एनबीएफसी को कर्ज मिलने से रफ्तार पकड़ेगा वाहन उद्योग : मेघवाल
केंद्रीय भारी उद्योग एवं संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल से सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय की खास बातचीत
![]() सहारा न्यूज नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं केंद्रीय भारी उद्योग एवं संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल |
अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह से वाहन उद्योग लंबे समय से दबाव में था। अब कोरोना संकट की मार से यह उद्योग बुरी तरह तबाह हो गया है। कोरोना की महामारी के बीच देश की आर्थिक स्थिति के मुद्दे पर केंद्रीय भारी उद्योग राज्यमंत्री एवं संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल से सहारा न्यूज़ नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने खास बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत :-
लॉकडाउन के कारण वाहन उद्योग को बड़ा नुकसान हुआ है। आपने महिन्द्रा एंड महिन्द्रा, मारुति सुजुकी, हीरो मोटो कॉर्प, अशोक लेलैंड, हुंडई मोटर्स और टोयोटा किलरेस्कर के प्रतिनिधियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग कर उनकी मुश्किलों को समझा है। वाहन कंपनियों को संकट से उबारने की क्या योजना है?
हमारे साथ वेबिनार के जरिए ऑटो इंडस्ट्री के तमाम सीनियर जुड़े थे। कई चीजों में कोरोना वायरस की वजह से देरी हुई है। इनमें ई व्हीकल को सामने रखने के जो प्रयास चल रहे थे उनमें भी देरी हुई है। इस क्षेत्र के लिए काम करने वाली बड़ी एजेंसी के तमाम पदाधिकारियों से हमारी बात हुई। इन तमाम लोगों ने कहा कि यदि मांग पैदा होगी तो इंडस्ट्री को दोबारा रिवाइज किया जा सकता है। हमने उनसे इसका तरीका पूछा तो उन्होंने एनबीएफसी में लिक्विडिटी की कमी को परेशानी बताया। लोन देने में जो कमी आई है उसकी वजह से इंडस्ट्री पर असर पड़ा है। आत्मनिर्भर भारत के तहत एनबीएफसी को सुदृढ़ करने के लिए पैसा सुरक्षित रखा गया है। निश्चित तौर पर अब एनबीएफसी की स्थिति सुधरेगी, लोन देने की ताकत बढ़ेगी तो इंडस्ट्री भी रफ्तार पकड़ लेगी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए निवेश बढ़ाने और मेक इन इंडिया को और अधिक मजबूत बनाने की जरूरत है। इस दिशा में आपके मंत्रालय की ओर से क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
हमारी सरकार की चार प्राथमिकताएं हैं। पहली मेक इन इंडिया को बढ़ाना, इंपोर्ट को कम करना, एक्सपोर्ट को बढ़ावा देना और एमएसएमई सेक्टर को आगे बढ़ाना। सभी मंत्रालय इसी दिशा में काम कर रहे हैं। हमने एमएसएमई की परिभाषा को बदला है। सर्विस सेक्टर को भी अब एमएसएमई में शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के बहुत से हिस्से सर्विस सेक्टर में आते हैं। अब इन्हें भी एमएसएमई में लिया गया है। अब इन्हें लोन मिलना आसान हो जाएगा। 15,000 करोड़ रु पए बैकों की तरफ से पहले ही अप्रूव कर दिए गए हैं जिसमें से सात से आठ हजार करोड़ का लोन दे भी दिया गया है। निश्चित तौर पर इससे आने वाले समय में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
कोरोना वायरस के खतरे के बीच देश में वेंटिलेटर्स और मेडिकल इक्विपमेंट की कमी को पूरा करने के लिए देश के शीर्ष ऑटोमोबाइल निर्माताओं और ऑटो पार्ट्स कंपनियां भी आगे आई हैं। टाटा और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने बड़ी पहल की है। उद्योगों की इस नई भूमिका के बारे में क्या कहेंगे आप?
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हम तैयार नहीं थे। इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी थी। ऐसे में पीपीई किट,वेंटिलेटर,कोविड-19 अस्पताल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने में हमारे पीएसयू और ऑटोमोबाइल सेक्टर ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। आज हम इस लड़ाई के खिलाफ मजबूती से लड़ रहे हैं और इसमें इन लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
कोरोना संकट में वोकल फॉर लोकल का नारा बुलंद हो रहा है। लेकिन भारतीय कारोबारी और उत्पादक चीन के सस्ते उत्पादों से कैसे मुकाबला कर पाएंगे? उत्पादन लागत कम करने के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं?
