यौन उत्पीड़न में त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं मंशा अहम

Last Updated 19 Nov 2021 03:12:07 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण संबंधी पॉक्सो अधिनियम के तहत एक मामले में बंबई हाईकोर्ट के ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ संबंधी विवादित फैसले को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया।


यौन उत्पीड़न में त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं मंशा अहम

शीर्ष अदालत ने कहा कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं।

बंबई हाईकोर्ट आदेश दिया था कि यदि आरोपी और पीड़िता के बीच ‘त्वचा से त्वचा का सीधा संपर्क नहीं हुआ’ है, तो पॉक्सो कानून के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है। न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए कहा कि शरीर के यौन अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी अन्य कृत्य पॉक्सो कानून की धारा सात के अर्थ के तहत यौन उत्पीड़न होगा। न्यायालय ने कहा, कानून का मकसद अपराधी को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता।

पीठ ने कहा, हमने कहा है कि जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकतीं। यह सही है कि अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकतीं। न्यायमूर्ति भट ने इससे सहमति रखते हुए एक पृथक फैसला सुनाया।

पीठ ने कहा, यौन उत्पीड़न के अपराध का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है और बच्चे की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं। किसी नियम को बनाने से वह नियम प्रभावी होना चाहिए, न कि नष्ट होना चाहिए। प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट करने वाली उसकी कोई भी संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून के मकसद को तब तक प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, जब तक उसकी व्यापक व्याख्या नहीं हो। न्यायालय ने कहा, यह पहली बार है, जब अटॉर्नी जनरल ने आपराधिक पक्ष पर कोई याचिका दाखिल की है।

मामले में न्याय मित्र के रूप में अपराधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए, जबकि उनकी बहन वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से पेश हुईं। अटॉर्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग की अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रहे न्यायालय ने बंबई हाईकोर्ट के आदेश पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि ‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’ के बिना ‘नाबालिग के वक्ष को पकड़ने को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।

सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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