राज्यसभा चुनाव में भी छोटे दल छोड़ गए कांग्रेस का साथ
राज्यसभा चुनाव में भी यह जाहिर हुआ कि छोटे दल और निर्दलीय अब कांग्रेस के साथ नहीं रहना चाहते।
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मध्यप्रदेश में सपा‚ बसपा और निर्दलीय उसका साथ छोड़ गए तो गुजरात में आदिवासी पार्टी ने उसका साथ नहीं दिया। एनसीपी वैसे तो कांग्रेस के साथ है लेकिन गुजरात में उसके विधायक ने दूसरी बार कांग्रेस को गच्चा दिया और वह कुछ नहीं कर सकी। एनसीपी के नेता शरद पवार भी इस पर कुछ नहीं बोले। जिन दो राज्यों में छोटे दलों और निर्दलीय ने कांग्रेस का साथ छोड़ा है वहां कांग्रेस के पास बड़े अनुभवी नेता हैं।
मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के रहते उन सपा‚ बसपा और निर्दलीय विधायकों ने भाजपा के उम्मीदवार को वोट दिया जो पहले कांग्रेस के साथ थे। इन विधायकों ने यकायक भाजपा को वोट नहीं दिया बल्कि वो चुनाव से दो दिन पहले भाजपा के कैंप में गए।
यह मध्य प्रदेश में कद्दावर नेताओं की कुछ ही महीनों में दूसरी हार है‚ इससे पहले सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायक इस्तीफा देकर भाजपा में चले गए थे। इन 22 विधायकों समेत तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर अगस्त में उप चुनाव संभावित है‚ इसलिए राज्यसभा चुनाव के बड़े मायने थे। दिग्विजय सिंह के बाद कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह वरैया के लिए जीतना संभव नहीं था‚ लेकिन दलित उम्मीदवार होने से उन्हें कुछ वोट ज्यादा मिलने के आसार अवश्य थे।
गुजरात में भरत सिंह सोलंकी खुद बड़े नेता हैं लेकिन वह अपने लिए अपेक्षित वोट नहीं जुटा सके। अहमद पटेल जैसे वरिष्ठ नेता के बावजूद कांग्रेस ने एक–एक करके कई विधायक खोए जो इस्तीफा देकर भाजपा में चले गए। इसके बाद पिता–पुत्र की आदिवासी पार्टी का समर्थन ऐन मौके पर उसके हाथ से छिटक गया।
यह बड़ी बात है कि भाजपा से खफा इस पार्टी ने कांग्रेस के उम्मीदवार भरत सिंह सोलंकी को वोट देने से इंकार कर दिया। गुजरात और मध्य प्रदेश की घटनाएं सिर्फ उदाहरण नहीं हैं बल्कि ये जाहिर करती हैं कि कांग्रेस छोटे दलों को अपने साथ लेकर चलने में लगातार फेल हो रही है।
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