आपने बिल्कुल सही कहा। ऑटोमोबाइल और टेक्सटाइल के सेक्टर में हम चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एजुकेशन, गवर्नेंस, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट जैसे तमाम विषयों के लिए अलग-अलग अधिकारियों को नियुक्त किया है। इसी तरह इस मसले पर भी विशेष टीम बनाकर काम किया जा रहा है। कई लोगों ने आलोचना की कि हम ग्लोबल विलेज की परिकल्पना से दूर हो जाएंगे। मैं इस आलोचना को खारिज करता हूं क्योंकि हम बाहर के प्रोडक्ट की बात करते हैं लेकिन अपने प्रोडक्ट की बात नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए हम विदेशी घड़ियों का खूब बखान करते हैं लेकिन एचएमटी के बारे में बात नहीं करते हैं। वह भी उतनी ही शानदार घड़ी है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने वोकल फॉर लोकल का नारा दिया है। एक और महत्वपूर्ण बिंदु है कि चीन में कपड़ा धागे से सस्ता क्यों होता है? दरअसल हमारे यहां वैल्यूएशन सिस्टम ठीक नहीं है। हम धागे को मीटर से मूल्यांकन करते हैं जबकि उसका किलोग्राम से मूल्यांकन करना चाहिए। बांग्लादेश जैसा देश यह पहले से ही कर रहा है। इस तरह के बदलाव से टेक्सटाइल सेक्टर में उत्साह की वृद्धि होगी और चीन पर हमारी निर्भरता कम हो पाएगी।
कोरोना काल में लघु एवं मझोले उद्योगों को आर्थिक संकट से उबारने के लिए सहायता पैकेज दिया गया है, भारी उद्योगों को लॉकडाउन में कितना नुकसान उठाना पड़ा और इसकी भरपाई किस तरह की जा रही है?
यह बात सही है कि सही समय पर एक्सपोर्ट नहीं होने की वजह से इंडस्ट्री को बहुत नुकसान हुआ है लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि नुकसान सिर्फ हमारा नहीं हुआ है। इटली, जर्मनी बल्कि पूरी दुनिया को नुकसान हुआ है। यह वैश्विक महामारी है। यह जरूर है कि जब हम उठेंगे तो बहुत तेजी से उठेंगे और भारत आने वाले समय की अगुवाई करेगा। इसकी वजह है कि हमने 20,000 करोड़ रुपए उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए ही डाले गए हैं। इसमें से सबको पैसा मिलेगा। आरबीआई ने भी नीतिगत दरों में कटौती और ईएमआई में मोहलत दी है जिससे व्यवसायियों का हौसला बढ़ेगा।
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि. (बीएचईएल) के प्रोडक्ट्स दुनिया भर में सप्लाई होते हैं। कई देशों में यहां बने ट्रांसफार्मर्स, कंप्रेशर्स, वॉल्व और ऑयल फील्ड इक्यूपमेंट्स की भारी मांग है। लॉकडाउन में प्रोडक्शन और सप्लाई पर कितना असर पड़ा?
बीएचईएल में उत्पादन बंद है लेकिन कई बड़ी कंपनियां हैं जो हमारे यहां इंवेस्टमेंट करना चाहती हैं। उनके पास जगह नहीं होती है। ऐसे में बीएचईएल के पास बहुत जगह है और इन निवेशकों के साथ मिलकर बड़ा काम किया जा सकता है। साथ ही सोलर एनर्जी पर बीएचईएल बहुत काम कर रही है लेकिन उपकरणों के लिए हमें अब भी चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। अब हम इस तरह के उपकरणों को यहां भी बना सकते हैं। यही आपदा को अवसर में बदलने वाली बात होगी।
बीएचईएल में बड़ी संख्या में कर्मचारी काम करते हैं। कोरोना संक्रमण से उनकी सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं ?
