और अपने परिवार और बच्चों को लेकर काबुल निकल गए। जब रास्ते में उनसे तालिबानियों ने जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि उनके बच्चे की तबियत खराब है और इलाज के लिए भारत जाना है। इस तरह तालिबानियों को चकमा देकर तरण सिंह काबुल से भारत पहुंच गए। दिल्ली आने की उन्हें खुशी तो है, लेकिन अपना घर और दुकान छूट जाने का दुख भी है। हालांकि वो कहते हैं कि अब कभी अफगानिस्तान वापस नहीं जाएंगे।
हरजीत कौर पति के साथ भारत आ गई, लेकिन भाई और बहन अब भी अफगानिस्तान में फंसे हुए है। हरजीत कौर की उम्र भले ही 30 साल के आसपास हो, लेकिन वो एक साहसी महिला हैं। 3 अगस्त को वो भी अपने पति और 3 बच्चों के साथ दिल्ली पहुंची। हरजीत कौर का कहना है कि जबसे तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, तब से ही कई बार बंदूकधारी तालिबानी उन्हें डराने आ जाते थे। बच्चों की फिक्र ने उन्हें भारत वापस आने पर मजबूर किया। हरजीत कौर अपने परिवार के 8 सदस्यों के साथ सकुशल वापस आ गई, लेकिन उनका एक भाई, भाभी और बहन अब भी अफगानिस्तान में ही मौजूद हैं। वीजा ना मिलने और कुछ कठिनाइयों के चलते वो भारत नहीं आ सके हैं। हरजीत को उम्मीद है जल्द ही उनके परिवार के बाकी सदस्य भी भारत लौटेंगे। गुरजीत कौर सिर्फ दो जोड़ी कपड़े लेकर सबकुछ छोड़कर भारत पहुंची।
सबकुछ छोड़कर भारत पहुंचे
35 साल की गुरजीत कौर उन खुशनसीब लोगों में है, जो कुछ महीने पहले ही दिल्ली आ गई। गुरजीत ने आईएएनएस को बताया कि वो काबुल में गुरुद्वारा के पास ही रहती थी। उनके घर के पास बम धमाका हुआ तो उन्हें अपनी जान की चिंता सताने लगी। पांच बच्चों की मां गुरजीत ने फिर भारत लौटने का फैसला लिया। आपाधापी में सिर्फ 2 जोड़ी कपड़ों के साथ ही वो दिल्ली वापस आ गई। उनका कहना है कि वो दवाई की दुकान चलाती थी और अफगानिस्तान में ही पैदा हुई। पहली बार वो भारत आई हैं। अब दिल्ली के न्यू महावीर नगर इलाके में अपने पति के साथ रहती हैं। घर, दुकान साजो सामान सब काबुल में ही छूट गया। गुरजीत की आंखों में अफगानिस्तान में सिखों पर हो रही हिंसा के ²श्य अभी भी ताजा हैं। वो कहती हैं कि अब कभी वापस अफगानिस्तान नहीं जाएंगे।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति कर रही है देखभाल
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के सदस्य और सिख मिशन दिल्ली के प्रमुख सुरिंदर पाल सिंह ने आईएएनएस को बताया कि, हमने अफगानिस्तान से वापस लौटे सिख भाइयों का स्वागत किया है। इन लोगों के पुनर्वास और अन्य सहयोग का काम भी समिति की तरफ से किया जा रहा है। अभी भी अफगानिस्तान में करीब 110 हिन्दू और सिख बचे हुए हैं, जिनमें से 61 लोगों का ई-वीजा लंबित है।
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से ही वहां सिख समुदाय सहित धार्मिक अल्पसंख्यक लोगों को बड़ी संख्या में हिंसा कर निशाना बनाया जा रहा है। यही वजह है, कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, भारतीय विश्व मंच और भारत सरकार के सहयोग से अफगान अल्पसंख्यकों, सिख समुदाय और हिंदुओं को वहां से बाहर निकाला जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले महीने 14 जुलाई को 21 सिखों का एक जत्था अफगानिस्तान की निजी 'काम' एयरलाइन्स से भारत लाया गया। 3 अगस्त को 30 और सिख दिल्ली पहुंचे। जानकारी के मुताबिक साल 2020 तक अफगानिस्तान में करीब 700 हिन्दू और सिख थे, लेकिन अगस्त 2021 को तालिबान के कब्जे के बाद से कई लोगों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है।
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