पूर्वी लद्दाख गतिरोध : भारत, चीन की सेनाएं विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सहमत

Last Updated 08 Jun 2020 03:25:23 AM IST

विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि भारत और चीन मौजूदा सीमा गतिरोध को द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार ‘‘शांतिपूर्ण रूप से’’ सुलझाने के लिए सैन्य एवं राजनयिक वार्ताएं जारी रखने पर सहमत हो गए हैं।


भारत, चीन की सेनाएं विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सहमत

विदेश मंत्रालय ने पूर्वी लद्दाख गतिरोध पर दोनों देशों की उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के परिणामों की जानकारी साझा करते हुए यह बात कही। वार्ता का परिणाम बेनतीजा प्रतीत हो रहा है।

लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदरसिंह के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल और तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट के कमांडर मेजर जनरल लिऊ लिन ने शनिवार को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सीमा में माल्डो पर बैठक की, जो पूर्वाह्न करीब साढे 11 बजे आरंभ हुई और शाम तक चली।

वार्ता की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के कोई ठोस परिणाम नहीं निकले, जिससे पूर्वी लद्दाख में गतिरोध समाप्त हो सके।

विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘बैठक सौहार्दपूर्ण तथा सकारात्मक माहौल में संपन्न हुई और दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि उक्त मुद्दे के जल्द समाधान से दोनों देशों के बीच संबंधों का और अधिक विकास होगा।’’

मंत्रालय के बयान में कहा गया, ‘‘दोनों पक्ष विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों और नेताओं के बीच बनी सहमति को ध्यान में रखते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में हालात को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर राजी हो गए। नेताओं के बीच सहमति बनी थी कि भारत-चीन सीमा क्षेत्र में अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।’’

चीन के वुहान शहर में 2018 में ऐतिहासिक अनौपचारिक शिखर-वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनंिफग ने द्विपक्षीय संबंधों के विकास के लिए भारत-चीन सीमा के सभी क्षेत्रों में अमन-चैन बनाये रखने के महत्व पर जोर दिया था।

यह शिखर-वार्ता डोकलाम में दोनों सेनाओं के बीच 73 दिन तक बने रहे गतिरोध के कुछ महीनों बाद हुई थी। इस गतिरोध ने दोनों एशियाई महाशक्तियों के बीच युद्ध की आशंकाओं को पैदा कर दिया था।

विदेश मंत्रालय ने शनिवार की सैन्य वार्ता के संदर्भ में कहा, ‘‘दोनों पक्षों ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि इस साल दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वषर्गांठ है और वे इस पर राजी हुए कि इस मसले के जल्द समाधान से संबंधों का और विकास होगा।’’

उसने कहा कि दोनों पक्ष हालात के समाधान के लिए तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन के लिए सैन्य और राजनयिक संवाद जारी रखेंगे।

मंत्रालय ने कहा, ‘‘भारत और चीन ने दोनों देशों की सीमा के पास क्षेत्रों में हालात से निपटने के लिए राजनयिक एवं सैन्य माध्यमों से संवाद बनाए रखा है।’’

ऐसा समझा जाता है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने एलएसी पर सभी संवेदनशील क्षेत्रों में यथा स्थिति की पुन:बहाली के लिये दबाव बनाया और क्षेत्र से अतिरिक्त चीनी सैनिकों की वापसी की भी मांग की।

उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता से एक दिन पहले दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई और इस दौरान दोनों पक्षों में अपने ‘‘मतभेदों’’ का हल शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये एक-दूसरे की संवेदनाओं और चिंताओं का ध्यान रखते हुए निकालने पर सहमति बनी थी।

भारत और चीन ने पिछले ढाई दशकों में सीमा प्रबंधन के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए 1993 में हुआ समझौता और सीमा क्षेत्रों में भरोसा कायम करने के लिए 1996 में हुआ समझौता शामिल है।

पिछले महीने की शुरुआत में गतिरोध पैदा होने के बाद भारतीय सैन्य नेतृत्व ने फैसला किया था कि भारतीय जवान पैंगोंग सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी के सभी विवादित क्षेत्रों में चीनी सैनिकों के आक्रामक रवैये के खिलाफ दृढ रुख अपनाएंगे।

सूत्रों ने कहा कि चीनी सेना एलएसी के निकट अपने पीछे के सैन्य अड्डों पर रणनीतिक रूप से जरूरी चीजों का धीरे-धीरे भंडारण कर रही है, जिनमें तोप, युद्धक वाहनों और भारी सैन्य उपकरणों आदि को वहां पहुंचाना शामिल है।

उन्होंने कहा कि चीन ने उत्तरी सिक्किम और उत्तराखंड में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे कुछ क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति बढायी है, जिसके बाद भारत भी अतिरिक्त सैनिकों को भेजकर अपनी उपस्थिति बढा रहा है।

सूत्रों का कहना है कि मौजूदा गतिरोध के शुरू होने की वजह पैंगोंग सो झील के आसपासंिफगर क्षेत्र में भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण सड़क निर्माण का चीन का तीखा विरोध है। इसके अलावा गलवान घाटी में दरबुक-शायोक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग को जोड़ने वाली एक और सड़क के निर्माण पर चीन के विरोध को लेकर भी गतिरोध है।

पैंगोंग सो में फिंगर क्षेत्र में सड़क को भारतीय जवानों के गश्त करने के लिहाज से अहम माना जाता है। भारत ने पहले ही तय कर लिया है कि चीनी विरोध की वजह से वह पूर्वी लद्दाख में अपनी किसी सीमावर्ती आधारभूत परियोजना को नहीं रोकेगा।

दोनों देशों के सैनिक गत पांच और छह मई को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग सो क्षेत्र में आपस में भिड़ गए थे। पांच मई की शाम को चीन और भारत के 250 सैनिकों के बीच हुई यह हिंसा अगले दिन भी जारी रही। इसी तरह की एक घटना में नौ मई को सिक्किम सेक्टर में नाकू ला दर्रे के पास लगभग 150 भारतीय और चीनी सैनिक आपस में भिड़ गए थे।

भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी को लेकर है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत का इस पर अपना दावा है।

दोनों पक्ष कहते रहे हैं कि सीमा मसले का अंतिम समाधान जब तक नहीं निकलता, सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाये रखना जरूरी है।

भाषा
नयी दिल्ली


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