यह एक बड़ी संस्था है जो 17 जोन में बंटी हुई है और इसमें 30 से 35 हजार अधिकारी और कर्मचारी है। सभी का ध्यान रखा जा रहा है। मास्क, सैनिटाइजेशन, दो गज की दूरी जैसी सावधानियों को हर जगह बरता जा रहा है। जहां मशीनरी का काम है और दो गज की दूरी मुमकिन नहीं है। वहां 50 फीसद स्टाफ को ही बुलाया जा रहा है ताकि उचित दूरी रह पाए। पहले नारा था घर पर रहें, सुरक्षित रहें, अब नारा है सतर्क रहें सुरक्षित रहें।
मजदूरों की घर वापसी के बाद राज्यों में स्किल मैपिंग की जा रही है। आपने कहा है कि सभी मजदूरों को रोजगार मिलेगा और उनके साथ प्रोफेशनल्स की तरह व्यवहार होगा। इसके लिए सरकार किस तरह से रोडमैप तैयार कर रही है?
कुछ युवाओं की इस तरह की मानिसकता रही है कि वह डिग्री यहां से लेते हैं लेकिन काम बाहर करते हैं। विदेशों में जाकर अपना करियर बनाते हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में हमें एक ऐसा मौका मिला जब ऐसे युवाओं ने देश वापसी की। हमने उनसे पूछा वापस जाएंगे तो उन्होंने कहा डेढ़-दो साल तक तो मूड नहीं है। यह ऐसा मौका मिला जब हम इनकी स्किल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हमने एयरपोर्ट पर उतरते ही इनकी स्किल मैपिंग की और जहां-जहां जरूरत है वहां इनकी विशेषज्ञता का लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए अहमदाबाद की गिफ्ट सिटी के प्रोजेक्ट में हम इनका सहयोग ले रहे हैं। र्वल्ड बैंक जैसी संस्थाएं बिना इंटरेस्ट के किन-किन प्रोजेक्ट में लोन दे सकती हैं और जिस तरह यह लोग अपनी सेवाएं विदेशों की बड़ी कंपनियों को देते हैं उसका सदुपयोग यहां भी किया जा सकता है।
केंद्र ने सभी वाहनों के लिए नए उत्सर्जन मानक बीएस-6 को पहली अक्टूबर से लागू करने का फैसला किया है। बीएस-6 वाहन अधिक महंगे होंगे। लागत बढ़ने की वजह से वाहन या इससे जुड़ी विनिर्माण इकाइयों पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या इस क्षेत्र में नौकरियों पर भी संकट आ सकता है?
पेरिस और स्टॉकहोम में भी इस पर बात हो चुकी थी। हमें बीएस-4 से बीएस-6 में जाना है और कार्बन उत्सर्जन को कम करना है। सुप्रीम कोर्ट ने हमें एक अप्रैल 2020 की समय सीमा दी थी लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इसे एक अक्टूबर किया गया है। हमने ऑटोमोबाइल क्षेत्र के अलावा अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को बुलाया और उन्हें बताया कि यह मानक बहुत अच्छा है। आने वाली नस्ल को हमें धुआं रहित वातावरण देना है। इंडस्ट्री भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। यह महंगा भी नहीं पड़ेगा और वाहनों की गुणवत्ता पहले से बेहतर होगी। लोगों को इसे खरीदने में भी दिक्कत नहीं होगी।
दिल्ली-मुंबई ग्रीन हाईवे पर निकट भविष्य में ट्रकों को बिजली पर चलाने की तैयारी है। शुरुआत में हाईवे पर ट्रक के लिए अलग कॉरिडोर बनेंगे जिसमें बिजली के तार लगे होंगे। सड़क परिवहन मंत्रालय और भारी उद्योग मंत्रालय इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। यह प्रोजेक्ट कब तक पूरा हो सकेगा?
