मरने के बाद भी नहीं मिलेगी जुर्माने से मुक्ति

Last Updated 22 Jan 2020 01:50:16 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए शख्स को जुर्माने की राशि का भुगतान करना ही होगा, भले ही उसकी मौत हो चुकी है।


सुप्रीम कोर्ट

मृतक  को जेल भेजना संभव नहीं है लेकिन अपीलीय अदालत उसका गुनाह बरकरार रखती है तो उसकी संतान को जुर्माने की रकम का भुगतान करना होगा। मरने से दोषी की जेल की सजा समाप्त हो जाती है लेकिन जुर्माने की सजा मरने के बाद भी खत्म नहीं होती।
जस्टिस अशोक भूषण और मुकेश कुमार शाह की बेंच ने शराब की तस्करी के जुर्म में दो साल की सजा पाए रमेशन (मृतक) के बेटे गिरिजा की याचिका पर यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 394 का हवाला देते हुए कहा कि फौजदारी कानून में जुर्माने की सजा मरने के बाद भी खत्म नहीं होती। जुर्माना उस उत्तराधिकारी को भरना होगा जिसे मृतक की सम्पत्ति विरासत में मिली। चूंकि दोषी पर दो साल की जेल की सजा के साथ दो लाख रुपए का जुर्माना भी ठोका गया था और इस सजा के ऐलान के बाद उसकी उस समय मृत्यु हो गई जब उसकी अपील केरल हाई कोर्ट में लंबित थी। अमूमन दोषी की मौत के बाद अपील समाप्त घोषित कर दी जाती है लेकिन हाई कोर्ट ने अपराधी की मौत के बाद भी सुनवाई खत्म नहीं की और अपील मेरिट के आधार पर तय की।

रमेशन को केरल आबकारी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस पर बिना लाईसेंस के शराब बेचने का आरोप था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अधिनियम की धारा 55 (ए) और 55(जी) के तहत उसे दो-दो साल की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट ने अपना निर्णय 20 दिसंबर, 2006 को सुनाया और दोनों धाराओं में एक-एक लाख का जुर्माना भी किया।
 ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ छह फरवरी, 2007 को हाई कोर्ट में अपील दायर की गई। रमेशन की जमानत पहले ही हो गई थी। इस बीच, 21 दिसंबर, 2007 को रमेशन की मौत हो गई। उसके बेटे के अनुरोध के बावजूद हाई कोर्ट ने केस खत्म नहीं किया। हाई कोर्ट ने अपील पर पूरी सुनवाई की और छह मार्च, 2014 को दिए निर्णय में रमेशन को दोषी ठहराए जाने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने कहा कि गुनहगार की मौत के कारण उसे जेल भेजना संभव नहीं है, लिहाजा उसके बेटे को जुर्माने की रकम अदा करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा कि कानूनी रूप से जुर्माने का भुगतान अनिवार्य है। लेकिन इस संबंध में मृतक के उत्तराधिकारी का पक्ष जानना जरूरी है। उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।

विवेक वार्ष्णेय/सहारा न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली


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