मोदी के कड़े तेवरों से निकली शी जिनपिंग की हेकड़ी
लद्दाख में हुई घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े तेवरों को देखते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अकड़ ढीली पड़ने लगी है।
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भारत के आक्रामक रूप से घबराए चीन के राष्ट्रपति ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के पास अपना दूत भेजकर इस मामले में भारत को समझाने की गुहार लगाई है। सूत्रों के अनुसार रूस ने इस मामले में दोनों पक्षों से तनाव और न बढ़ाने की सलाह दी है। रूस के आग्रह पर ही भारत 23 जून को होने वाली आरआईसी की बैठक में शामिल होने को राजी हुआ है।
उल्लेखनीय है कि सीमा पर ताजा विवाद के चलते भारत इस बैठक से दूर रहने के बारे में गंभीरतापूर्वक सोच रहा था लेकिन रूस के अनुरोध पर अब भारत ने इस बैठक में भाग लेने का फैसला किया है। सूत्रों के अनुसार भारत ने रूस को बता दिया है कि चीन की साजिश के चलते ही यह हिंसक घटना हुई और बात आगे तभी बनेगी जब चीन अपने आक्रामक तेवर छोड़ वापस पुरानी स्थिति में लौटेगा।
भारत ने चीन के गलवान घाटी पर दावे को भी निराधार बताते हुए रूस को बता दिया है कि चीन इस मामले में अभी भी साजिश कर रहा है। रूस को यह भी साफ कर दिया गया है की शांति बनाए रखने के लिए चीन को एलएसी पर पुरानी स्थिति पर लौटना ही होगा। सूत्रों की मानें तो इस घटना के बाद से भारत ने जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन की घेराबंदी की और हिंद महासागर में जो पेस बंदी की उससे चीन को समझ में आ गया है कि भारत के साथ तनाव बढ़ाने पर न केवल पूरी दुनिया में वह अलग-थलग पड़ जाएगा बल्कि उसे आर्थिक रूप से भी करारी चोट सहनी पड़ेगी।
गौरतलब है कि हिंद महासागर में चीन का ट्रेड 60 प्रतिशत के आसपास होता है इसके अलावा भारत में इंडोपेसिफिक एरिया में ऑस्ट्रेलिया जापान और अमेरिका का पूरा साथ मिला है जो कि चीन के लिए बड़े खतरे की घंटी है। घटना के 2 दिन बाद जिस तरह से भारत सरकार ने चीन के आर्थिक हितों पर चोट करनी शुरू की उसे शायद चीन के नेताओं को समझ में आ गया कि यह 1962 का भारत नहीं है और भारत से तकरार उसे काफी महंगी पड़ेगी।
दुनिया में भी अनेक देश भारत चीन सीमा पर चीन की कार्रवाई से नाराज हैं। चीन को इस मामले में रूस से बहुत ज्यादा उम्मीदें थी लेकिन रूस ने भी इस मामले में दोनों ही पक्षों को संयम बरतने की बात कहकर यह संकेत दे दिया कि वह बरसों पुराने अपने मित्र भारत का साथ नहीं छोड़ सकता है।
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