इलेक्ट्रिक व्हीकल हमारे मंत्रालय का ही विषय है। इसके लिए 10 करोड़ का बजट भी पिछली बार हमने रखा था। देश के 64 शहरों में हमने 5595 इलेक्ट्रिक बसों को मंजूरी दी थी। ई व्हीकल प्रोजेक्ट के तहत यह पूरा काम किया जा रहा था जिनमें से 2500 बसें जल्दी ही सड़क पर होंगी। बसों के साथ-साथ ही हमने ट्रकों के विषय में भी इसी तरह के प्रोजेक्ट के बारे में सोचा है। अभी हमारे सामने सबसे बड़ी जरूरत है चार्जिंग स्टेशन की। इसीलिए अभी कुछ शहरों को चिन्हित किया गया है। जैसे दिल्ली से चंडीगढ़ सौ फीसद काम पूरा हो जाएगा। हम इसी तरह से गाड़ियां बनाएंगे और चार्जिंग स्टेशन थोड़ी-थोड़ी दूरी पर होंगे। चार्जिंग में कुछ समय लगता है इस पर हम काम कर रहे हैं कि कैसे दुनिया में अन्य देशों में चार्जिंग का सिस्टम काम करता है। ट्रक बस ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के तमाम लोगों और संस्थाओं को बुलाकर हमने इस पर बात की है। कुछ रूट तय किए गए हैं जिन पर चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए कह दिया गया है।
निजी क्षेत्र की संस्थाओं के लिए तो पैकेज दे दिया गया है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की भी हालत बहुत अच्छी नहीं है। यह अगर अपनी शिकायत करें तो किससे करें? इन क्षेत्रों को बचाए रखने के लिए क्या किया जाए?
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थिति का आकलन करने के लिए हमने 10 पैरामीटर्स बनाए हैं। उदाहरण के लिए पेट्रोलियम के किसी भी पीएसयू को ले लीजिए जैसे गेल। इनका आकलन करते हैं और फिर इनके साथ एक एमओयू साइन होता है। पीएसयू को अब आसानी से लोन मिल पाएगा। इसके लिए बहुत से रिलेक्सेशन दिए गए हैं। निश्चित तौर पर एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो इनकी स्थितियों में सुधार आएगा।
आपके पास प्रशासन और राजनीति का लंबा अनुभव है। इस आधार पर आपसे जानना चाहेंगे कि महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात और तमिलनाडु समेत कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण के केस तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं ? क्या ये लापरवाही का मामला है या कुछ और। इस बारे में क्या कहेंगे आप?
केंद्र और राज्य को मिलकर काम करना होगा। एक दो जगह पर राज्य सरकारों ने राजनीति को जनिहत पर हावी कर दिया है। इस वक्त जरूरत है समन्वय में आई कमी को दूर करने की। इस संकट के खिलाफ लड़ाई लड़नी है इसीलिए मिलकर लड़ना होगा। राजनीति के लिए बहुत समय मिलेगा।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर आप साइकिल से अपने मंत्रालय पहुंचे। पर्यावरण की रक्षा और सुरक्षा के लिए इस तरह के प्रतीकात्मक प्रयासों का असर भी होता है। कोरोना संकट में लॉकडाउन के दौरान प्रकृति फिर से जीवंत हो उठी, इस बारे में देशवासियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
संसदीय कार्य मंत्री होने की वजह से देश भर के सांसदों से बात करने का मौका मिलता है। हिमाचल और उत्तराखंड के सांसदों ने मुझे बताया कि जो पहाड़ सामने दिखाई नहीं देते थे वह अब साफ दिखने लगे हैं। इसी तरह नदियां भी अब स्वच्छ दिखाई दे रही हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर मैंने साइकिल चला कर एक उदाहरण पेश करने की कोशिश की थी। यदि हम संक्रमण काल के बाद भी कुछ बातों का ध्यान रखें तो प्रदूषण पर काबू किया जा सकता है। छोटी-मोटी दूरी के लिए हमें साइकिल का इस्तेमाल करना चाहिए। जरा-जरा सी दूरी के लिए कार का इस्तेमाल करना पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है। जब जनप्रतिनिधि कुछ मिसाल रखते हैं तो लोग उसका अनुपालन करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यप्रणाली के बारे में क्या कहना चाहेंगे? क्यों वे इतने लोकप्रिय हैं?
उनके भीतर सबसे बड़ी विशेषता है सभी को प्रसन्न रखना और सभी को साथ लेकर चलना। 21वीं सदी के भारत को मजबूत बनाने के लिए सभी को साथ आना पड़ेगा। चाहे वह न्यायपालिका हो, कार्यपालिका हो या फिर मीडिया, सभी को मिलकर काम करना होगा और सबको साथ लेकर चलना प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी खासियत है।
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