हर घर, नल का जल हमारा लक्ष्य : शेखावत

Last Updated 21 May 2020 12:50:24 AM IST

आबादी के लिहाज से पानी की बेहद कम उपलब्धता, बाढ़ और सूखे जैसी बेहिसाब चुनौतियों से पार पाकर जल समृद्ध नए भारत का निर्माण ही हमारे मंत्रालय का सबसे बड़ा लक्ष्य है। हम घर-घर पानी पहुंचाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमारी सरकार किसानों से जुड़ी योजनाओं को भी लगातार रफ्तार देकर उन्हें पूरा कर रही है। हमने पिछली सरकार की किसानों से जुड़ी लंबित योजनाओं को दोबारा शुरू किया। इन योजनाओं में से अब तक करीब 40 फीसद पूरी हो चुकी हैं जबकि 40 फीसद निश्चित समय पर पूरी हो जाएंगी। यह कहना है केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का। उनसे इन मुद्दों पर सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय ने बातचीत की। प्रस्तुत है विस्तृत बातचीत-:


सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ एवं एडिटर इन चीफ उपेन्द्र राय एवं केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत

जल शक्ति मंत्रालय के गठन के साथ ही इसे लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थीं। यह प्रधानमंत्री मोदी के एक बड़े विजन के तौर पर भी लिया गया। इस मंत्रालय के गठन और संकल्पों के बारे में हमें बताएं?
हमने प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है, उसका असर हम आए दिन देखते ही रहते हैं। सबसे बड़ी दुविधा यह है कि हमारे पास पूरी दुनिया की 18 फ़ीसद आबादी है जबकि महज 4 फ़ीसद पानी। 12 से 13 फ़ीसद ऐसा इलाका है, जो हमेशा सूखे की चपेट में रहता है और इतना ही इलाका है, जो बाढ़ की चपेट में आता है। तमाम शोध बताते हैं कि आने वाला समय कितना कठिन रहने वाला है। हमारी पानी की क्षमता भी एक चौथाई रह गई है। इसकी वजह है जनसंख्या का बहुत तेजी से बढ़ना। बदलते दौर और इन सभी चुनौतियों को देखते हुए पानी को लेकर अलग-अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारियों को एक ही मंत्रालय के अंतर्गत लाया गया और इस तरह जल शक्ति मंत्रालय का गठन हुआ। इस मंत्रालय का लक्ष्य नए भारत का गठन है और नए भारत को बनाने के लिए जल समृद्धि सबसे बड़ा लक्ष्य है। पिछले 15 अगस्त को आम आदमी के लिए हर जरूरी चीज पहुंचाने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। सरकार ने घर घर में चूल्हा, बिजली, शौचालय जैसी चीजों को पहुंचाया है। हर नागरिक के लिए पक्के मकान बनाने का काम भी सरकार ने किया है। इसी मकसद को आगे बढ़ाते हुए सभी के बैंक खाते भी खुलवाए गए हैं। सबसे बड़ी चुनौती है घर-घर में पीने का पानी पहुंचाना। यही जल शक्ति मंत्रालय का सबसे बड़ा लक्ष्य है। हर जरूरी सुविधा की तरह हम पीने के पानी को भी घर-घर पहुंचाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं।

जब बात पानी की होती है तो सबसे बड़ी चुनौती किसानों के सामने होती है। आज भी हमारी 80 फ़ीसद खेती बारिश के भरोसे चलती है। कृषि सिंचाई योजनाओं की क्या स्थिति है? इनसे जुड़ी किस तरह की परियोजनाएं चल रही हैं और उनमें से कितनी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं?
सिंचाई परियोजनाओं को देखना राज्य सरकारों का काम होता है। फिर भी 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही श्री नरेंद्र मोदी लगातार किसानों की योजनाओं पर काम कर रहे हैं। हमने सबसे पहले पिछली सरकार के दौरान लंबित परियोजनाओं की जानकारी निकाली। हमें ऐसी कई योजनाओं के बारे में पता चला, जिनका 50 या 30 फ़ीसद काम पूरा हो चुका था और वह लंबे समय से अटकी हुई थीं। सबसे पहले इन योजनाओं के लिए एक इन्सेंटिव देकर इन्हें दोबारा शुरू किया गया। राज्य सरकार का सहयोग इसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमने राज्य सरकारों से बात की और 50 लाख करोड़ का बड़ा निवेश इसके लिए किया गया। ऐसी लगभग सभी योजनाओं को हमने चिह्नित कर लिया था और मुझे यह बताते हुए खुशी है कि इसमें से 40 फ़ीसद को हम पूरा करने में कामयाब भी हुए हैं। वहीं, 40 फ़ीसद ऐसी योजनाएं भी हैं, जिनका पूरा होने का समय सुनिश्चित है। वह अपने समय से चल रही हैं। हमारा संकल्प यही है कि इन्हें भी हम निश्चित समय अवधि में ही पूरा करें।

