सास-ससुर के घर में बहू को रहने का हक : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 16 Oct 2020 01:31:11 AM IST

सास-ससुर के मालिकाना हक वाले मकान में विवाहिता को रहने का अधिकार है, भले ही उसके पति का संपत्ति में वारिसाना हक हो या नहीं।


सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में घरेलू हिंसा के मामले में विवाहिता को रिहायश का अधिकार प्रदान कर दिया है।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और मुकेश कुमार शाह की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एसआर बत्रा बनाम तरुण बत्रा के मामले में साझा संपत्ति की व्याख्या सही तरह से नहीं की। 2007 में दिए गए निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाहिता उसी सूरत में रिहायश की हकदार है, यदि प्रॉपर्टी पर उसके पति का मालिकाना हक है या उसमें उसका शेयर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साझा संपत्ति सिर्फ वही नहीं है जिसमें पति का शेयर हो। यदि सास या ससुर के नाम से प्रॉपर्टी है और विवाहिता शादी के बाद से वहां रहती चली आई है, तो दांपत्य जीवन में कड़वाहट आने पर भी वह वहीं रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से संबंधित महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 19 की व्याख्या करते हुए कहा कि समूचे कानून को समग्रता में देखने की जरूरत है। दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कालोनी के रहने वाले दंपत्ति के वैवाहिक विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी। इस केस में मजिस्ट्रेट ने विवाहिता को ससुराल से बेदखल नहीं करने का निर्देश दिया था। मजिस्ट्रेट ने कहा था कि 2005 के कानून के तहत विवाद के निपटारे तक पत्नी ससुराल में रह सकती है।

मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ ससुर ने सिविल कोर्ट में केस दायर किया। दीवानी अदालत में ससुर को सफलता मिली। सिविल कोर्ट ने कहा कि मकान का मालिक ससुर है। वह अपनी पुत्रवधू को मकान से बाहर कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल कोर्ट को डिक्री जारी करने का हक है, लेकिन दीवानी प्रक्रिया के दौरान उन सबूतों पर भी गौर करना होगा, जो घरेलू हिंसा के दौरान अदालत में आए। सिविल कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मुकदमे में आए साक्ष्यों पर नजर नहीं डाली। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर मामला वापस भेजने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से सहमति व्यक्त की।

सहारा न्यूज ब्यूरो/विवेक वार्ष्णेय
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment