जलवायु परिवर्तन : तबाही के लिए हर्जाना मांगेगा भारत
भारत समेत विश्व के अनेक हिस्सों में चक्रवातों की संख्या बढ़ने, बेमौसम बारिश से होने वाली तबाही के लिए सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। भारत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के लिए विकसित देशों के कर्म जिम्मेदार हैं और विकासशील देश इसे भुगत रहे हैं।
![]() जलवायु परिवर्तन से तबाही |
आगामी 31 अक्टूबर से ग्लासगोव में होने वाली संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन की कोप-26 बैठक में भारत नुकसान की भरपाई की मांग करेगा। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे।
पिछले दो साल से कोविड-19 के कारण कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कोप) की बैठकें भौतिक तौर पर नहीं हो पायी थी। पेरिस समझौते को लागू करने को लेकर भी दुनियाभर के देश गंभीर नजर नहीं आते। इसलिए ग्लासगोव बैठक ‘करो या मरो’ की स्थिति वाली है। क्योंकि धरती के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके कारण दुनिया के विभिन्न कोनों में भयानक आपदाएं आ रही हैं। जान और माल का भारी नुकसान हो रहा है। ढांचागत नुकसान की भरपाई में अरबों रुपए खर्च हो जाते हैं। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री, पर्यावरण एवं वन मंत्री भूपेंद्र यादव समेत 15 प्रतिनिधि शामिल होंगे। सम्मेलन 13 नवम्बर तक चलेगा।
भारत का कार्बन उत्सर्जन प्रति व्यकि औसत सबसे कम है। यहां प्रतिव्यक्ति प्रति वर्ष केवल 1.96 टन कार्बन उत्सर्जन करना है। जबकि चीन में 8.4 टन, अमेरिका में 18.66 टन प्रतिव्यक्ति और यूरोपीय यूनियन 7.16 टन कार्बन प्रतिवर्ष उत्सजर्न हो रहा है। भारत लगातार मांग करता रहा है कि विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए कार्बन उत्सर्जन कम करना चाहिए और गरीब देशों को वित्तीय सहायता देना चाहिए। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक मुलाकात में कहा कि भारत की मांग है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई हो। भारत चाहता है कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 100 अरब डालर के योगदान की अपनी पुरानी वचनबद्धता को पूरा करें।
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