बाढ़ से होने वाली तबाही और इसकी विभीषिका का दंश भी हम लगातार झेलते रहे हैं। इस बार मौसम वैज्ञानिकों ने मानसून के सामान्य रहने की बात कही है लेकिन पिछली बार हम बाढ़ की तबाही को देख चुके हैं हम इस तरह की तबाही से निपटने के लिए कितने तैयार हैं?
जैसा मैंने आपको बताया जल संसाधनों के रखरखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। हमारा काम उन्हें तकनीकी सपोर्ट देना होता है। सेंट्रल वाटर कमीशन ने इसके लिए काफी काम किया है। हमने मौसम की भविष्यवाणियों को बेहतर बनाने का काम किया है। इसके लिए बकायदा सेंसर्स भी लगाए गए हैं। वहीं, एक टेक्निकल फोर्स भी बनाई गई है, जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रबंधन पर काम किया जा सके। सरप्लस बेसिन से डेफिसिट बेसिन को जोड़ने का काम हो रहा है। नदियों को जोड़ने की इस संकल्पना पर भी हम लगातार काम कर रहे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने नदियों को जोड़ने का यह सपना देखा था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक लाख करोड़ के बजट का प्रावधान इसके लिए किया था। क्या अभी योजना ठंडे बस्ते में चली गई है या इसको लेकर कोई नया मास्टर प्लान बनाया जा रहा है?
यह हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। अटल जी ने सुरेश प्रभु जी के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। हमने ऐसी 31 लिंक्स को चिह्नित किया है, जो हिमालय और पेनिनसुला के इलाके में हैं। इस तरह के प्रोजेक्ट को करने के लिए कई अनुमतियां लेनी पड़ती हैं, जिनमें वन्य जीव संरक्षण, आदिवासी संरक्षण आदि जैसी कई अनुमति आती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात है राज्यों का खुले मन से इस योजना के लिए साथ आना। जब तक राज्यों के साथ सहमति नहीं बनेगी, इस पर काम करना बहुत मुश्किल है। हम लगातार इस पर बातचीत कर रहे हैं और मैं यह बताना चाहता हूं कि शीघ्र ही इस विषय में आपको शुभ समाचार मिलेगा।

नदियों के पानी को लेकर दो राज्यों के बीच विवाद लगातार चलता आया है। दिल्ली हरियाणा का यमुना को लेकर विवाद हो या कर्नाटक और तमिलनाडु का कावेरी को लेकर विवाद हो। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है। जल शक्ति मंत्रालय होने के नाते आपका काम इन राज्यों के बीच में मध्यस्थता कराने का भी है। इस तरह के विवादों को सुलझाने के लिए आपने क्या ठोस कदम उठाए हैं और उनके क्या कुछ परिणाम निकले हैं?
जैसा मैंने आपको बताया जल राज्यों का विषय है। हमारे यहां 90 से 92 फ़ीसद नदी बेसिन अंतरराज्यीय बेसिन हैं। पानी हर राज्य की प्राथमिकता होती है और निश्चित तौर पर इसे लेकर बहुत सारे विवाद चल रहे हैं। संविधान की व्यवस्था के अनुरूप इन विवादों को सुलझाने के लिए ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं। इन ट्रिब्यूनल के निर्णय के अनुसार विवादों के निपटारे किए जाते हैं। इन विवादों को हल करने के लिए 9 ट्रिब्यूनल बनाए गए, जिनमें से 5 ने अपनी अनुशंसाएं भी सामने रखी हैं। इन अनुशंसाओं में से कुछ को चैलेंज भी किया गया है। सबसे दुखद पहलू यह रहा कि हर ट्रिब्यूनल को अपना अवार्ड देने में 30 से 32 साल का समय लग जाता है। हमने लोकसभा में बिल लाकर ट्रिब्यूनल के अवार्ड करने की समयसीमा को तय किया। अब 5 साल के भीतर ट्रिब्यूनल को अपना फैसला देना होगा। पहले समझौते का प्रयास किया जाएगा, इसके बाद अलग-अलग चरणों में निर्णय देने होंगे। पहले निर्णय होने के बाद भी उसे गजट में नहीं डाला जाता था। अब हमने यह व्यवस्था दे दी है कि जिस दिन निर्णय होगा, उसे गजट में पब्लिश माना जाएगा।

कोरोना वायरस महामारी के बाद सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई जैसी चीजें हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं। साफ-सफाई के लिए पानी का बेइंतहा इस्तेमाल हो रहा है। क्या वर्तमान दौर के बाद हम ज्यादा भयानक जल संकट देखेंगे?
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कुल पानी का 5 फ़ीसद ही घरेलू कामों के लिए इस्तेमाल होता है जबकि औद्योगिक क्षेत्र में 6 फ़ीसद पानी इस्तेमाल होता है। जल का सबसे बड़ा हिस्सा यानी 89% कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होता है। यदि कृषि क्षेत्र में कम पानी के साथ खेती करने में हम कामयाब होते हैं और 5 फ़ीसद पानी भी बचा लेते हैं तो आने वाले कई सालों तक के लिए पीने के पानी की चिंता नहीं करनी होगी। भगवान ने जितना पानी हमें दिया है, उसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की जरूरत है।

पानी को बचाने को लेकर कई आंदोलन किए गए। मुंबई में आबिद सुरती भी इस काम में जुटे हुए हैं। उन्हें हाल में प्रोत्साहित भी किया गया लेकिन आज के दौर में प्राथमिकता साफ-सफाई है, जल संरक्षण नहीं।  क्या आपके मंत्रालय के लिए चुनौतियां बढ़ने वाली हैं?
निश्चित तौर पर जल को लेकर हमें ज्यादा जिम्मेदार व्यवहार करने की जरूरत है। कोई भी देश तभी जल समृद्ध बन सकता है, जब वह 4 मूलभूत सिद्धांतों पर काम करता है। पहला सिद्धांत है जल संचय यानी वष्रा के जल को संचित किया जाए। दूसरा सिद्धांत संरक्षण, यानी जो जल स्रोत हमारे पास मौजूद हैं, उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है। तीसरी महत्वपूर्ण बात है विवेक पूर्वक पानी का इस्तेमाल करना। मैं राजस्थान जैसे प्रदेश से आता हूं। जहां बहुत कम पानी में लोग अपना गुजारा कर लेते हैं, लेकिन कई लोग होते हैं, जिन्हें हाथ धोने के लिए इतना पानी लगता है, जितना किसी को स्नान करने के लिए लगे। यहीं हमें पानी के उचित इस्तेमाल या विवेकपूर्ण इस्तेमाल की जरूरत है। चौथा महत्वपूर्ण सिद्धांत है उपयोग किए हुए पानी को दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाना। 100 मिलीमीटर बरसात वाला इस्रइल देश आज अपने पड़ोसी देशों को पानी निर्यात करने की स्थिति में है। हम 1068 मिलीमीटर बरसात वाले देश होकर भी जल संकट का अनुभव कर रहे हैं। यह महत्वपूर्ण समय है, जब हमें आत्मावलोकन करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी भी इसे लेकर संकल्पित हैं और वह जल के आंदोलन को जन जन का आंदोलन बनाना चाहते हैं।

मैं इस साल जनवरी में सिंगापुर में था। सिंगापुर भी एक ऐसा ही देश है, जिसने इस्तेमाल किए हुए पानी को दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाकर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है। हमारे देश में हाव्रेस्टिंग के कुछ प्रयास तो किए गए लेकिन उसके लिए उतना काम नहीं हो पाया। जिस तरह प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का नारा दिया और उसका असर लोगों पर देखने को मिला। हार्वेस्टिंग को लेकर इतनी जागरूकता क्यों नहीं आ पाई है? इसके लिए आगे क्या विजन या ब्लूप्रिंट आपके पास है?
जैसा आपने कहा प्रकृति ने हमें प्रचुर मात्रा में पानी दिया है। 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हमें बरसात, बर्फ  या इंटरनेशनल बेसिन से मिलता है। इसमें से 2000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी हार्वेस्टेबल कंपोनेंट है, यानी इसे हम संचित कर सकते हैं, लेकिन हम इसका महज आठ फीसद पानी ही रोक पाते हैं। हमारे छोटे बड़े सभी बांधों और प्रयासों को मिला लें तो हम 250 से 300 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी को ही रोक पाते हैं। यही वजह है कि मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने इसी पर बड़ी चर्चा की थी और देशभर के ढाई लाख सरपंचों को पत्र लिखकर जल के मुद्दे पर ही हफ्ते में एक बार चर्चा करने के बारे में कहा था। इन सब प्रयासों से जबरदस्त चेतना भी देखने को मिली। हमारे एक हजार से ज्यादा अधिकारी, वैज्ञानिक ढाई सौ जिलों में जाकर जागरूकता का यह अभियान चलाते रहे हैं। हमने कई परंपरागत पानी के स्रोतों को पहचाना और उन्हें रीस्टोर करने के प्रयास किए। वहीं, कई नए स्ट्रक्चर्स भी बनाए गए हैं। सबसे बड़ी चुनौती है हमारी भूगर्भ के पानी पर 65 फ़ीसद निर्भरता। पूरी दुनिया के भूगर्भ जल स्रोत में हम 25 फ़ीसद निकाल लेते हैं। अमेरिका और चीन मिलकर जितना पानी भूगर्भ से निकालते हैं, उसका डेढ़ गुना अकेले भारत निकाल लेता है। यही वजह है कि हमारे भूगर्भ के प्राकृतिक स्रोत लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं या सूखते जा रहे हैं। उन्हें रीस्टोर करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसी मकसद से हमने अटल योजना की शुरु आत की ताकि भूगर्भ जल का कम से कम इस्तेमाल हो। जन सहभागिता से इसे एक आंदोलन का रूप दिया जाए। इसके लिए 7 प्रदेशों में 6000 करोड़ रु पए की लागत से प्रयास शुरू किए गए।

गंगा हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह नदी हमारी जीवन रेखा है और आध्यात्मिक रूप से भी हमारे लिए महत्व रखती है। इसकी शुद्धि के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट जो नहीं कर पाया, क्या वह आपदा के इस वक्त ने कर दिया है? कोरोना वायरस के इस काल में नदियों के प्रवाह में सुधार और उनकी स्वच्छता इस ओर इशारा करती है कि यह महामारी होने के साथ-साथ इन नदियों के लिए एक वरदान भी है?
मैं इस बात को सिरे से खारिज करता हूं कि नमामि गंगे के परिणाम नहीं आए। पिछला कुंभ जब हुआ था तो पूरी दुनिया ने समवेत स्वर से गंगा के पानी की गुणवत्ता में सुधार की बात कही थी। गंगा नदी के अलग-अलग हिस्सों में हमने परीक्षण किए। मैं खुद भी देवप्रयाग से ऋषिकेश तक कई वैज्ञानिकों के साथ गया और हमने पानी को हाथ में लेकर पिया। यह पानी सर्वथा पीने योग्य था। इसमें कोई अशुद्धि नहीं थी। यह भी सत्य है कि नदियों में प्रदूषण के तीन महत्वपूर्ण कारण होते हैं। पहला सीवेज, दूसरा इंडस्ट्री और उससे निकलने वाला है एफ्लूएंट और तीसरा हमारा प्रत्यक्ष व्यवहार जो हम नदियों के साथ करते हैं यानी कर्मकांड स्नान आदि इत्यादि। यह सारे कारक इस महामारी के दौर में बंद थे। जिससे नदियों में प्रदूषण नहीं गया है। हम इसके बारे में भी परीक्षण कर रहे हैं कि इससे कितना फर्क पड़ा है।

इस तरह की बात भी सामने आई थी कि कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए गंगाजल का सेवन रोगियों को करवाना चाहिए। आपने भी यह प्रस्ताव आईसीएमआर के पास भेजा था। यह पूरी घटना क्या थी, इसके बारे में आपसे जानना चाहेंगे?
देखिए हम सभी जानते हैं कि गंगा नदी के जल में कुछ ऐसे तत्व अवश्य हैं कि उसका जल बरसों बरस तक खराब नहीं होता है। हमारे घरों में भी यह पानी रखा रहता है, लेकिन इसमें कोई बैक्टीरिया डेवलप नहीं होता है। वैज्ञानिक शोधों से भी यह बात सिद्ध हो चुकी है। इस पर कई साइंटिफिक रिसर्च भी हो चुकी हैं। नदी के जल के साथ-साथ गंगा के क्षेत्र में दुर्लभ पेड़ पौधों और वनस्पतियों से होने वाले रिसाव की वजह से भी इसके पानी में एंटीबैक्टीरियल गुण हो सकते हैं। ऐसे कई संस्थान हैं, जिन्होंने हमसे कोरोना महामारी के इस दौर में गंगाजल के इस्तेमाल के बारे में आग्रह किया था। चूंकि हमारे पास वैज्ञानिक शोध की कोई व्यवस्था नहीं है, इसीलिए हमने इस प्रस्ताव को आईसीएमआर के पास भेजा था। आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का कहना था कि इस समय पर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। आगे कभी इस विषय पर विचार किया जा सकता है।



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